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गरियाबंद की गौ-शाला में 40 गायों की मौत: कांग्रेस ने गठित की जांच समिति

गरियाबंद की गौ-शाला में 40 गायों की मौत: कांग्रेस ने गठित की जांच समिति

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गरियाबंद, 12 मार्च 2025 – छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखंड स्थित शिवबाबा कोपेश्वरनाथ गौ-शाला में लगभग 40 गायों की मौत ने हड़कंप मचा दिया है। यह घटना राज्य में गौ-शालाओं की स्थिति और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।

गायों की मौत को गंभीरता से लेते हुए छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने इस समिति के संयोजक के रूप में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू को नियुक्त किया है, जबकि पूर्व मंत्री अमितेष शुक्ल और पूर्व विधायक विनोद चंद्राकर को सदस्य बनाया गया है।

गौ-शाला में हड़कंप, स्थानीय लोग आक्रोशित
गौ-शाला में एक साथ इतनी बड़ी संख्या में गायों की मौत के बाद ग्रामीणों और गौ-सेवा से जुड़े संगठनों में आक्रोश है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से गौ-शाला में चारे और पानी की भारी कमी थी, जिसकी वजह से यह हृदयविदारक घटना हुई।

कुछ ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि गौ-शाला का संचालन अव्यवस्थित तरीके से किया जा रहा था और प्रशासन को पहले ही इसकी जानकारी दी गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

राजनीतिक हलचल तेज, कांग्रेस का आरोप
गायों की मौत पर प्रदेश कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि गौ-शालाओं की स्थिति बेहद खराब है और सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “प्रदेश में गौ-शालाओं की हालत बदतर हो चुकी है। सरकार केवल गौ-संरक्षण के नाम पर प्रचार कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गायों को पर्याप्त चारा-पानी तक नहीं मिल रहा।”

क्या प्रशासन जिम्मेदार?
इस घटना ने प्रशासनिक लापरवाही को भी उजागर किया है। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि गौ-शाला के प्रबंधन की जिम्मेदारी एक निजी संस्था के पास थी और जिला प्रशासन को इसकी नियमित निगरानी करनी चाहिए थी।

हालांकि, पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि गौ-शाला के संचालन में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की शिकायत पहले नहीं मिली थी। अब इस मामले में जांच शुरू कर दी गई है और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।

जांच समिति का कार्य और आगे की कार्रवाई
कांग्रेस द्वारा गठित जांच समिति को निर्देश दिया गया है कि वह तत्काल प्रभावित गौ-शाला का दौरा करे और वहां के हालात का आकलन करे।

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समिति के सदस्य ग्रामवासियों, गौ-शाला के कर्मचारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत कर घटना की वास्तविक स्थिति का पता लगाएंगे।

इसके बाद समिति अपनी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी को सौंपेगी और आगे की कार्रवाई पर सुझाव देगी।

गौ-शाला की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन?
गौ-शालाओं की खराब स्थिति के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं:

अपर्याप्त चारा और पानी – गौ-शालाओं में चारा-पानी की कमी एक प्रमुख समस्या बनी हुई है।
अव्यवस्थित संचालन – कई गौ-शालाओं का संचालन गैर-जिम्मेदार संगठनों के हाथ में है, जो केवल सरकारी अनुदान पर निर्भर रहते हैं।
प्रशासन की अनदेखी – सरकार और प्रशासन नियमित रूप से गौ-शालाओं की जांच नहीं कर रहे, जिससे स्थिति खराब होती जा रही है।
राजनीतिक हस्तक्षेप – गौ-संरक्षण एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है, लेकिन इसे गंभीरता से लेने के बजाय राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में लगे रहते हैं।
क्या कहता है कानून?
छत्तीसगढ़ में गौ-संरक्षण के लिए सख्त कानून मौजूद हैं। गौ-वध पर पूर्ण प्रतिबंध है और गौ-शालाओं के संचालन के लिए कई नियम बनाए गए हैं।

छत्तीसगढ़ गौ-संवर्धन बोर्ड के तहत गौ-शालाओं को नियमित वित्तीय सहायता दी जाती है, लेकिन इसके बावजूद व्यवस्थाओं में भारी लापरवाही सामने आ रही है।

गौ-संरक्षण की दिशा में जरूरी कदम
विशेषज्ञों का मानना है कि गौ-शालाओं की स्थिति सुधारने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:

गौ-शालाओं की नियमित निगरानी हो और अनियमितताओं पर तुरंत कार्रवाई की जाए।
सरकारी अनुदान का सही उपयोग हो और धनराशि सीधे गौ-शालाओं को दी जाए।
स्थानीय समुदाय को गौ-शालाओं के संचालन में शामिल किया जाए, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
गौ-शालाओं में पशु चिकित्सकों की नियुक्ति हो और बीमार गायों के इलाज की बेहतर व्यवस्था हो।
राजनीतिक दल इस मुद्दे को चुनावी एजेंडा बनाने के बजाय, वास्तविक समाधान की दिशा में काम करें।
गौ-शाला में 40 गायों की मौत ने प्रदेश की गौ-संरक्षण व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस द्वारा गठित जांच समिति इस घटना की तह तक जाने की कोशिश करेगी, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस रिपोर्ट के आधार पर कोई ठोस कार्रवाई होगी या यह मामला भी अन्य घटनाओं की तरह सिर्फ जांच और बयानबाजी तक ही सीमित रह जाएगा?

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार, प्रशासन और राजनीतिक दल इस गंभीर मुद्दे को लेकर कोई ठोस कदम उठाते हैं या नहीं।

Ashish Sinha

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