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कृत्रिम उपग्रहों की भीड़ और खगोल विज्ञान

तीन साल पहले जब स्पेसएक्स नामक कंपनी ने स्टारलिंक इंटरनेट-संचार उपग्रहों की पहली खेप लॉन्च की थी, तब खगोलविद रात के आकाश की तस्वीरों को लेकर चिंतित हो गए थे। तब से अब तक हज़ारों स्टारलिंक उपग्रह लॉन्च हो चुके हैं: वर्तमान में 2,300 से अधिक स्टारलिंक्स पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। कुल कार्यशील उपग्रहों में से आधे तो यही हैं।

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उपग्रहों से उपजी समस्या को कम करने में वैज्ञानिकों ने कुछ प्रगति तो की है। जैसे, इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) उपग्रहों के जंजाल से अंधेरे और शांत आकाश के संरक्षण के लिए जल्द ही एक वेबसाइट शुरू करने जा रहा है। इस वेबसाइट में एक टूल होगा जो आकाश में उपग्रहों की स्थिति के बारे में जानकारी देगा, ताकि खगोलविद उपग्रहों से बचकर अपने अन्वेषण उपकरणों को अन्यत्र लक्ष्य कर सकें।

लेकिन साक्ष्य बताते हैं कि उपग्रहों का यह ‘महापुंज’ विश्व भर की खगोलीय वेधशालाओं और आकाश निरीक्षकों के काम में कितना व्यवधान डालेगा। उपग्रह कंपनियों को इस व्यवधान को दूर करने का अब तक कोई सटीक उपाय नहीं मिला है हालांकि स्पेसएक्स ने उपग्रहों की चमक कम करने के लिए स्टारलिंक्स पर प्रकाश-रोधी शेड्स लगाने शुरू किए थे। लेकिन नेचर के मुताबिक कंपनी ने अब यह कोशिश बंद कर दी है।

अगले कुछ वर्षों में हज़ारों नए उपग्रह प्रक्षेपित किए जाने की योजना है। और इसका खामियाजा खगोल विज्ञान को भुगतना होगा।

हाल के एक अध्ययन में पता चला है कि भविष्य में उपग्रहों के ये पुंज गर्मियों की रातों में लगभग 50 डिग्री दक्षिणी और 50 डिग्री उत्तरी अक्षांशों पर सबसे अधिक दिखाई देंगे, जहां कई युरोपीय और कनाडाई खगोलीय उपकरण स्थित हैं। अध्ययन के अनुसार यदि स्पेसएक्स और अन्य कंपनियां अपने प्रस्तावित 65,000 उपग्रह प्रक्षेपित कर देती हैं तो ग्रीष्म अयनांत (जून में) आकाश में इन अक्षांशों पर रात भर चमकीले बिंदु घूमते दिखेंगे। और सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नग्न आंखों से दिखाई देने वाले लगभग 14 में से एक तारा वास्तव में कृत्रिम उपग्रह होगा।

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उपग्रहों से उपजी चकाचौंध से एक-एक खगोलीय पिंड पर केंद्रित अध्ययन करने वाली वेधशालाओं की बजाय विस्तृत आकाश का अध्ययन करने वाली वेधशालाएं अधिक प्रभावित होंगी। कैलिफोर्निया के पालोमर पर्वत पर स्थित ज़्विकी ट्रांज़िएंट फैसिलिटी (ZTF), जो 1.2 मीटर चौड़ी दूरबीन से व्यापक आकाश का सर्वेक्षण करती है, ने अगस्त 2021 में गोधूलि बेला के दौरान जो तस्वीरें ली थीं, उनमें से 18 प्रतिशत छवियों में उपग्रह लकीरें दिखाई दे रही थी। अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या बढ़ने के साथ यह प्रतिशत भी बढ़ा है। अप्रैल 2022 में किए गए प्रारंभिक विश्लेषण में पाया गया कि 20-25 प्रतिशत छवियों में उपग्रह की लकीरें थी।

वैसे अब तक, ZTF की अधिकांश माप उपग्रह की लकीरों से प्रभावित नहीं हुई हैं क्योंकि इसकी छवि-प्रसंस्करण विधियां उपग्रहों को पहचान सकती हैं और इन्हें छुपा सकती हैं। लेकिन अन्य वेधशालाओं को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है – खासकर 8.4 मीटर चौड़ी दूरबीन वाली वेरा सी. रुबिन वेधशाला को। यह हर तीन दिन में पूरे दृश्य आकाश की तस्वीर लेगी। खगोलविद इस क्षति को कम करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं। जैसे वे एक एल्गोरिदम पर काम कर रहे हैं जो डैटा में उपग्रहों को पहचाने और उन्हें डैटा से हटा दे। लेकिन इस तरह से डैटा को ठीक करना भी मेहनत और समय मांगता है, जिससे काम प्रभावित होता है।

उपग्रहों की बढ़ती संख्या से रेडियो खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष में मलबा बढ़ने का भी खतरा है। इनका असर जीवन पर भी पड़ता है। उपग्रहों की चमक पीछे के आकाश को धुंधला कर देती है जो आकाशीय पिंडों की स्थिति देखकर रास्ता तय करने वाले जीवों को भटका सकती है। उपग्रहों की चमक मानव ज्ञान प्रणालियों में भी हस्तक्षेप कर सकती हैं। जैसे इसका असर ऐसी देशज ज्ञान प्रणालियों पर होगा जो महत्वपूर्ण घटनाओं को चिन्हित करने के लिए आकाशीय पिंडों की स्थिति पर निर्भर हैं।

बढ़ते उपग्रहों से आकाश में प्रकाश प्रदूषण बढ़ रहा है। रात के आकाश में उपग्रह के अधिकतम चमकीलेपन को लेकर फिलहाल कोई कानून नहीं हैं। खगोलीय संगठन इस समस्या पर ध्यान दे रहे हैं। स्रोत फीचर्स

Pradesh Khabar

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