
‘बड़ा न कोई देश से, करें देश से प्यार, इस पर मिटने के लिए, सदा रहें तैयार’
‘बड़ा न कोई देश से, करें देश से प्यार, इस पर मिटने के लिए, सदा रहें तैयार’
रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी
अम्बिकापुर। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर तुलसी साहित्य समिति के द्वारा शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सच्चिदानंद पाण्डेय थे।
शुभारंभ मां वीणावती के सामूहिक पूजन से हुआ। तुलसीकृत रामचरितमानस व कविवर एसपी जायसवाल द्वारा लिखित सरगुजिहा रामायण का संक्षिप्त पाठ भी किया गया। कवि प्रकाश कश्यप ने मां सरस्वती की भक्तिमयी आराधाना अपने सुमधुर गीत- मां शारदा तुझको नमन, ख़ुशियों से भर दे सबके मन, जग में कहीं ना क्लेश हो, सुख-शांति का परिवेश हो, एक हों, सब नेक हों, यह धरा सबका चमन द्वारा करते हुए आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया। वरिष्ठ साहित्यकार एसपी जायसवाल ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर सन् 1828 को वाराणसी में हुआ था। वे घुड़सवारी, तीरंदाजी व तलवारबाजी- जैसी युद्ध कलाओं में अत्यंत निपुण थीं। सन् 1842 में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ था। उनकी निःसंतान मृत्यु के कारण लार्ड डलहौजी की हड़प नीति के तहत उनके दत्तक पुत्र दामोदर राव को अंग्रेज़ों ने झांसी का उत्तराधिकारी स्वीकार नहीं किया और झांसी पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। रानी ने इसका प्रबल प्रतिरोध किया और अंग्रेज़ों से युद्ध करते हुए 18 जून 1858 को ग्वालियर के निकट कालपी में वह वीरगति को प्राप्त हो गईं। जायसवाल ने अपनी ओजमयी कविता द्वारा भी रानी लक्ष्मीबाई के अद्भुत पराक्रम का चित्रण किया- वह लहू नहीं किसी मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं। युद्ध छेड़ दी थी रानी ने, अनेक गोरे खेत रहे! वरिष्ठ व्याख्याता सच्चिदानंद पाण्डेय ने भारत को वीरों की भूमि बताते हुए कहा कि रानी लक्ष्मीबाई भी देश के इन्हीं अन्यतम वीरों में से एक थीं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि झांसी को कभी अंग्रेजों का गुलाम नहीं होने दिया और अंतिम सांस तक वह अंग्रेज़ों से लड़ती रहीं। कवयित्री व अभिनेत्री अर्चना पाठक ने रानी लक्ष्मीबाई को अप्रतिम साहसी, बुद्धिमती और प्रत्युत्पन्नमतिसंपन्न बताते हुए कहा कि हमें उनके जीवन से देश के लिए मर-मिटने, स्वाभिमान से जीने, विपत्तियों से न घबराने, धैर्य, साहस, दृढ़ निश्चय बनाए रखने तथा नारी को अबला न समझने की विपुल प्रेरणा मिलती है। उन्होंने रानी की वीरता और धीरता के विषय में ओजस्वी कविता भी प्रस्तुत की- वीरता की आन-बान-शान-सी दमकती थी, धीरता में उनका न कोई उपमान था। झांसी की थी रानी वह, सत्यता से कहूं यह- रानी के समान बस रानी का ही मान था!
गोष्ठी में वरिष्ठ गीतकार पूनम दुबे ‘वीणा’ ने अपने गीत में भारत देश को सबकी आंखों का तारा बताया- भारत ये प्यारा है, सबकी आंखों का तारा है। अखिल विश्व से न्यारा है, भगवन् देश यह हमारा है! संस्था के अध्यक्ष चर्चित दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने वतन के लिए मर-मिटने का उद्घोष अपने दोहे में किया- बड़ा न कोई देश से, करें देश से प्यार। इस पर मिटने के लिए, सदा रहें तैयार। कवयित्री माधुरी जायसवाल ने भी यही स्वर बुलंद किया- इस धरा के लिए, इस गगन के लिए, हम जिएंगे-मरंगे वतन के लिए। आओ हम सब गले-से-गले मिल चलें, सारी दुनिया में चैनों-अमन के लिए! कवयित्री अंजू प्रजापति ने देश को दिनकर के सदृश देदीप्यमान बताया- हरियाली खेतों की मुस्कान, बहती नदियों से पहचान। सूरज-सा उजाला जहां, वो मेरा भारत महान्! वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा का बलिदानी संकल्प उनकी कविता में नुमायां हुआ- वतन पर आंच न आए, भले सर चाक हो जाए। मैं जननी हूं लला तेरी, कोख मेरी न शर्माए! कवयित्री आशा पाण्डेय ने सदैव भारत में ही जन्म लेने की उत्कंठा व्यक्त की- वीर लाल बन भारती की, कर सकूं रक्षा वतन की। जब-जब जनम लूं धरा पर, वो माटी हो मेरे हिन्दुस्तान की! कवि संतोष सरल ने पहलगाम आतंकी हमले के लिए पड़ोसी पाकिस्तान को आड़े हाथों लिया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सशस्त्र प्रतिकार का पुरज़ोर समर्थन करते हुए कविता पेश की- सिंदूर मिटा जब मांओं का पहलगाम की घाटी में। मोदी ने मारा ब्रह्मोस पाकिस्तान की छाती में! आशुकवि विनोद हर्ष ने भी हुंकार लगाई- लहूलुहान कर डाली बैसारन की घाटी, अविरल रक्त की धारों में। धर्म पूछकर गोली मारी, एके सैंतालीस से मक्कारों ने! वरिष्ठ कवि चंद्रभूषण मिश्र ‘मृगांक’ की कविता- वो रूप बदलना चाहिए, वो रंग बदलना चाहिए, समय की मांग हो तो संविधान को सप्रसंग बदलना चाहिए- को श्रोताओं ने खूब सराहा। शायर-ए-शहर यादव विकास ने ग़ज़ल- जो हुआ उसे भुलाया जाए, आइए हाथ मिलाया जाए- के द्वारा सबको जीवन में वैरभाव भुलाकर, परस्पर मेल-मिलाप, सद्भावना बनाए रखने की गुज़ारिश की। गोष्ठी में कवि अम्बरीष कश्यप, रामलाल विश्वकर्मा और अमित प्रेम ने भी अपनी उत्कृष्ट कविताएं प्रस्तुत कीं। अंत में कवि प्रताप पाण्डेय की इस अदम्य जिजीविषा बनाए रखने का पैगा़म देती कविता से कार्यक्रम का यादगार समापन हुआ- आहिस्ता चल ज़िंदगी कई फर्ज़ निभाना बाक़ी है। जब सासों को थम जाना है, फिर क्या खोना, क्या पाना है! मन के ज़िद्दी बच्चे को यह बात बताना बाक़ी है! धन्यवाद ज्ञापन संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष माधुरी जायसवाल ने जताया। इस अवसर पर लीला यादव, मनीलाल गुप्ता, संजू यादव आदि काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।