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गरीबों की फसल कहलाने वाली लघु धान्य फसलें आज अमीरों का भोजन बन गई हैं : चौबे

रायपुर। छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि कोदो, कुटकी, रागी जैसी लघु धान्य फसलों के पोषक मूल्यों तथा औषधीय गुणों के कारण वैश्वविक स्तर पर दिनो-दिन इनका महत्व बढ़ता जा रहा है। छत्तीसगढ़ में परम्परागत रूप से उगाई जाने वाली इन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा कोदो, कुटकी एवं रागी की समर्थन मूल्य पर खरीदी किये जाने की पहल के चलते विगत दो वर्षां में इन फसलों का रकबा और उत्पादन काफी तेजी से बढ़ा है। राज्य मिलेट मिशन के तहत वर्ष 2027 तक इन फसलों के रकबे में 1 लाख हैक्टेयर की वृद्धि करने का लक्ष्य रखा गया है, राज्य के किसानों के रूझान को देखते हुए लगता है कि यह लक्ष्य अगले वर्ष ही हांसिल कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि पहले इन फसलों को गरीबों की फसल कहा जाता था लेकिन अपने पोषक मूल्य एवं औषधीय गुणों के कारण आज यह अमीरों के भोजन का प्रमुख अंग बन गई है। चौबे ने लघु धान्य फसलों की नवीन प्रजातियों के विकास एवं उन्नत उत्पादन तकनीकी के विकास के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। चौबे आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के 37वें स्थापना दिवस के अवसर पर कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागार में आयोजित ‘‘खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु लघु धान्य फसले’’ राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ कर रहे थे। कार्यशाला की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने की। कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार प्रदीप शर्मा, धरसींवा विधायक श्रीमती अनिता योगेन्द्र शर्मा, राष्ट्रीय बीज विकास निगम, नई दिल्ली की अध्यक्ष सह प्रबंध संचालक डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी, छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिहं तथा विश्वविद्यालय के प्रबंध मण्डल सदस्य आनंद मिश्रा उपस्थित थे। चौबे ने इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय परिसर में नवनिर्मित मिलेट कैफे का लोकार्पण भी किया।

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कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ में सदियों से कोदो, कुटकी, रागी, सावां, चीना, कंगनी जैसी लघु धान्य फसलों का उत्पादन परंपरागत रूप से किया जाता रहा है। किसी भी प्रकार की भूमि में बहुत कम सिंचाई संसाधनों तथा बहुत कम लागत के साथ इन फसलों की खेती की जा सकती है। इन फसलों में मौसम की विपरित परिस्थितियों को सहने की क्षमता होती है तथा इनमें कीट-बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। लघु धान्य फसलों में सूखा सहने की अदभुत क्षमता होती है। इसलिए इन्हें छत्तीसगढ़ में अकाल की फसल कहा जाता है और इन्हें भुखमरी के दिनों में पेट भरने के लिए सुरक्षित रखा जाता था। उन्होंने कहा कि अब इन फसलों की पोषकता तथा स्वाथ्यप्रद मूल्यों को देखते हुए वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को लघु धान्य वर्ष घोषित किया गया है। चौबे ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य मिलेट मिशन प्रारंभ किया गया है जिसके तहत प्रदेश के 20 जिले शामिल किए गए हैं। उन्होंने कहा कि लघु धान्य फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा कोदो, कुटकी एवं रागी की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जा रही है। श्री चौबे ने कहा कि राज्य सरकार की किसान हितैषी नीतियों के कारण आज किसानों के चैहरे पर खुशी की चमक दिखाई देती है। चार वर्ष पूर्व प्रदेश सरकार द्वारा किसानों से 52 लाख मिट्रिक टन धान की खरीदी की जा रही थी वहां अब प्रति वर्ष 100 लाख मिट्रिक टन से अधिक धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जा रही है।

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मुख्यमंत्री के कृषि सलाहकार प्रदीप शर्मा ने कहा कि भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि दक्षिण ऐशियाई देशों में लघु धान्य फसलों की खेती नैसर्गिक रूप से होती रही है तथा यहां की आबो-हवा इन फसलों की पैदावार के लिए मुफीद है। उन्होंने कहा कि विगत कुछ दशकों में लघु धान्य फसलों के स्थान पर धान गेहूं, दलहन एवं अन्य व्यवसायिक फसलों का उत्पादन बढ़ने से लघु धान्य फसलों का रकबा कम हुआ है लेकिन उससे एक बड़ा नुकसान यह हुआ है कि मौसम की विपरित परिस्थितियों में फसलें खराब होने से भुखमरी की नौबत आ रही है। उन्होंने कहा कि इसका बड़ा उदाहरण इस वर्ष बाढ़ के कारण पाकिस्तान में गेहूं की फसल नष्ट होने के कारण वहां भुखमरी की उत्पन्न स्थिति है। शर्मा ने कहा कि लघु धान्य फसलें बहुत कम लागत और संसाधनों में किसी भी प्रकार की मिट्टी में कम अवधि में उगाई जा सकती हैं। ये फसलें प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति सहनशील होती है। लो कैलोरी डाईट होने के कारण यह मधुमेह, रक्तचाप एवं हृदय रोगियों के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। इनमें कैल्शियम, मैग्नीशीयम, आयरन, फस्फोरस, अन्य खनिज तथा रेशा प्रचुर मात्रा में होने के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए काफी लाभप्रद हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में लघु धान्य फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मिलेट मिशन प्रारंभ करने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के 30 हजार नालों को पुनर्जीवित कर उनके किनारें कोदो, कुटकी, रागी जैसी लघु धान्य फसलें उगाने का कार्य चल रहा है। शर्मा ने आम जनता में मिलेट के उपयोग के प्रति जागरूकता पैदा करने हेतु इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्याल परिसर में मिलेट कैफे प्रांरभ करने के लिए कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल तथा विश्वविद्यालय प्रशासन को बधाई दी। कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ में मिलेट मिशन के तहत बहुत तेजी से काम चल रहा है। वर्ष 2027 तक 1 लाख 90 हजार हैक्टेयर में मिलेट उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है लेकिन जिस रफ्तार से लघु धान्य फसलों का रकबा बढ़ रहा है उससे लगता है कि यह लक्ष्य वर्ष 2024 में ही हांसिल कर लिया जाएगा।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि 20 जनवरी 1987 को स्थापित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने पिछले 36 वर्षां में आशातीत प्रगति की है। स्थापना के समय जहां विश्वविद्यालय के अंतर्गत केवल एक मात्र कृषि महाविद्यालय रायपुर में संचालित था वहीं आज प्रदेश के सभी जिलों में 34 शासकीय तथा 15 निजी कृषि, उद्यानिकी, कृषि अभियांत्रिकी एवं वानिकी महाविद्यालय संचालित हैं। स्थापना के समय विश्वविद्यालय की प्रवेश क्षमता 100 विद्यार्थियों की थी जो अब बढ़कर प्रति वर्ष लगभग 4000 विद्यार्थी हो गई है। विश्वविद्यालय की स्थापना के समय केवल बिलासपुर में एक मात्र कृषि विज्ञान केन्द्र संचालित था वहीं अब प्रदेश के 27 जिलों में कृषि विज्ञान केन्द्र संचालित किये जा रहे हैं। डॉ. चंदेल ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा लघु धान्य फसलों के विकास एवं अनुसंधान में भी काफी कार्य किया जा रहा है और विश्वविद्यालय द्वारा कोदो, कुटकी तथा रागी की 9 उन्नत किस्में विकसित की गई हैं जिनमें – इंदिरा कोदो-1, छत्तीसगढ़ कोदो-2, तथा छत्तीसगढ़ कोदो-3, छत्तीसगढ़ कुटकी-1, छत्तीसगढ़ कुटकी-2 तथा छत्तीसगढ़ सोन कुटकी, इंदिरा रागी-1, छत्तीसगढ़ रागी-2 तथा छत्तीसगढ़ रागी-3 शामिल हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित भिन्न अनुसंधान प्रक्षेत्रों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के अन्तर्गत वृहद पैमाने पर लघु धान्य फसलों की खेती तथा बीज उत्पादन किया जा रहा है तथा कृषकों को इन फसलों की खेती हेतु मार्गदर्शन एवं प्रेरणा भी दी जा रही है। विभिन्न कृषक उत्पाद समूहों एवं महिला स्व-सहायता समूहों को लघु धान्य फसलों के प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन तथा उत्पाद निर्माण एवं विपण हेतु मार्गदर्शन दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि लघु धान्य फसलों के बीजों की आपूर्ति के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय राष्ट्रीय बीज निगम के साथ अनुबंध किया जा रहा है।

इस अवसर पर छत्तीसगढ़ में लघु धान्य फसलों के उत्पादन हेतु अनुसंधान एवं तकनीकी विकास, लघु धान्य फसलों के पोषक मूल्य तथा औषधीय गुणों पर अनुसंधान, लघु धान्य फसलों के प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, उत्पाद निर्माण तथा इन फसलों के बीज उत्पादन एवं वितरण हेतु इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर तथा इक्रिसेट हैदराबाद, भारतीय लघु धान्य फसल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद तथा राष्ट्रीय बीज निगम, नई दिल्ली के मध्य तीन समझौते भी निष्पादित किये गये। इन समझौतों पर राष्ट्रीय बीज निगम की ओर से अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी, अन्तर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क कटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (इक्रिसेट) की ओर से उप महानिदेशक डॉ. अरविंद कुमार तथा भारतीय लघु धान्य फसल अनुसंधान संस्थान की ओर से वैज्ञानिक डॉ. हरिप्रसन्न ने हस्ताक्षर किये। इन समझौतों पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने हस्ताक्षर किये। इस अवसर पर कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी, वैज्ञानिकगण तथा बड़ी संख्या में लघु धान्य फसल उत्पादक प्रगतिशील कृषक उपस्थित थे।

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