
पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में ₹2 की बढ़ोतरी, उपभोक्ताओं को नहीं झेलना पड़ेगा बोझ
भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क में ₹2 प्रति लीटर की वृद्धि की है। हालांकि, इस वृद्धि का असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि तेल कंपनियां इसका भार उठाएंगी।
पेट्रोल-डीजल पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क में ₹2 प्रति लीटर की बढ़ोतरी, उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ेगा असर
नई दिल्ली, भारत| 8 अप्रैल 2025 | भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Special Additional Excise Duty) में ₹2 प्रति लीटर की बढ़ोतरी की घोषणा की है। यह निर्णय 8 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के माध्यम से सार्वजनिक किया गया। हालांकि इस वृद्धि का बोझ आम उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि तेल विपणन कंपनियां (OMCs) इस अतिरिक्त शुल्क को खुद वहन करेंगी।
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, यह निर्णय देश की राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने और राजस्व संग्रह को संतुलित बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इस वृद्धि से आम जनता को किसी प्रकार का मूल्य वृद्धि (price hike) का सामना नहीं करना पड़ेगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,
“यह एक बैकएंड एडजस्टमेंट है, जिसे तेल कंपनियों की लागत में समायोजित किया जाएगा। इससे उपभोक्ता कीमतें यथावत रहेंगी।”
वर्तमान टैक्स ढांचा और बदलाव
भारत में पेट्रोल और डीजल पर केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कई प्रकार के कर लगाती हैं, जिनमें केंद्रीय उत्पाद शुल्क, विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, उपकर (cess), और वैट शामिल हैं।
इस संशोधन के बाद विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क निम्न प्रकार होगा:
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पेट्रोल: ₹9 से बढ़कर ₹11 प्रति लीटर
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डीजल: ₹6 से बढ़कर ₹8 प्रति लीटर
यह वृद्धि पिछले दो वर्षों में पहली बार की गई है जब सरकार ने उत्पाद शुल्क में संशोधन किया है।
तेल विपणन कंपनियों की भूमिका
भारतीय तेल विपणन कंपनियाँ – इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम – को यह शुल्क वृद्धि अपने मार्जिन में समायोजित करनी होगी। इसका अर्थ यह है कि कंपनियों को अपनी लाभप्रदता में कटौती करनी पड़ेगी।
कंपनियों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि वे पहले से ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव और रुपये की कमजोरी का सामना कर रही हैं।
हालांकि, OMCs के एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया:
“हम सरकार की राजस्व आवश्यकता को समझते हैं और आम जनता पर इसका बोझ न डालने के निर्णय का सम्मान करते हैं।”
हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस कदम से उपभोक्ता कीमतों पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि दीर्घकालिक रूप में इसका असर उत्पाद लागत, आपूर्ति श्रृंखला और OMCs के मूल्य निर्धारण मॉडल पर पड़ सकता है।
आर्थिक विशेषज्ञ संकेत दे रहे हैं कि यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं और OMCs पर दबाव बढ़ता है, तो वे धीरे-धीरे खुदरा मूल्य में मामूली बढ़ोतरी कर सकती हैं।
भारत सरकार को इस वृद्धि से प्रति वर्ष लगभग ₹18,000 से ₹20,000 करोड़ अतिरिक्त राजस्व मिलने की संभावना है। यह राशि राजकोषीय घाटे को कम करने, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और सामाजिक कल्याण योजनाओं में निवेश के लिए उपयोग की जाएगी।
वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम “राजकोषीय अनुशासन” को बनाए रखने की दिशा में उठाया गया है।
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा है कि सरकार तेल कंपनियों को घाटे में डालकर आम जनता को असली कीमतों से अंधेरे में रख रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा:
“यह छिपी हुई मूल्य वृद्धि है। जब कंपनियों को मार्जिन में कटौती करनी पड़ेगी तो वे अन्य रास्तों से कीमत बढ़ा सकती हैं।”
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महंगाई दर पर तत्काल प्रभाव नहीं, लेकिन कंपनियों के लिए लागत बढ़ने से लॉजिस्टिक्स और परिवहन सेवाओं पर अप्रत्यक्ष दबाव आ सकता है।
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RBI की मौद्रिक नीति पर फिलहाल असर की संभावना नहीं, क्योंकि खुदरा मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
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शेयर बाजार में तेल कंपनियों के शेयरों में हल्का दबाव देखा गया है।