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Supreme Court आदेश: सोशल मीडिया UGC के लिए प्रि-स्क्रीनिंग तंत्र का मसौदा 4 सप्ताह में तैयार

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले यूज़र-जनरेटेड कंटेंट के लिए प्रि-स्क्रीनिंग मैकेनिज्म तैयार करने का आदेश दिया है। I&B मंत्रालय चार सप्ताह में मसौदा बनाएगा। कोर्ट ने कहा कि पोस्ट-फैक्टो कार्रवाई पर्याप्त नहीं है।

UGC कंटेंट पर प्रि-स्क्रीनिंग तंत्र बनेगा: सुप्रीम कोर्ट ने I&B मंत्रालय को चार सप्ताह में मसौदा तैयार करने का निर्देश दिया

Supreme Court on Social Media Content Regulation:
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अपलोड होने वाले यूज़र-जनरेटेड कंटेंट (UGC) को लेकर केंद्र सरकार को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। शीर्ष अदालत ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (I&B) को चार सप्ताह के भीतर प्रि-स्क्रीनिंग मैकेनिज्म का मसौदा (Draft Mechanism) तैयार करने का आदेश दिया है, ताकि वायरल होकर समाज में तनाव पैदा करने वाले कंटेंट को पहले ही रोकने की व्यवस्था बनाई जा सके।

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सरकार चार सप्ताह में ड्राफ्ट तैयार करेगी

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि मंत्रालय चार सप्ताह में ड्राफ्ट बनाकर इसे सार्वजनिक सुझावों के लिए जारी करेगा।
अदालत ने निर्देश दिया—

  • मसौदा तैयार करते समय डोमेन विशेषज्ञों,
  • न्यायविदों,
  • मीडिया प्रोफेशनलों
    की मदद ली जाए।

सुप्रीम कोर्ट मसौदे और सार्वजनिक सुझावों पर विचार करने के बाद अगली सुनवाई करेगा।


OTT और ब्रॉडकास्टर का तर्क—“हमारे पास पहले से ही सेल्फ-रेगुलेशन कोड है”

OTT प्लेटफॉर्म और ब्रॉडकास्टर्स ने दलील दी कि उनके पास पहले से ही सेल्फ-रेगुलेशन कोड मौजूद है और किसी भी प्रकार की प्रि-सेंसरशिप की आवश्यकता नहीं है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा सवाल उठाया—
“अगर व्यवस्था इतनी प्रभावी है, तो हानिकारक सामग्री बार-बार सोशल मीडिया पर कैसे दिख रही है?”

पीठ ने स्पष्ट किया कि—

  • सरकार अकेले यह तय नहीं कर सकती कि कौन-सा कंटेंट हानिकारक है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म भी पूरी तरह निष्पक्ष नहीं माने जा सकते।

“सरकार के खिलाफ बोलना राष्ट्र-विरोधी नहीं” — CJI

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा—

  • सरकार या सत्ता के खिलाफ बोलना राष्ट्र-विरोधी (Anti-National) नहीं है।
  • यह लोकतंत्र का मूल अधिकार है।

समस्या उन सामग्रियों की है जो—

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  • भड़काऊ होती हैं,
  • दुष्प्रचार फैलाती हैं,
  • और तेजी से वायरल होकर समाज में तनाव पैदा करती हैं।

एक घंटे में वायरल: कोर्ट ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उदाहरण दिया

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एक मामला याद दिलाया, जिसमें एक व्यक्ति ने पाकिस्तान समर्थक वीडियो पोस्ट किया था और एक घंटे में हटा दिया था।

कोर्ट की टिप्पणी—
“आज के दौर में एक घंटा काफी है किसी भी गलत सामग्री के वायरल होने के लिए।”

मौजूदा कानून केवल पोस्ट होने के बाद कार्रवाई की अनुमति देते हैं, जबकि देश को एक निवारक तंत्र (Preventive Mechanism) की आवश्यकता है।


‘एंटी-नेशनल’ शब्द पर विवाद

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि—

  • ‘Anti-National’ शब्द का उपयोग मनमाने ढंग से किया जाता है।
  • क्षेत्रीय विवाद या ऐतिहासिक घटनाओं पर बहस को राष्ट्र-विरोधी नहीं कहा जा सकता।

इस पर CJI ने उदाहरण दिया—

“अगर कोई भारत के किसी हिस्से को किसी पड़ोसी देश का बताकर वीडियो पोस्ट करे, तो क्या यह राष्ट्र-विरोधी नहीं होगा?”

भूषण ने जवाब दिया—

  • “सिक्किम के विलय पर सवाल उठाना एक विचार हो सकता है।”
  • “चीन के दावों पर चर्चा करना राष्ट्र-विरोधी नहीं है।”

“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण अधिकार नहीं” — सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने स्पष्ट कहा—

  • भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण (Absolute Right) नहीं है,
  • जैसे अमेरिका के First Amendment में माना जाता है।

अदालत ने यह भी कहा कि—

  • मौजूदा सेल्फ-रेगुलेटरी तंत्र यूज़र-जनरेटेड कंटेंट पर प्रभावी नहीं है।
  • गलत सूचना अपलोड होने के बाद सरकारी कार्रवाई में 1–2 दिन लग जाते हैं, तब तक वह वायरल हो चुकी होती है।

AI आधारित समाधान की संभावना

कोर्ट ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा—

  • कंटेंट क्यूरेशन,
  • हानिकारक तत्वों की पहचान,
  • भ्रामक सामग्री की ग्रेडिंग

जैसे समाधान भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


 

Ashish Sinha

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