
देश की राजनीति स्वार्थ एवं कुर्सी तक सीमित हो गई है स्वामीनाथ जायसवाल
नई दिल्ली प्रेस वार्ता में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के अध्यक्ष स्वामीनाथ जायसवाल ने बताया जिस तरह से गांधी परिवार का त्याग तपस्या बलिदानी हमेशा देश का गौरव उन्नति और प्रगति के लिए सोचा है त्याग बलिदानी किया है आज के परिपेक्ष में राजनीति का सौदा किया जा रहा है कुर्सी के लिए देश को किस जगह खड़ा किया गया है देश के जनता खुद देख कर समझे 2004 के लोकसभा चुनाव बीत चुके थे, कांग्रेस को बहुमत तो नहीं मिली लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व में नवगठित यूपीए गठबंधन बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही थी। खबरें उठीं कि संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी को सर्वसम्मति से नेता चुन लिया गया है। राष्ट्रपति भवन की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने को लेकर चिट्ठी तैयार कर रखी जा चुकी थी.
तारीख थी 18 मई 2004, नतीजों के बाद सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को लेकर राष्ट्रपति भवन के दफ़्तर पहुंचती है और तत्कालीन महामहिम मरहूम एपीजे अब्दुल कलाम साहब से कहती है, शपथ ग्रहण से जुड़ी मेरे नाम की लिखी चिट्ठी हटवा दीजिए..; मैं सरकार बनाने के लिए दावा करने आई हूं और डॉक्टर मनमोहन सिंह को भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनित कर रही हूं..। उनके इस फैसले ने कलाम साहब को गहरे आश्चर्य में डाल दिया था, राष्ट्रपति भवन के सचिवालय को सोनिया की जगह अब मनमोहन सिंह के नाम की चिट्ठी तैयार करनी थी.!
लाज़िम है, जिस फ़ैसले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, उसपर राष्ट्रपति कलाम का आश्चर्यचकित हो जाना जायज़ था..! ये वो समय था जब सुषमा स्वराज सोनिया के प्रधानमंत्री बनने के विरोध में सिर मुड़वाने की धमकी दे रही थी, तारिक अनवर और शरद पवार जैसे अवसरवादी कांग्रेसी इन्दिरा की बहु को विदेशी बताकर उसका विरोध कर रहे थे, चुनाव में मुंह की खाने के बावजूद कई बड़े भाजपाई नेता सरेआम अपनी नीचता का उदाहरण पेश कर रहे थे।
तारीख थी 15 मई 2004, कांग्रेस तथा यूपीए के अन्य घटक दलों के निर्वाचित सांसदों की बैठक हुई जिसमें सर्वसम्मति से श्री मति सोनिया गांधी को संसदीय दल का नेता चुन लिया गया। सोनिया गांधी देश की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनने जा रहीं थी।
लेकिन नियती में तो कुछ और ही होना था, 17 मई को एक बार फिर संसदीय दल की बैठक बुलाई गई, अबकी बार ये बैठक सोनिया गांधी के निवास पर अरेंज करवाई गई। एक बड़े से हाल में मंच सजा हुआ था, कुछ ही देर में सोनिया गांधी कुछ ऐलान करने वाली थी, तभी राजदीप सरदेसाई ने खबर दी, सोनिया प्रधानमंत्री का पद अस्वीकार कर रहीं है। कुछ ही देर में सोनिया खुद आईं और बोलीं, “मैं अपने फैसले पर अडिग हूं, मैं प्रधानमंत्री का पद स्वीकार नहीं करूंगी.”
वजह जो भी रहीं हो, सोनिया ने प्रधामनंत्री का पद ठुकरा दिया था, हॉल में खड़े सभी लोग अवाक रह गए, देखते ही देखते यूपीए गठबंधन के अन्य बड़े नेता वहां पहुंच चुके थे। दस जनपथ के बाहर कार्यकर्ताओं का बड़ा हुजूम उमड़ पड़ा था। लालू प्रसाद यादव ने ऐलान कर दिया कि “अगर सोनिया जी पीएम नहीं बनेंगी तो मैं उनके घर से नहीं हटूंगा भले पुलिस से मुझे फिकवा दिया जाए.”
अगले दिन सेन्ट्रल हाल में संसदीय दल की पुनः बैठक हुई, सोनिया गांधी ज़िंदाबाद के नारे से सेंट्रल हॉल गूंज रहा था, मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी भी मंच पर मौजूद थे। पूरा देश सोनिया को सुनने के लिए बेताब हो रहा था, इसी बीच वो आई और बोलीं,” मुझे हमेशा से लगता था कि जब कभी ऐसी स्थिति सामने आएगी तो मैं अंतरात्मा की आवाज सुनूंगी और मेरी अंतरात्मा इस वक्त कह रही है कि मुझे इस पद को अस्वीकार कर देना चाहिए”.
सोनिया गांधी की ओर से मनमोहन सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा गया। तकरीबन छे साल बाद कांग्रेस सत्ता में आई थी, लेकिन सोनिया के एक फैसले ने बड़े बड़ों के पांव ठिठका दिए थे। लेकिन कार्यकर्ताओं का जोश अब अंदोलन का रुप लेने लगा था, सोनिया के समर्थन में पूरे देशभर से चक्का जाम, भूख हड़ताल और धरना-प्रदर्शन की खबरें आने लगी। कार्यकर्ताओं ने आत्महत्या करने की धमकी दी लेकिन सोनिया फिर भी नहीं हिली।
प्रधानमंत्री का पद ठुकराने के बाबजूद सोनिया गांधी देश की सबसे ताकतवर नेता बन चुकी थी। उनके बलिदान ने पक्ष-विपक्ष समेत पूरे देश को सन्न कर दिया था। हालांकि सोनिया ने इस देश के लिए एक बलिदान और दिया था, जो किसी प्रधानमंत्री के कुर्सी से कई ज्यादा बड़ा था और वो था अपने पति का बलिदान, राजीव का बलिदान..!
बहरहाल, इस देश के लिए सोनिया का बलिदान अक्षुण्ण है, भारत के प्रति उनका समर…