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अदानी समूह में एलआईसी के ‘बड़े निवेश’ को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

अदानी समूह में एलआईसी के ‘बड़े निवेश’ को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

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“सरकार में 40 साल रहा, इसलिए जानता हूँ कि एलआईसी को बड़े निवेश के लिए वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री की मंज़ूरी चाहिए होती है. मुझे नहीं पता कि क्यों वे लोग एक ऐसी संस्था को बर्बाद करने पर तुले हैं जो मध्यम वर्ग के लिए बेहद अहम है.

-जवाहर सरकार, राज्यसभा सांसद (तृणमूल कांग्रेस)

“एलआईसी में करोड़ों आम भारतीयों का पैसा लगा है. ये सिर्फ़ पैसा नहीं, सपने हैं. उनका सुरक्षा कवच है. इस तरह मार्केट में अफ़वाहें फैलाकर भ्रम नहीं फैलाना चाहिए. एक उद्योगपति से आपकी दुश्मनी हो सकती है, लेकिन उसका बदला करोड़ों आम लोगों की ज़िंदगी से खेलकर मत लो.”- सुषमा पांडे

अमेरिकी फ़ॉरेंसिक फ़ाइनेशियल एजेंसी हिंडनबर्ग ने पिछले हफ़्ते मंगलवार को एक रिपोर्ट जारी कर अदानी समूह की कंपनियों पर कई गंभीर आरोप लगाए. इनमें ग़लत तरीके से कंपनियों के शेयरों में उछाल लाना, फ़र्ज़ी कंपनियों के ज़रिये हवाला कारोबार और ऑडिटिंग को लेकर कुल मिलाकर 88 सवाल पूछे गए.

अदानी ने रविवार को हिंडनबर्ग के 88 सवालों का जवाब 413 पन्नों में दिया. अदानी समूह ने कहा कि हिंडनबर्ग के आरोप ‘ग़लत नीयत’ से लगाए गए हैं. अदानी समूह ने शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को ‘भारत और उसके स्वतंत्र संस्थानों पर सुनियोजित हमला’ क़रार दिया.

हिंडनबर्ग ने भी अदानी समूह पर पलटवार करते हुए कहा, “फ़्रॉड को राष्ट्रवाद के पीछे नहीं छिपाया जा सकता.”

अदानी समूह को नुक़सान

रिपोर्ट के बाद दो कारोबारी सत्रों में अदानी समूह के निवेशकों को भारी चपत लगी और नुक़सान झेलने वाले कुछ बड़े निवेशकों के नाम भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे. इनमें प्रमुख रूप से चर्चा में आई एलआईसी. कुछ लोगों का सवाल था कि एलआईसी ने अदानी की कंपनियों में ‘भारी निवेश’ किस रणनीति के तहत किया, जबकि दूसरी बीमा कंपनियां अदानी समूह में निवेश करने से लगभग बचती रही हैं.

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़, एलआईसी को छोड़कर दूसरी बीमा कंपनियों ने अदानी समूह की कंपनियों में निवेश को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. बीमा कंपनियों के अदानी समूह में कुल निवेश का 98 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा सरकारी नियंत्रण वाली एलआईसी का ही है.

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी बीएसई पर दिसंबर तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक़ अदानी इंटरप्राइज़ेज़ में एलआईसी की हिस्सेदारी 4.23 फ़ीसदी, अदानी पोर्ट्स में 9.14 फ़ीसदी, अदानी ट्रांसमिशन में 3.65 फ़ीसदी, अदानी ग्रीन एनर्जी में 1.28 फ़ीसदी, अदानी टोटल गैस में 5.96 फ़ीसदी और अदानी विल्मर में 0.04 फ़ीसदी थी.

निवेशकों की चिंता

दरअसल, अदानी के ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट से पहले भी कुछ मौकों पर आई ख़बरों ने इसके निवेशकों को चिंता में डाला है. 19 जुलाई 2021 को तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में बताया था कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी अपने नियमों के अनुपालन को लेकर अदानी समूह की कई कंपनियों की जाँच कर रहा है.

हालाँकि मंत्री ने कंपनियों के नाम नहीं बताए थे. साथ ही मंत्री ने ये भी बताया था कि राजस्व ख़ुफ़िया निदेशालय यानी डीआरआई भी अदानी समूह की कई कंपनियों की जाँच कर रहा है.

इससे पहले भी जून 2021 में एक अंग्रेज़ी अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि अदानी समूह में निवेश करने वाले मॉरीशस स्थित तीन विदेशी फ़ंडों के खातों पर रोक लगा दी गई है. इन ख़बरों के बाद अदानी समूह की कंपनियों के शेयरों में भारी बिकवाली देखने को मिली थी.

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एलआईसी निवेशकों को चिंता करनी चाहिए?

भारतीय जीवन बीमा निगम के 28 करोड़ से अधिक पॉलिसीधारक हैं. उनसे मिली रक़म को एलआईसी शेयरों, सरकारी बॉण्ड्स समेत कई संपत्तियों में निवेश करता है.

इस निवेश से मिली रक़म को वह वापस अपने पॉलिसीधारकों को देता है. एलआईसी के पॉलिसीधारकों में एक बड़ा हिस्सा मध्यम वर्ग और वेतनभोगी कर्मचारियों का है. इसलिए माना जाता है कि एलआईसी अपना निवेश पोर्टफ़ोलियो इस तरह तैयार करेगी जिससे अधिक जोख़िम न उठाते हुए पॉलिसीधारकों को उनकी रक़म मुनाफ़े के साथ वापस मिल सके.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अदानी समूह में एलआईसी के भारी निवेश पर चिंता जताई थी और आरोप लगाया था कि एलआईसी ने लोगों की बचत को वित्तीय जोख़िम में डाल दिया है.

वहीं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि अगर अदानी समूह के ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के आरोप सही हैं तो ये उन करोड़ों भारतीयों का जीवन बर्बाद कर देंगे जिन्होंने अपनी जीवनभर की कमाई एलआईसी में लगा दी थी.

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हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी और सोशल मीडिया में अदानी समूह में एलआईसी के निवेश को लेकर उठ रहे सवालों के बीच एलआईसी ने भी अपना पक्ष रखा है.

एलआईसी ने सोमवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया है कि पिछले कई वर्षों में उसने अदानी ग्रुप की कंपनियों के 30,127 करोड़ रुपये के शेयर्स ख़रीदे हैं और 27 जनवरी को उनका बाज़ार भाव 56,142 करोड़ रुपये था. शेयर्स और क़र्ज़ को मिलाकर 31 दिसंबर 2022 तक अदानी समूह की कंपनियों में उसका कुल निवेश क़रीब 35,917 करोड़ रुपये था. अभी एलआईसी का अदानी समूह में कुल निवेश 36,474 करोड़ 78 लाख रुपये है.

एलआईसी ने कहा कि उसका कुल ऐसेट अंडर मैनेजमेंट 41.66 लाख करोड़ रुपये का है और इस तरह अदानी ग्रुप में उसका निवेश कुल बुक वैल्यू का 0.975 फ़ीसदी ही है.

अदानी की मुश्किलें बढ़ीं

अमेरिकी फ़ॉरेंसिक फ़ाइनेशियल एजेंसी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद पिछले हफ़्ते दो कारोबारी सत्रों में अदानी समूह के शेयरों में तगड़ी पिटाई हुई थी.
जनवरी 2020 को ली गई इस तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के कई अरबपति बिज़नेसमैन के साथ नज़र आ रहे हैं. इनमें सुनील मित्तल, मुकेश अंबानी, रतन टाटा, आनंद महिन्द्रा, गौतम अदानी और एएम नाइक शामिल हैं

रिपोर्ट में लिखा गया है – ‘ये सिर्फ़ किसी कंपनी विशेष पर एक अवांछित हमला नहीं है, बल्कि ये भारत और उसके संस्थानों की गुणवत्ता, ईमानदारी और स्वतंत्रता के साथ भारत की महत्वाकांक्षाओं और उसके विकास की कहानी पर नियोजित हमला है.’

सोमवार को जब शेयर बाज़ार खुले तो अदानी इंटरप्राइसेज़ और अदानी पोर्ट्स के शेयरों में ज़ोरदार ख़रीदारी देखने को मिली, लेकिन अदानी पावर, अदानी टोटल गैस और अदानी ग्रीन एनर्जी के शेयर बिकवालों की गिरफ़्त से नहीं छूट सके. अदानी ग्रीन का शेयर तो सालभर के निचले स्तर पर आ गया.

हालाँकि शेयर बाज़ार विश्लेषक आसिफ़ इक़बाल ने कहा, “अदानी समूह की इन दो कंपनियों (अदानी इंटरप्राइज़ेज़ और अदानी पोर्ट्स) के शेयरों में उछाल शॉर्ट कवरिंग का नतीजा है.”

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शॉर्ट कवरिंग यानी मंदड़ियों ने निचले स्तरों से इन शेयरों में ख़रीदारी की है.

आसिफ़ कहते हैं, “अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से पिट रही अदानी समूह की कंपनियों की मुश्किल जल्द ख़त्म हो जाएगी. अदानी के 413 सवालों के जवाब के बावजूद अब भी कॉर्पोरेट गवर्नेंस से जुड़े कुछ सवाल बाकी हैं, जिनका गोलमोल जवाब ही मिला है.”

एमएससीआई बढ़ा सकता है संकट

अदानी समूह की एक और मुश्किल है जो आने वाले दिनों में ग्रुप कंपनियों के शेयरों पर नकारात्मक असर डाल सकती है. वो है मॉर्गन स्टेनली कैपिटल इंटरनेशनल (एमएससीआई) का स्टैंडर्ड इंडेक्स. इस इंडेक्स में अदानी समूह की आठ कंपनियां शामिल हैं और इनका वेटेज 5.75 प्रतिशत है.

एमएससीआई ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि अदानी समूह को हिंडनबर्ग के सवालों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. नुवामा अल्टरनेटिव एंड क्वांटिटेटिव रिसर्च के मुताबिक़, एमएससीआई अदानी समूह की कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है. इसमें इन कंपनियों के शेयरों का वेटेज कम करना शामिल है.

अगर ऐसा हुआ तो विदेशी निवेशकों का भरोसा कम होगा. रिसर्च फ़र्म के अनुसार, अगर वेटेज कम हुआ तो अदानी के शेयरों में 1.5 अरब डॉलर की बिकवाली हो सकती है.

आसिफ़ कहते हैं, “एमएससीआई की वेटेज घटाने या शेयरों को इंडेक्स से बाहर करने की एक प्रक्रिया है. जब तक फ़ीडबैक प्रक्रिया पूरी नहीं होती, वो शायद ऐसा फ़ैसला न ले. अगर शेयरों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव आता है तो इन शेयरों के इंडेक्स से बाहर होने का ख़तरा है.”

क़र्ज़ का बोझ

हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में ये भी दावा किया था कि अदानी समूह पर क़र्ज़ का भारी बोझ है. हालांकि गौतम अदानी ने पिछले दिनों एक इंटरव्यू में पूछा गया था कि उन पर दो लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ है और वो जनता के पैसों से अपने कारोबार को बढ़ा रहे हैं. उन्होंने इस पर भी अपना पक्ष रखा और ऐसे दावों को ‘ग़लत’ बताया.

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उन्होंने कहा था, “लोग तथ्यों को जाने बिना ही अपनी चिंता जताने लगते हैं. सही बात ये है कि नौ साल पहले हमारे कुल क़र्ज़ में 86 फ़ीसदी हिस्सा भारतीय बैंकों का था जो अब घटकर 32 फ़ीसदी रह गया है. हमारे क़र्ज़ का तक़रीबन 50 फ़ीसदी हिस्सा अब इंटरनेशनल बॉण्ड्स से है.”

इस बीच, एक विदेशी इक्विटी फ़र्म सीएलएस ने भी एक रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट के अनुसार, अदानी समूह की कंपनियों अदानी इंटरप्राइज़ेज़, अदानी पोर्ट्स, अदानी पावर, अदानी ग्रीन और अदानी ट्रांसमिशन पर कुल 2.1 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ है. हालाँकि रिपोर्ट ने मान है कि अदानी समूह का जितना कुल क़र्ज़ है उसमें से 40 फ़ीसदी से भी कम लोन भारतीय बैंकों से लिया गया है.

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