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मंदिर और श्मशान की रक्षा पर बहस: मोहन भागवत के बयान से देश में हलचल

मंदिर और श्मशान की रक्षा पर बहस: मोहन भागवत के बयान से देश में हलचल

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“मंदिर और श्मशान की सुरक्षा पर मोहन भागवत का बयान, देश में छिड़ी बहस”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत के हालिया बयान ने देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा कि “मंदिर और श्मशान की रक्षा करनी होगी,” जिससे राजनीतिक गलियारों और सामाजिक क्षेत्रों में हलचल मच गई है। इस बयान के अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं और इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा रहा है।

बयान की पृष्ठभूमि

मोहन भागवत ने यह बयान एक विशेष कार्यक्रम में दिया, जहां वे भारतीय संस्कृति, परंपराओं और राष्ट्रवाद पर चर्चा कर रहे थे। उनके अनुसार, मंदिर और श्मशान भारतीय समाज के आधारभूत स्तंभ हैं और इनकी रक्षा करना आवश्यक है। उन्होंने इस संदर्भ में भारतीय इतिहास और परंपराओं का उल्लेख करते हुए कहा कि मंदिर हमारी संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक हैं, जबकि श्मशान मृतकों के प्रति सम्मान का स्थान है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने सरकार और RSS पर तीखे हमले किए। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और अन्य दलों ने इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश करार दिया।

कांग्रेस: कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा कि यह बयान देश में धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा देने वाला है। उन्होंने सवाल उठाया कि मंदिर और श्मशान की रक्षा की बात कहकर RSS आखिर किस तरह का संदेश देना चाहता है?

समाजवादी पार्टी: सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि मंदिर और श्मशान की रक्षा की बात कहने से पहले RSS को समाज में बढ़ रही असमानता, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों पर भी बोलना चाहिए।

भाजपा और संघ की सफाई: भाजपा नेताओं ने भागवत के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि इसे गलत संदर्भ में लिया जा रहा है। उनका कहना है कि RSS हमेशा से ही भारतीय संस्कृति और धरोहर की रक्षा की बात करता आया है और इस बयान का उद्देश्य भी यही था।

धार्मिक और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया

धार्मिक संगठनों ने भी इस बयान पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। हिंदू संगठनों ने इसे भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए एक आवश्यक बयान बताया, जबकि मुस्लिम और ईसाई संगठनों ने कहा कि यह बयान देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को कमजोर कर सकता है।

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हिंदू संगठनों की प्रतिक्रिया: विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल ने मोहन भागवत के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि यह हर भारतीय का कर्तव्य है कि वह अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करे।

मुस्लिम और ईसाई संगठनों की प्रतिक्रिया: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ईसाई संगठनों ने इस बयान पर सवाल उठाए और कहा कि किसी भी धार्मिक स्थान या श्मशान की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है, इसे किसी संगठन विशेष से जोड़ना उचित नहीं।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

भारत में मंदिर और श्मशान का ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक गहरा है। प्राचीन काल से ही मंदिरों को केवल पूजा-अर्चना का स्थान ही नहीं, बल्कि शिक्षा, चिकित्सा और सामाजिक एकजुटता के केंद्र के रूप में भी देखा जाता रहा है। श्मशान भी भारतीय परंपराओं में गहरी आस्था और सम्मान का प्रतीक रहा है।

सोशल मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #MohanBhagwatStatement और #MandirAurShmashan जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।

कुछ लोग इसे भारतीय संस्कृति की रक्षा से जोड़ रहे हैं।

कुछ इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश बता रहे हैं।

कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि जब देश में शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, तो मंदिर और श्मशान की बात क्यों हो रही है?

कानूनी और प्रशासनिक पहलू

सरकार के अनुसार, धार्मिक स्थलों और श्मशान की सुरक्षा एक संवैधानिक जिम्मेदारी है। भारत में धर्मस्थल संरक्षण कानून और पुरातात्विक स्मारकों की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान हैं।

मोहन भागवत का बयान एक नई बहस को जन्म दे चुका है। उनके समर्थकों के अनुसार यह बयान भारतीय संस्कृति और परंपराओं की सुरक्षा के लिए दिया गया है, जबकि उनके विरोधियों का कहना है कि यह बयान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाला है।

अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में यह बहस किस दिशा में जाती है और क्या RSS या मोहन भागवत खुद इस बयान पर कोई और स्पष्टीकरण देते हैं।

मैंने आपके अनुरोध के अनुसार लेख को विस्तृत और गहन जानकारी से भरपूर बना दिया है। यदि आप और कोई बदलाव या अतिरिक्त जानकारी जोड़ना चाहते हैं, तो बताएं!

Ashish Sinha

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