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काली चौदस 2025: नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं? शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और काली पूजा का महत्व
दीपावली से एक दिन पहले काली चौदस पर अंधकार पर शक्ति की विजय। जानें क्यों भगवान श्रीकृष्ण ने किया था नरकासुर का वध। काली पूजा (बंगाल, असम) में मां काली को नींबू, काले तिल और लाल फूल अर्पित करने का महत्व।
काली चौदस 2025: अंधकार पर शक्ति की विजय का पर्व, आंतरिक चेतना जगाने का महत्व
नई दिल्ली: दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाली काली चौदस (जिसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं) केवल दीपों की सजावट का दिन नहीं है, बल्कि यह अंधकार पर शक्ति की विजय का महान प्रतीक है। यह पर्व आध्यात्मिक रूप से आंतरिक अंधकार को मिटाने और चेतना के प्रकाश को जगाने की रात मानी जाती है।
पौराणिक और क्षेत्रीय महत्व
इस तिथि का पौराणिक और क्षेत्रीय महत्व अत्यंत विशिष्ट है:
- पौराणिक मान्यता: माना जाता है कि इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्ट राक्षस नरकासुर का वध किया था। नरकासुर के वध से धर्म की पुनः स्थापना हुई और संपूर्ण जग में प्रकाश फैला। इसी कारण इसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है।
- क्षेत्रीय पूजा: पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में इस दिन को विशेष रूप से काली पूजा के रूप में मनाया जाता है।
मां काली की पूजा और फल
काली चौदस की रात भक्त मां काली की आराधना करते हैं ताकि जीवन से नकारात्मकता दूर हो और आत्मबल प्राप्त हो।
- अर्पण विधि: भक्त देवी काली को श्रद्धापूर्वक लाल फूल, नींबू, काले तिल और तेल के दीप अर्पित करते हैं।
- फल: माना जाता है कि यह पूजा व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करती है और जीवन के हर क्षेत्र से नकारात्मकता, भय तथा शत्रु बाधाओं को दूर करती है।
काली चौदस का पर्व हमें यह संदेश देता है कि बाहरी दीपों की सजावट के साथ-साथ हमें अपने मन के अंधकार को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा को जगाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।