
माँ महामाया सहकारी शक्कर कारखाने के निजीकरण का विरोध, गन्ना किसानों और जनप्रतिनिधियों ने जताई कड़ी आपत्ति
माँ महामाया सहकारी शक्कर कारखाने के निजीकरण का विरोध, गन्ना किसानों और जनप्रतिनिधियों ने जताई कड़ी आपत्ति
अंबिकापुर, 29 मार्च 2025 – छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा माँ महामाया सहकारी शक्कर कारखाना को निजी स्वामित्व या पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत सौंपने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध शुरू हो गया है। क्षेत्र के गन्ना किसान, सहकारी कारखाने के शेयरधारक और आम सदस्य सरकार के इस कदम के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। उन्होंने इस फैसले को किसानों के आर्थिक हितों और सहकारिता आंदोलन के मूल उद्देश्यों के खिलाफ बताया है।
पूर्व उप मुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव, पूर्व मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, पूर्व सांसद खेलसाय सिंह, पूर्व विधायक पारसनाथ राजवाड़े और प्रीतम राम सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने इस फैसले पर गहरी असहमति जताई है। इन नेताओं का कहना है कि सहकारी शक्कर कारखाना गन्ना किसानों की सामूहिक भागीदारी और उनके आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था, लेकिन अब इसे निजी हाथों में सौंपने से किसानों को बड़ा नुकसान होगा।
गन्ना किसानों के आर्थिक हितों पर खतरा
गन्ना किसानों ने शक्कर कारखाने की स्थापना में आर्थिक योगदान दिया था। कारखाने की 50 प्रतिशत लागत किसानों ने शेयरों के माध्यम से दी थी, जबकि शेष 50 प्रतिशत सरकार द्वारा ऋण के रूप में उपलब्ध कराया गया था। इस सहकारी मॉडल के तहत स्थानीय गन्ना किसानों को प्राथमिकता देते हुए उनका आर्थिक विकास सुनिश्चित किया गया था।
सहकारिता अधिनियम के अनुसार, किसी भी सहकारी संस्था के स्वामित्व परिवर्तन के लिए सदस्यों की दो-तिहाई बहुमत से सहमति आवश्यक होती है। लेकिन इस प्रस्ताव को बिना आम सभा बुलाए पारित किया गया, जो कि सहकारी उद्देश्यों और किसानों के हितों के खिलाफ है।
निजीकरण से किसानों और श्रमिकों के लिए संकट
गन्ना किसानों और सहकारी समिति के सदस्यों का कहना है कि अगर कारखाने को निजी स्वामित्व में सौंपा गया, तो स्थानीय गन्ना किसानों, कर्मचारियों और श्रमिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। जब सहकारी संगठन स्थानीय समुदाय के हितों को ध्यान में रखकर संचालित होते हैं, तो कॉर्पोरेट संस्थाएं केवल लाभ कमाने पर ध्यान देती हैं। इससे छोटे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल सकेगा और स्थानीय श्रमिकों की नौकरियां भी संकट में पड़ जाएंगी।
पूर्व उप मुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने कहा,
“यह कारखाना सहकारी मॉडल के तहत किसानों के हितों को देखते हुए बनाया गया था। यदि इसे निजी हाथों में दिया जाता है, तो यह किसानों और स्थानीय मजदूरों के लिए घातक साबित होगा। सरकार को इस प्रस्ताव पर पुनर्विचार करना चाहिए।”
सहकारी संस्थाओं की मूल भावना पर चोट
सहकारी संगठनों का उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ नहीं होता, बल्कि सामुदायिक विकास और सामूहिक जिम्मेदारी भी इसमें शामिल होती है। गन्ना किसानों का कहना है कि यदि कारखाने को निजी संस्थानों को सौंप दिया जाता है, तो यह निर्णय स्थानीय समुदाय की भागीदारी को समाप्त कर देगा और कॉर्पोरेट शासन प्रणाली को बढ़ावा देगा, जिससे किसानों के अधिकारों पर संकट आ सकता है।
पूर्व मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा,
“सरकार द्वारा प्रस्तावित यह निजीकरण किसानों की आत्मनिर्भरता और सहकारी संगठनों की भावना पर चोट करने जैसा है। सहकारी संस्थान केवल उद्योग नहीं हैं, बल्कि यह एक सामूहिक आंदोलन है, जिसे कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।”
स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
माँ महामाया सहकारी शक्कर कारखाना न केवल गन्ना किसानों की आर्थिक रीढ़ है, बल्कि यह स्थानीय श्रमिकों को भी रोजगार के हजारों अवसर प्रदान करता है। यदि इसे निजी हाथों में दे दिया गया, तो संभावना है कि निजी कंपनियां अपने व्यावसायिक लाभ को प्राथमिकता देंगी और स्थानीय श्रमिकों की अनदेखी करेंगी।
पूर्व सांसद खेलसाय सिंह ने कहा,
“यह सहकारी कारखाना स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। इसके निजीकरण से न केवल गन्ना किसानों को नुकसान होगा, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के आर्थिक विकास को प्रभावित करेगा।”
सहकारी अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव
छत्तीसगढ़ सहकारी सोसाइटी अधिनियम 1960 के अनुसार, सहकारी समितियों का उद्देश्य सामूहिक लाभ और लोकतांत्रिक प्रबंधन को बढ़ावा देना है, न कि निजी स्वामित्व को सौंपना। अधिनियम में किसी भी सहकारी संपत्ति या कारखाने को निजी कंपनियों को हस्तांतरित करने का प्रावधान नहीं है। इस संदर्भ में सहकारिता विभाग द्वारा प्रस्तावित यह बदलाव सहकारी अधिनियम के उद्देश्यों के खिलाफ है।
पूर्व विधायक पारसनाथ राजवाड़े ने कहा,
“सरकार को सहकारी अधिनियम की भावना को बनाए रखना चाहिए और इस प्रस्ताव को तत्काल वापस लेना चाहिए। सहकारी संस्थाएं किसानों की संपत्ति हैं, न कि किसी निजी कंपनी की।”
किसानों और नेताओं की मांग
गन्ना किसानों, सहकारी समिति के शेयरधारकों और क्षेत्र के नेताओं ने सरकार से मांग की है कि –
- इस प्रस्ताव को तत्काल रद्द किया जाए और सहकारी समिति के सदस्यों के साथ चर्चा कर कोई भी निर्णय लिया जाए।
- सरकार गन्ना किसानों और सहकारी कारखानों को मजबूत करने की दिशा में काम करे, न कि उन्हें निजी कंपनियों के हाथों सौंपे।
- सहकारी समिति के संविधान के अनुसार दो-तिहाई बहुमत से आम सहमति के बिना कोई भी निर्णय न लिया जाए।
- स्थानीय किसानों और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए और उन्हें शक्कर कारखाने के संचालन में प्राथमिकता दी जाए।
माँ महामाया सहकारी शक्कर कारखाने को निजी हाथों में सौंपने के फैसले ने क्षेत्र के किसानों और सहकारी संस्था के सदस्यों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। गन्ना किसान और सहकारी संगठन के सदस्य इसे स्थानीय हितों के खिलाफ बताते हुए इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं।
पूर्व उप मुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव, पूर्व मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, पूर्व सांसद खेलसाय सिंह, पूर्व विधायक पारसनाथ राजवाड़े और कई अन्य नेताओं ने सरकार से आग्रह किया है कि किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव को तत्काल वापस लिया जाए।
गन्ना किसानों और स्थानीय श्रमिकों के समर्थन में यह विरोध अब और तेज हो सकता है। यदि सरकार किसानों की चिंताओं को नजरअंदाज करती है, तो इस मुद्दे को लेकर बड़े स्तर पर आंदोलन खड़ा हो सकता है।