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राजा भैया ही नहीं राजकुमार बृजेश सिंह की प्रेम कहानी के लिए भी मशहूर है प्रतापगढ़, स्टालिन की बेटी से लगा बैठे थे दिल, जानें पूरा किस्सा

राजा भैया ही नहीं राजकुमार बृजेश सिंह की प्रेम कहानी के लिए भी मशहूर है प्रतापगढ़, स्टालिन की बेटी से लगा बैठे थे दिल, जानें पूरा किस्सा

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जनसत्ता के प्रवक्ता के अनुसार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के राजकुमार बृजेश सिंह की स्टालिन की बेटी स्वेतलाना से प्रेम कहानी के किस्से सीमा पार विदेश तक मशहूर हैं। बृजेश की अस्थियां लेकर भारत आ गई थीं स्वेतलाना।

उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई हैं। इन सरगर्मियों के केंद्र में प्रतापगढ़ जिला भी है। इस जिले की राजनीति दो राजघरानों, भदरी और कालाकांकर के इर्दगिर्द घूमती रही है। इन दोनों राजघरानों से जुड़े तमाम किस्सों की अक्सर चर्चा होती रहती है। इन्हीं में से एक किस्सा कालाकांकर के राजकुमार रहे बृजेश सिंह और रूस के ताकतवर नेता स्टालिन की बेटी स्वेतलाना के प्रेम से जुड़ा है।

कैसे हुई थी स्वेतलाना से मुलाकात? बृजेश सिंह की गिनती भारत के बड़े कम्युनिस्ट नेताओं में होती थी। उन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंक दिया था और इसकी कीमत भी चुकानी भी पड़ी थी। अंग्रेजी हुकूमत ने बृजेश सिंह को काले पानी की सजा दे दी थी, लेकिन जिस पानी के जहाज से उन्हें ले जाया जा रहा था, उससे वो भाग निकलने में कामयाब रहे थे। इस दौरान वह बीमार हो गए और इलाज के लिए उन्हें रूस जाना पड़ा था। यहां उनकी मुलाकात स्वेतलाना से हुई थी। स्वेतलाना भी उनसे प्रेम करने लगीं, लेकिन सोवियत सरकार ने उन्हें शादी करने की अनुमति नहीं दी थी।

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भारत में रुकना चाहती थी स्टालिन की बेटी: ‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बृजेश ने भारत न लौटकर वहीं रुकने का फैसला किया और कुछ समय तक मॉस्को में ही रुक गए। अक्टूबर 1966 में यहीं उनका निधन भी हो गया। स्वेतलाना चाहती थीं कि बृजेश की अस्थियां गंगा में हिंदू रीति-रिवाज से प्रवाहित की जाएं और वह ऐसा करने के लिए भारत भी आईं।

स्वेतलाना को भारत बहुत पसंद आया और वह बृजेश की यादों के सहारे यहीं रुकना भी चाहती थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। क्योंकि सोवियत संघ में तब स्टालिन की विरोधी सरकार थी। इसलिए भारत सरकार भी उन्हें शरण देकर सोवियत से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहती थी।

ऐसे में स्वेतलाना ने सोशलिस्ट नेता राम मनोहर लोहिया से मुलाकात की। लोहिया ने स्वेतलाना की मांग के पक्ष में संसद में जोरदार भाषण दिया था। तमाम कोशिशों के बावजूद स्वेतलाना को भारत में रहने की अनुमति नहीं मिली और वह अमेरिका चली गईं। अमेरिका जाने के बाद भी उनके दिल से भारत और बृजेश नहीं निकले। यहां उन्होंने बृजेश के नाम से एक स्कूल भी बनाया जो ज्यादा समय तक नहीं चला। आखिरकार साल 2011 में स्वेतलाना ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

भतीजे रहे हैं केंद्र सरकार में मंत्री: बृजेश सिंह के भतीजे दिनेश सिंह थे और उनकी गिनती उस समय देश के बड़े नेताओं में होती थी। इंदिरा गांधी की सरकार में उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई थी। उनकी बेटी रत्ना सिंह भी कांग्रेस की बड़ी नेता रही हैं हालांकि अक्टूबर 2019 में उन्होंने बीजेपी जॉइन कर ली थी। रत्ना ने साल 1996 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता था। इसके बाद लगातार दो बार इसी सीट से उन्होंने जीत का परचम बुलंद किया।

Haresh pradhan

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