
किशोर कुमार: सुरों के जादूगर की याद में — जब आवाज़ बन गई अमर पहचान
किशोर कुमार: सुरों के जादूगर की याद में — जब आवाज़ बन गई अमर पहचान
किशोर कुमार डेथ एनिवर्सरी: सुरों के जादूगर की याद में — 2678 गाने, 88 फिल्में और अनगिनत किस्से
13 अक्टूबर 1987 को हिंदी सिनेमा ने खो दिया था अपनी आवाज़ का जादूगर — किशोर कुमार। जानिए उनके जीवन, करियर, प्रेम और संघर्ष की पूरी कहानी, प्रदेश खबर के इस विशेष लेख में।
“मैं हूँ झुमरू, मैं हूँ झुमरू…” — वो आवाज़ जो आज भी गूंजती है
साल 1987 में आज ही के दिन, हिंदी सिनेमा ने अपनी आवाज़ का सबसे बड़ा जादूगर खो दिया था — किशोर कुमार। 13 अक्टूबर, उनकी पुण्यतिथि, उनके अतुलनीय योगदान को याद करने का दिन है।
किशोर कुमार ने कभी संगीत की औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन हर सुर में ऐसा जादू भरा कि सरहद पार के लोग भी उनके दीवाने हो गए। गायकी के साथ-साथ उन्होंने अभिनय, निर्देशन और संगीत रचना में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी।
खंडवा से मुंबई तक: आभास का किशोर कुमार बनना
4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्मे आभास कुमार गांगुली, आगे चलकर ‘किशोर कुमार’ बने। चार भाई-बहनों में सबसे छोटे, किशोर अपने बड़े भाई अभिनेता अशोक कुमार के कहने पर बॉम्बे (अब मुंबई) पहुंचे।
- शुरुआत: गायक बनने की चाह रखने वाले किशोर को उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने अभिनय की राह दिखाई।
- पहला रोल: पहली फिल्म “शिकारी” (1946) में एक छोटा-सा रोल करते हुए उनका नाम ‘आभास कुमार’ ही था।
- नया नाम: इसी फिल्म के बाद उन्हें नया नाम मिला — किशोर कुमार।
पहला गाना, और फिर इतिहास
किशोर कुमार को असली पहचान 1948 में मिली, जब संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने उन्हें फिल्म “जिद्दी” में गाने का मौका दिया। यह गीत अभिनेता देव आनंद पर फिल्माया गया था। इसके बाद उन्होंने योडलिंग (Yodelling) स्टाइल में गाने शुरू किए — जो जल्द ही उनका सिग्नेचर स्टाइल बन गया।
2678 गाने, 88 फिल्में और अनगिनत अवॉर्ड
किशोर कुमार का करियर आंकड़ों से कहीं ज्यादा है, लेकिन उनकी उपलब्धियां विस्मयकारी हैं:
‘हे तलवार, दे दे मेरे आठ हजार’ — मशहूर किस्सा
किशोर दा अपने जिंदादिल स्वभाव के लिए जाने जाते थे। निर्माता आर.सी. तलवार से पारिश्रमिक को लेकर हुए विवाद के बाद, किशोर दा हर सुबह उनके घर के सामने खड़े होकर चिल्लाते थे: “हे तलवार, दे दे मेरे आठ हजार!” यह घटना उनके मस्तमौला व्यक्तित्व का प्रतीक बन गई।
‘चलती का नाम गाड़ी’: टैक्स बचाने से बनी क्लासिक
किशोर कुमार ने टैक्स बचाने के लिए अपने भाईयों अशोक और अनूप कुमार के साथ मिलकर ‘चलती का नाम गाड़ी’ (1958) बनाई थी। उन्हें लगा था कि फिल्म फ्लॉप हो जाएगी, लेकिन यह बेमिसाल कॉमेडी फिल्म सुपरहिट निकली और आज भी हिंदी सिनेमा की क्लासिक मानी जाती है।
‘आराधना’ से करियर की नई ऊंचाई
फिल्म आराधना (1969) ने उनके करियर को एक नई दिशा दी। आर.डी. बर्मन के संगीत में गाए गए ये गीत — “रूप तेरा मस्ताना” और “मेरे सपनों की रानी” — ने किशोर कुमार को रातों-रात सुपरस्टार बना दिया। यह गाना पहले मोहम्मद रफी को मिलने वाला था, लेकिन इसे किशोर दा ने गाकर इतिहास रच दिया।
‘हाफ टिकट’ में खुद से डुएट!
फिल्म ‘हाफ टिकट’ के गीत “आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया” में जब लता मंगेशकर ने गाने से मना कर दिया, तो किशोर दा ने रिकॉर्डिंग में खुद ही दोनों हिस्से गाए — लड़के और लड़की की आवाज़ में! यह गाना आज भी कालजयी माना जाता है।
प्रेम और निजी जीवन के चार पड़ाव
किशोर कुमार का निजी जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने चार बार शादी की:
- रूमा घोष: पहली शादी अभिनेत्री रूमा घोष से हुई, जो जल्द ही तलाक में बदल गई।
- मधुबाला: दूसरी शादी अभिनेत्री मधुबाला से की। उन्होंने उनके लिए धर्म परिवर्तन कर ‘अब्दुल करीम’ नाम अपनाया। मधुबाला के निधन के बाद किशोर लंबे समय तक अवसाद में रहे।
- योगिता बाली: तीसरी शादी योगिता बाली से हुई, जो ज्यादा समय तक नहीं चली।
- लीना चंद्रावरकर: चौथी शादी लीना चंद्रावरकर से हुई, जो उनके अंतिम दिनों तक उनके साथ रहीं।
अंतिम सफर
13 अक्टूबर 1987 को, अपने 58वें जन्मदिन के कुछ महीने बाद, किशोर कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। संयोगवश, उन्होंने उसी दिन अपने जन्मस्थान खंडवा लौटने की इच्छा जताई थी। उसी दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे हमेशा के लिए अमर हो गए।
किशोर दा के अमर गीत
- रूप तेरा मस्ताना 🎵
- मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू 🚂
- कुछ तो लोग कहेंगे 💔
- ज़िंदगी एक सफर है सुहाना 🛣️
- चला जाता हूँ किसी की धुन में 💫
“किशोर दा चले गए, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी जिंदा है — हर धुन में, हर दिल में।”