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Ambikapur : महाराणा प्रताप जयंती पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की सरस काव्यगोष्ठी……………..

’धन्य है राणा, धन्य है चेतक, धन्य मेवाड़, हल्दीघाटी है, तीर्थों-सा पावन यहां की माटी है’

महाराणा प्रताप जयंती पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की सरस काव्यगोष्ठी……………..

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ब्यूरो चीफ/सरगुजा// महाराणा प्रताप जयंती पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, सरगुजा द्वारा बीरेन्द्रप्रभा होटल में सरस कवि-सम्मेलन का आयोजन पूर्व एडीआईएस ब्रह्माशंकर सिंह की अध्यक्षता में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शायर-ए-शहर यादव विकास, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गीतकार रंजीत सारथी, सुरेन्द्र गुप्ता, ललित तिवारी व विनोद हर्ष थे। कवि-सम्मेलन का शुभारंभ कवयित्री व लोकगायिका पूर्णिमा पटेल ने सरस्वती-वंदना से किया। तदनंतर प्रो. अजयपाल सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप ने देशवासियों को स्वाभिमान से जीना सिखाया। उनके संस्कार बहुत मज़बूत थे। उन्होंने आततायियों के सामने कभी भी सिर नहीं झुकाया व देश की एकता-अखंडता के साथ समझौता नहीं किया। उन्होंने हर परिस्थिति में अपना आत्मविश्वास व संयम बनाए रखा। स्वयं के अंदर दीन-हीन का भाव नहीं आने दिया। उनके त्याग और बलिदान के हम ऋणी हैं। वे सच्चे अर्थों में भारतीयता के प्रेरणा पुरुष हैं। ब्रह्माशंकर सिंह का कहना था कि राणा प्रताप शौर्य, पराक्रम, वीरता, त्याग-बलिदान और स्वाभिमान की जीवंत मूर्ति थे। आज भले ही उनका शरीर नहीं है परन्तु उनके विचार अमर हैं। आज भी हममें स्वाभिमान की कमी है। इसी कारण देश कईं सदियों तक गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा रहा। समाज व राष्ट्र की रक्षा के लिए स्वाभिमान अत्यंत आवश्यक है। इसकी रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का पुनीत कर्तव्य है।

काव्यगोष्ठी में माधुरी जायसवाल ने कविता- भारत मां का वीर सपूत, हर भारतीय का प्यारा, कुंवर प्रताप के चरणों में शत्-शत् नमन हमारा- प्रस्तुत कर देशभक्त प्रताप को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कवयित्री डॉ0 पुष्पा सिंह ने राणा प्रताप को भारतीय नारी की अस्मिता व सम्मान का संरक्षक बताते हुए अपने काव्य में अद्वितीय नारी-शक्ति का ज़िक्र किया- कयास मत लगाओ साहस का मेरे, अभी तो केवल पंख फैलाना है। उड़ने पर यदि आ जाऊं तो आसमां भी छोटा पड़ जाएगा। प्रताप पाण्डेय ने महाराणा प्रताप के अप्रतिम जिजीविषा व संघर्ष को उजागर किया- चेतक पर सवार ले भाला और तलवार। दुश्मनों को संघारा था, मेवाड़ बचाने वर्षों जंगल में गुजारा था। धन्य है राणा, धन्य है चेतक, धन्य मेवाड़, धन्य हल्दीघाटी है। तीर्थों-सा पावन यहां की माटी है।  डॉ. राजकुमार उपाध्याय  ने उन्हें हिन्दू हृदय सम्राट बताया- राणा प्रताप भारत भूमि के ऐसे हिन्दू नायक हैं। हिन्दू हृदय सम्राट हमारे, उनके पद वंदन लायक हैं। कविवर श्याम बिहारी पाण्डेय ने राणा प्रताप- जैसे वीरों के सदियों में जन्म लेने की बात कही- घास की रोटियां तोड़ पाई नहीं, थे बने ऐसी मिट्टी के राणा सुनो। रोंगटे सुनके होते हैं अब भी खड़े, होता सदियों में कोई है राणा सुनो। वरिष्ठ कवि उमाकांत पाण्डेय ने राणा प्रताप के विषय में सही कहा कि- राणा तो पैदा होता है, राणापन पाना मुश्किल है। वह घास की रोटी खाता है, मूंछों पर ताव जमाता है। वह बड़ी शान से जंगल में चट्टानों पर सो जाता है।

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कार्यक्रम का काव्यमय संचालन करते हुए वरिष्ठ कवि एसपी जायसवाल ने सरगुजिहा में महावीर महाराणा प्रताप के ओजस्वी व्यक्तित्व का चित्रण किया- महाराणा रहिस वीर बहादुर, बांका जबर जवान रहिस। ओ देस कर सच्चा सपूत, मेवाड़ कर भगवान रहिस। देशभक्ति कर चिन्हा रहिस, भारत कर अभिमान रहिस। युवा शायर मनव्वर अशरफी ने इंसानियत को राणा प्रताप द्वारा तरजीह देने की बात करते हुए ग़ज़ल प्रस्तुत की- काम छोटा ही सही दिल से अंजाम देता हूं। अमनो चैन की ख़ातिर इश्क़ का पैग़ाम देता हूं। लिबास मज़हब का उतारकर रख दिया मैंने। मैं इंसान हूं, इंसानियत को एहतराम देता हूं। गोष्ठी में ग़ज़लगो देववंश दुबे ने अपनी प्रेरणादायी ग़ज़ल से काफ़ी तारीफ़ बटोरी- जख़्म जितने हैं मेरे सीने में। लुत्फ़ आता है उनको जीने में। सोयी किस्मत जगा दे जब चाहे, वो चमक है मेरे पसीने में। सारा जीवन गंवा न देना तुम, मौजमस्ती में, खाने-पीने में। इन कवियों के अलावा डॉ0 योगेन्द्र सिंह गहरवार की रचना- मेरे अंदर की आग अमर, मेरे अंदर का तेज अमर, विनोद हर्ष की कविता-ऐसा कोई लम्हा तेरी दृष्टि में भले बहुत साधारण होगा, किन्तु तेरा क्षण भर मिलना मेरी लंबी पीड़ा का कारण होगा, संतोष सरल की- देखेगी दुनिया उड़ान मेरी, प्रकाश कश्यप का गीत- गीता ज्ञान की गंगा हमें तरना सिखाती है, राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ की कविता- मेरे हिय श्रीराम बसे तो क्यों भटकूं घट-घट पर मैं, कृष्णकांत पाठक की रचना- सुंदर सलोने तेरे नैन रे, मेरे मन को करे बेचैन रे,

गीता द्विवेदी की- हमें तितलियां अब लुभाती नहीं हैं, चमन का पता वो बताती नहीं हैं, सीमा तिवारी की कविता- मेरा तन-मन समर्पित है सदा देश की ख़ातिर, अजय श्रीवास्तव की- जिस दिन से जुदा हैं हम उनसे इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया, रामलाल विश्वकर्मा की- सुन रावण ऐ दुष्ट अधम, प्रभु का संदेशा लाया हूं, देवेन्द्रनाथ दुबे की हास्य कविता- यूपी में चल रहा अभी ढोजर बना मॉडल, छत्तीसगढ़ के विकास में गोबर बना मॉडल, फ़िल्मकार आनंद सिंह यादव की रचना- कोशिश कर हल निकलेगा आज नहीं तो कल, शायर-ए-शहर यादव विकास की कविता- जिं़दगी में कुछ ऐसे भी मोड़ आ गए, गै़र तो गै़र अपने भी कतरा गए और मुकुंदलाल साहू के दोहे- झुलस रहे हैं ताप से, सभी शहर औ’ गांव, बचना है इससे अगर, चल बरगद की छांव-जैसी रचनाओं को श्रोताओं ने खू़ब दाद दी। कार्यक्रम को रंजीत सारथी, सुरेन्द्र गुप्ता, ललित तिवारी, चन्द्रभूषण मिश्र, राजेन्द्र विश्वकर्मा और राजनारायण द्विवेदी ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर केके त्रिपाठी, लीला यादव, मदनमोहन मेहता, हरिशंकर सिंह, लगनदास, जनार्दन द्विवेदी, मनोज दुबे, रागिनी पाठक, मनोज दुबे, अनादि मरावी, यशराज गुप्ता, मनीष मरावी, बादल व निशा गुप्ता सहित कई काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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