
बरसाना-नंदगांव में गूंजे प्रेम के लट्ठ: रंगों और रस का अद्भुत संगम!
लट्ठ, लड्डू और प्रेम के रंगों से सराबोर ब्रज की होली: बरसाना-नंदगांव की अनूठी परंपरा को देखने उमड़ा जनसैलाब
मथुरा। ब्रज की होली अपनी अनोखी परंपराओं और रंगों की बौछार के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां की होली केवल रंगों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें प्रेम, संस्कृति, परंपरा और भक्ति की अनोखी छटा देखने को मिलती है। हर साल देश-विदेश से हजारों लोग मथुरा-वृंदावन की इस अलौकिक होली का आनंद लेने पहुंचते हैं। खासकर बरसाना और नंदगांव में खेली जाने वाली लठमार होली, जिसे देखने और इसका हिस्सा बनने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक उमड़ पड़ते हैं।
राधारानी के महल में लड्डू होली का उल्लास
होली के रंगों की शुरुआत मथुरा के बरसाना स्थित श्रीजी मंदिर से होती है। यहां राधारानी के मंदिर में लड्डू होली खेली जाती है। भक्तों पर लड्डू बरसाए जाते हैं और पूरे माहौल में भक्ति और उल्लास का रंग घुल जाता है। यह परंपरा भगवान कृष्ण और राधारानी के प्रेम को दर्शाती है।
गोकुल की छड़ीमार होली का रोमांच
गोकुल की छड़ीमार होली भी दर्शनीय होती है। यहां की होली में महिलाएं पुरुषों को प्रतीकात्मक रूप से छड़ी से मारती हैं। यह कृष्ण-लीला से जुड़ी एक अनूठी परंपरा है, जिसमें भक्तगण हंसी-ठिठोली और प्रेम के संग इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
बरसाना की लठमार होली: प्रेम और परंपरा का अनूठा संगम
ब्रज की सबसे प्रसिद्ध होली में बरसाना की लठमार होली का विशेष स्थान है। मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ राधारानी और उनकी सखियों से होली खेलने बरसाना पहुंचे थे। इस दौरान राधारानी और उनकी सखियों ने कृष्ण और उनके सखाओं को लाठियों से दौड़ा-दौड़ाकर मारा था। इसी परंपरा को आज भी निभाया जाता है। बरसाना में पुरुष नंदगांव से आते हैं और महिलाएं उन्हें प्रेमपूर्वक लाठियों से मारती हैं। पुरुष स्वयं को बचाने का प्रयास करते हैं और यह पूरी लीला उल्लास और आनंद से भरी होती है।
नंदगांव में रंगों से सराबोर होली
बरसाना में होली के अगले दिन नंदगांव में इसका जवाब दिया जाता है। यहां नंदगांव की महिलाएं और बरसाना के पुरुष एक बार फिर रंगों में सराबोर होते हैं। पूरे गांव में होली के रंग और भक्तिभाव का माहौल रहता है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
रावल का हुरंगा: जब रंगों में भीगते हैं भक्त
मथुरा के रावल गांव में होली के अवसर पर हुरंगा खेला जाता है। इसमें पुरुषों पर महिलाएं रंग और पानी फेंकती हैं और वे इसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। यह परंपरा भी कृष्ण काल से जुड़ी हुई मानी जाती है। यहां प्रेम और भक्ति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
होलिका दहन: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक
रंगों की होली से पहले होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। यह परंपरा प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। इसमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है। मथुरा, वृंदावन, गोकुल और बरसाना में होलिका दहन के दौरान विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु अग्नि के चारों ओर घूमकर अपनी मनोकामनाएं प्रकट करते हैं।
रंगों की होली: भक्ति, आनंद और उमंग का पर्व
होलिका दहन के अगले दिन मथुरा, वृंदावन और गोकुल में रंगों की होली खेली जाती है। बांके बिहारी मंदिर में गुलाल और अबीर की बौछार होती है। श्रद्धालु और भक्तजन इस दिव्य आनंद में मग्न होकर भक्ति में लीन हो जाते हैं। कृष्ण जन्मभूमि, द्वारकाधीश मंदिर और इस्कॉन मंदिर में भी विशेष होली उत्सव का आयोजन किया जाता है।
देश-विदेश से उमड़ता जनसैलाब
ब्रज की होली केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस अद्भुत उत्सव को देखने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों से पर्यटक पहुंचते हैं। भारतीय संस्कृति के इस अद्वितीय पर्व को देखकर वे आनंदित हो उठते हैं।
ब्रज की होली, प्रेम और भक्ति का संगम
ब्रज की होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं, बल्कि यह कृष्ण-राधा के प्रेम, भक्ति और आनन्द का प्रतीक है। बरसाना की लठमार होली, गोकुल की छड़ीमार होली, रावल का हुरंगा और वृंदावन की रंगों की होली भारतीय संस्कृति और परंपरा की अनूठी झलक प्रस्तुत करते हैं। इस पर्व की मस्ती और भक्ति में हर कोई रंग जाता है और कृष्ण प्रेम में डूब जाता है।