
गोवर्धन असरानी का निधन: ‘शोले’ के मशहूर जेलर ने 84 साल की उम्र में ली अंतिम सांस, बॉलीवुड में शोक
हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और निर्देशक गोवर्धन असरानी का 84 वर्ष की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। ‘शोले’ के मशहूर जेलर के किरदार से उन्होंने दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई थी।
गोवर्धन असरानी नहीं रहे: ‘शोले’ के मशहूर जेलर ने 84 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस, बॉलीवुड में शोक की लहर
मुंबई। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, निर्देशक और हास्य कलाकार गोवर्धन असरानी, जिन्हें पूरी दुनिया ‘असरानी’ के नाम से जानती है, अब हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी से जूझने के बाद उन्होंने आज शाम करीब 3:30 बजे मुंबई के जुहू स्थित भारतीय आरोग्य निधि अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 84 वर्ष के थे।
परिवार ने पहले ही शांतिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया, जो सांताक्रूज़ श्मशान घाट में परिवार और कुछ करीबी दोस्तों की मौजूदगी में संपन्न हुआ। असरानी की मौत की खबर से बॉलीवुड जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
असरानी का जन्म जयपुर, राजस्थान में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, जयपुर से प्राप्त की। अभिनय के प्रति रुझान उन्हें मुंबई ले आया, जहाँ उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से अभिनय का प्रशिक्षण लिया। यहीं से उनके शानदार करियर की शुरुआत हुई।
असरानी ने हिंदी के साथ-साथ गुजराती फिल्मों में भी अपनी मजबूत पहचान बनाई। 1970 और 1980 के दशक में वे गुजराती सिनेमा के सबसे प्रमुख चेहरों में से एक रहे।
उन्होंने न केवल अभिनय किया, बल्कि निर्देशन और लेखन में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। वर्ष 1977 में उन्होंने ‘चला मुरारी हीरो बनने’ नामक फिल्म लिखी, निर्देशित की और उसमें मुख्य भूमिका निभाई — जो उनके संघर्षों से प्रेरित थी। इसके अलावा उन्होंने ‘सलाम मेमसाब’ (1979) जैसी फिल्मों में भी निर्देशन किया।
असरानी ने अपने पाँच दशकों से अधिक लंबे करियर में 350 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। उन्होंने ‘मेरे अपने, कोशिश, बावर्ची, परिचय, अभिमान, चुपके-चुपके, छोटी सी बात, रफू चक्कर’ जैसी फिल्मों से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी।
उनका सबसे मशहूर किरदार 1975 की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ का जेलर रहा, जिसकी डायलॉग — “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” — आज भी दर्शकों की यादों में ताजा है।
असरानी के निजी सहायक बाबूभाई के अनुसार, उन्हें चार दिन पहले फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने की शिकायत के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों के तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
बाबूभाई ने बताया, “असरानी साहब हमेशा कहते थे कि वे शांति से जाना चाहते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी मंजू जी से कहा था कि उनकी मृत्यु को कोई तमाशा न बनाया जाए।”
परिवार की ओर से अब तक कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया है, हालांकि आने वाले दिनों में एक प्रार्थना सभा आयोजित किए जाने की संभावना है।