छत्तीसगढ़ताजा ख़बरेंब्रेकिंग न्यूज़राजनीतिराज्यरायपुर
Trending

छत्तीसगढ़ में खाद संकट गहराया: किसानों की बढ़ी मुश्किलें, कालाबाजारी पर सरकार बेअसर

छत्तीसगढ़ में इस खरीफ सीजन में यूरिया और डीएपी की भारी कमी से किसान संकट में हैं। सहकारी सोसाइटियों में लंबी कतारें, कालाबाजारी और बढ़ती लागत ने खेती को घाटे का सौदा बना दिया है। सरकार के नैनो खाद समाधान पर किसानों को भरोसा नहीं।

छत्तीसगढ़ में खाद संकट गहराया, कालाबाजारी से परेशान किसान

WhatsApp Image 2025-09-25 at 3.01.05 AM

रायपुर, 7 सितम्बर। खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ही छत्तीसगढ़ में खाद संकट गहराता जा रहा है। यूरिया और डीएपी की भारी कमी के कारण किसान सहकारी सोसाइटियों में लंबी कतारों में खड़े हैं, लेकिन उन्हें निराश होकर खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। खाद की कमी से परेशान किसान सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान की खेती के लिए एक एकड़ में औसतन 200 किलो यूरिया खाद की जरूरत होती है। प्रदेश में लगभग 39 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है, जिसके लिए करीब 19 लाख टन यूरिया की आवश्यकता है। लेकिन राज्य सरकार ने सहकारी समितियों के माध्यम से केवल 7 लाख टन यूरिया उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है।

यही वजह है कि किसानों की मांग और खाद की उपलब्धता में भारी अंतर है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में यूरिया की उपलब्धता प्रति एकड़ 49 किलो ही है, जबकि राष्ट्रीय औसत 68 किलो है।

कालाबाजारी से दोगुनी कीमत

खाद की कमी के चलते कालाबाजारी चरम पर है। 266 रुपए बोरी वाली यूरिया 1000 रुपए में और 1350 रुपए की डीएपी 2000 रुपए तक बिक रही है। इससे प्रति एकड़ खेती की लागत 1500–2000 रुपए तक बढ़ गई है। अनुमान है कि किसानों पर लगभग 1800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।

mantr
96f7b88c-5c3d-4301-83e9-aa4e159339e2 (1)

नैनो खाद पर संदेह

सरकार का दावा है कि पारंपरिक खाद की कमी की पूर्ति के लिए नैनो यूरिया और नैनो डीएपी उपलब्ध कराए गए हैं। सहकारी व निजी क्षेत्र को 2.91 लाख बोतल नैनो यूरिया और 2.93 लाख बोतल नैनो डीएपी बांटे गए हैं। लेकिन विशेषज्ञों और किसानों का कहना है कि इसका असर नगण्य है और इससे मात्र 1.5% की ही कमी पूरी हो पाएगी।

छोटे किसानों पर सबसे ज्यादा असर

राज्य की 1333 सहकारी समितियों से लगभग 14 लाख सदस्य जुड़े हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर लाभ मध्यम और बड़े किसानों को ही मिलता है। लघु व सीमांत किसान कालाबाजारी पर निर्भर हैं, जहां ऊंची कीमतों के कारण वे खाद खरीदने में असमर्थ हैं।

विपक्ष का आरोप

किसान संगठनों ने खाद संकट के लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि निजी क्षेत्र को खाद वितरण का 45% हिस्सा सौंपने से कालाबाजारी और ज्यादा बढ़ गई है। किसानों का आरोप है कि सरकार की “कॉर्पोरेटपरस्त नीतियां” खेती को घाटे का सौदा बना रही हैं।

Ashish Sinha

e6e82d19-dc48-4c76-bed1-b869be56b2ea (2)

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!