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मोदी जी और उनकी वित्त मंत्री पहले आपस में तय कर ले कि उनका वित्तीय स्थिति क्या है स्वामीनाथ जायसवाल

मोदी जी और उनकी वित्त मंत्री पहले आपस में तय कर ले कि उनका वित्तीय स्थिति क्या है स्वामीनाथ जायसवाल

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नई दिल्ली प्रेस वार्ता में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी नाथ जायसवाल ने बताया01 फरवरी, 2022 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट पेश किया। यह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का चौथा बजट है। कोरोनाकाल के तीसरे वर्ष में जब रोजगार संकट चरम पर है और लोगों की जेबें खाली हैं तब गांवों में श्रमिकों का सहारा बनने वाले महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) में लगातार दूसरे वर्ष बजट प्रावधान में कटौती की गई है। बजट कम होने का सीधा मतलब श्रमदिवस के कम होने और रोजगार के अवसरों में कमी से भी है। इस बार यानी वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मनरेगा के मद में 73000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यह बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट 98000 करोड़ रुपए से 25.5 फीसदी कम है।
यह लगातार दूसरा वर्ष है जब भारी काम के मांग के बावजूद मनेरगा में बजट कटौती की गई है। इससे पहले बीते वित्त वर्ष में मनरेगा बजट में 34.5 फीसदी की कमी की गई थी। मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने वाला एक प्रमुख औजार है। खासतौर से भूमिहीन श्रमिकों और सीमांत किसानों के लिए यह एक बड़ा सपोर्ट सिस्टम है। एक्सपर्ट की मांग के बावजूद इसके बजट में कटौती की गई है।
एक दिन पहले 31 जनवरी, 2022 को पेश आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में यह साफ हुआ था कि न सिर्फ श्रम दिवस बल्कि फंड आवंटन में भी कमी आई है। वित्त वर्ष 2020-21 में कुल 1,11,171 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया था, जिसके तहत 11.2 करोड़ लोगों को 389.2 करोड़ श्रम दिवस के तहत काम मिला था। वहीं, वित्त वर्ष 2021-22 में 68,233 करोड़ रुपए का फंड रिलीज करते हुए 25 नवंबर 2021 तक 8.85 करोड़ लोगों को 240 करोड़ श्रम दिवस के तहत काम दिया गया, जबकि इस वित्त वर्ष के लिए संशोधित बजट 73000 करोड़ रुपए है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में यह कहा भी गया कि ऐसे राज्य जो प्रवासी श्रमिकों के श्रम का अस्थाई ठिकाना हैं 2021 में उन्हीं राज्यों में मनरेगा के तहत काम मांगने में बढोत्तरी हुई है। जैसे पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु प्रमुख हैं। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि यह गुत्थी सुलझ नहीं सकी है कि ऐसा क्यों हुआ। बहरहाल कोरोनाकाल में लॉकडाउन के दौरान दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों से जब करोड़ों की संख्या में प्रवासी अपने गांव-घर पहुंचे तो मनरेगा ने रोजमर्रा जीवन को चलाने में बड़ी भूमिका अदा की थी। मनरेगा में न सिर्फ बजट बल्कि शहरों में मनरेगा जैसे कामों की बढोत्तरी की आस भी इस बजट से लगाई जा रही थी। वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, यदि इसकी तुलना बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट के आवंटन 111,500 करोड़ रुपये से की जाए तो यह करीब 34.52 फीसदी कम था। बीते वित्त वर्ष 2021-22 में जब 34 फीसदी बजट किया गया था तब उसी वक्त हमने यह कहा था कि बजट में कटौती का परिणाम आने वाले वर्षों में श्रम का भुगतान में भी हो सकता है। 2020 के वक्त लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में जैसे काम की गई थी वैसी मांग पहले कभी नहीं देखी गई थी। बजट का प्रावधान सरकार के वास्तविक खर्च को प्रभावित नहीं करता है। यह मांग आधारित योजना है और सरकार ने 100 दिन रोजगार का कानूनी प्रावधान कर रखा है। यदि मांग बढ़ती है तो बजट में खर्च बढ़ाया जा सकता है। जैसे वित्त वर्ष 2021-22 में प्रावधान 73 हजार करोड़ रुपए का था जबकि संशोधित बजट में 25 हजार करोड़ रुपए बढ़ा दिए गए। निर्मला सीतारण ने बजट भाषण में कहा कि 50 फीसदी आबादी शहरों में रहती है इसलिए सरकार अपनी योजनाएं शहर केंद्रित कर रही है। इसका मतलब साफ है कि गांव और उनके संकट का समाधान शहरों पर निर्भर रहेगा, वह आत्मनिर्भर शायद नहीं बन पाएंगे। काँग्रेस की यूपीए सरकार ने 10 साल में 27 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला था, लेकिन मोदी सरकार ने 23 करोड़ लोगों को गरीबी में पहुंचा दिया। कोविड – 19 के दौरान बिना सोचे-समझे लाॅकडाऊन लगाने के कारण पिछले दो सालों में तीन-चार करोड़ युवाओं को रोजगार गंवाने पड़े। आज देश में बीते 50 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। मगर जब देश के युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हुये हमारे नेता माननीय श्री राहुल गाँधी जी सत्तारूढ़ सरकार से इन बातों पर प्रश्न पूछते हैं तो इनपर उत्तर देना तो छोड़िये मोदीजी के पिछलग्गू मंत्री कुछ अलग ही राग अलापना शुरू कर देते हैं। जैसे कि “सरकार ने गरीबों के लिए दर्जनों काम किए। पहले गरीबों का पैसा बेनामी के खाते में जाता था, मगर आज जन-धन खातों के माध्यम से गरीब किसानों और मजदूरों को उनका पैसा उनके ही खाते में प्राप्त हो जाता है। राहुल गरीबों के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं। किसानो की जमीन कब्जा करने वाले जीजा जी पर राहुल क्यों नहीं बोलते हैं। कांग्रेस पंजाब में किसानों के लिए कुछ नहीं करती है। साथ ही कि सिर्फ यूपी में दलित महिलाओं की बात क्यों करते हैं। दूसरे राज्यों में दलित अत्याचार पर क्यों नहीं बोलते हैं। वे कहते हैं कि हमने लालफीताशी को खत्म किया। दो साल तक टैक्स में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। सरकार टैक्स स्लैब में राहत देना चाहती थी लेकिन मजबूरी थी। छोटे व्यपारियों को मददद पहुंचाई गई। देश में आर्थिक स्थिरता लाने की कोशिश की गई है। टैक्स स्थिरता के लिए जीएसटी काउंसिल को धन्यवाद है। महामारी के दौरान टैक्स स्थिरता बनाए रखी। पीएम मोदी जी ने पेट्रोल के दाम घटाने के कदम उठाए। कांग्रेस सरकार में पेट्रोल के दाम समय पर नहीं घटी। मिडिल क्लास को घर दिलाने में मदद की। सरकार ने स्टार्टअप के लिए मदद की। स्टार्टअप में मिडिल क्लास के भी बच्चे हैं। रोजगार देने के प्रश्न पर सरकार की तरफ से कहा जाता है कि रोजगार देने के लिए सरकार प्रयास कर रही है। महामारी में भी 1.5 करोड़ लोगों को रोजगार दिए गये। युवा रोजगार के लिए निराश न हों। पीएम को युवाओं की चिंता है।” मगर सच कहूं तो ये सारे खोखले वादे हैं। आम बजट में गांव के गरीब के लिये कुछ नहीं है। देश मे सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। मगर ये सरकार जमीन पर आकर बात करना नही चाह रही है। यह बहुत ही निराशाजनक बजट है। यह गरीब का बजट है ही नहीं बल्कि अमीर लोगों का बजट है। मोदीजी केवल कहते हैं करते कुछ नहीं हैं। सारा देश जनता है। सिर्फ बातें करते हैं, वादे करते हैं। मगर कुछ पूरा नहीं करेंगे। किसानों की एमएसपी को लेकर कानूनी रूप देने की बात थी, नहीं किया, करने की बात छोड़िए वादा तक नहीं किया। यह आम आदमी की सरकार है ही नहीं। बेरोजगारी और महंगाई से पिस रहे आम लोगों के लिए बजट में कुछ नहीं है। बड़ी-बड़ी बाते हैं और हकीकत में कुछ नहीं है। मोदीजी मेक इन ​इंडिया, स्टार्टअप इंडिया की बात तो जरूर करते हैं, लेकिन जो रोजगार हमारे युवाओं को मिलना चाहिए वो नहीं मिला और जो था वो गायब हो गया। नरेंद्र मोदी जी की सरकार अपना ही गुणगान करते रहने एवं आम लोगों की समस्याओं की अनदेखी करने में लगी है। न तो करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद गंगा साफ हुई, न ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां आतंकी हिंसा में कमी आई, उल्टे देश भर में महंगाई और बेरोजगारी ने कोविड के कारण पहले से ही परेशान आम लोगों की कमर तोड़ कर रख दी। जबकि पीएम मोदी बोल रहे हैं कि देश बदल रहा है। मैं सच कहूं तो इतना स्वाद विहीन और गैर उत्साह वाला बजट मैंने आज तक नहीं देखा है।

Ashish Sinha

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