
जल संरक्षण में जनसहभागिता की महती भूमिका: हरियाली बहिनी जल यात्रा का शुभारंभ
जल संरक्षण में जनसहभागिता की महती भूमिका: हरियाली बहिनी जल यात्रा का शुभारंभ
– महिलाओं ने लिया जल संरक्षण का संकल्प, गांव-गांव पहुंचेगा जागरूकता संदेश
– आठ लाख पौधे लगाएंगी स्वसहायता समूह की महिलाएं
– जल संकट से निपटने के लिए फसल विविधीकरण और संरचनात्मक उपायों पर जोर
राजनांदगांव, 20 मार्च 2025। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर डोंगरगढ़ विकासखंड के ग्राम टाटेकसा में जल संरक्षण को लेकर एक महत्वपूर्ण पहल की गई। हरियाली बहिनी जल यात्रा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया, जिसका उद्देश्य जल संरक्षण और फसल विविधीकरण को लेकर ग्रामीणों में जागरूकता बढ़ाना है। इस अवसर पर कलेक्टर संजय अग्रवाल, पद्मश्री फूलबासन यादव और जिला पंचायत सीईओ सुरूचि सिंह उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम के तहत हरियाली बहिनी कलश लेकर गांव-गांव जाकर जल संरक्षण और फसल विविधीकरण के महत्व पर ग्रामीणों को जागरूक करेंगी। इस पहल के माध्यम से जल संकट से निपटने के लिए जनसहभागिता को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने आठ लाख पौधे लगाने का संकल्प लिया, जिससे जल स्तर बढ़ाने और पर्यावरण को संरक्षित करने में सहायता मिलेगी।
जल संरक्षण की आवश्यकता और जनभागीदारी
कलेक्टर संजय अग्रवाल ने कहा कि जिले में जल स्तर लगातार गिर रहा है, जो आने वाले समय में गंभीर संकट का कारण बन सकता है। यदि अभी से जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में पानी की कमी विकराल रूप ले सकती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कोविड-19 महामारी से सभी के सहयोग से निपटा गया, उसी तरह जल संकट से निपटने के लिए भी जनसहभागिता आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि वर्षा जल का सही प्रबंधन आवश्यक है, ताकि बारिश का पानी बहकर व्यर्थ न जाए। गांवों में तालाब, डबरी, नाला बंधान, सोकपीट और परकोलेशन टैंक जैसे संरचनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे जल को संचित कर भूजल स्तर को बनाए रखा जा सके। इसके अलावा, वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की जरूरत है, क्योंकि एक पेड़ के आसपास 40 से 50 हजार लीटर पानी संचित करने की क्षमता होती है और यह पर्यावरण को शुद्ध भी करता है।
कृषि में जल संरक्षण की रणनीति
कलेक्टर ने जल संरक्षण के लिए फसल विविधीकरण को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि जिले में 42 हजार से अधिक ट्यूबवेल पंप चालू हैं, जिससे भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। धान की खेती में अत्यधिक जल खपत होती है, जिसके कारण पानी का संकट बढ़ रहा है।
उन्होंने बताया कि एक हेक्टेयर धान की खेती में जितना पानी खर्च होता है, वह एक परिवार के पूरे वर्ष के पानी की खपत से 100 गुना अधिक होता है। ऐसे में किसानों को कम जल खपत वाली फसलों की ओर अग्रसर होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने जल संरक्षण के लिए कई परंपरागत तरीके अपनाए थे, जिनका अनुसरण करना आज के दौर में भी आवश्यक है।
महिला सशक्तिकरण और जल संरक्षण का संयोजन
पद्मश्री फूलबासन यादव ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर उपस्थित महिलाओं को जल संरक्षण की शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण न केवल सरकार की जिम्मेदारी है, बल्कि हर व्यक्ति को इसमें योगदान देना चाहिए। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि प्रत्येक घर में कम से कम एक सोकपीट का निर्माण किया जाए, जिससे जल का संचयन हो सके।
उन्होंने कहा कि भूमिगत जल को पुनर्भरण करने के लिए हमें भूजल निकालने के साथ-साथ उसे पुनः धरती के अंदर पहुंचाने के उपाय भी करने होंगे। इसके लिए समूह की महिलाओं द्वारा आठ लाख पौधे लगाए जाएंगे, जिससे न केवल हरियाली बढ़ेगी बल्कि जल संकट की समस्या भी दूर होगी।
फूलबासन यादव ने कहा कि जल संरक्षण के लिए समुदाय स्तर पर चर्चा होनी चाहिए। जब पूरे समाज की भागीदारी होगी, तब ही इस समस्या से निजात मिल सकेगी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कोरोना जैसी महामारी को जनसहयोग से हराया गया, उसी तरह जल संरक्षण को भी एक जनआंदोलन बनाना होगा।
स्वास्थ्य और पोषण से जल संरक्षण का संबंध
कार्यक्रम में महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य पर भी चर्चा की गई। कलेक्टर ने महतारी वंदन योजना के तहत महिलाओं को मिलने वाली प्रतिमाह एक हजार रुपये की राशि के उपयोग की जानकारी ली। उन्होंने महिलाओं से इस राशि का उपयोग पौष्टिक भोजन, प्रोटीन और आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के लिए करने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि पोषण अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं, माताओं और बालिकाओं को संतुलित आहार के प्रति जागरूक किया गया है। इस पहल के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं, जिसमें दो हजार से अधिक कुपोषित बच्चों को सुपोषण की श्रेणी में लाया गया है। इसी तरह जल संरक्षण के प्रति भी जागरूकता लाकर समाज में व्यापक बदलाव किया जा सकता है।
समुदाय आधारित प्रयास और योजनाएं
जिला पंचायत सीईओ सुरूचि सिंह ने कहा कि जल संरक्षण और स्वच्छता को एक साथ अपनाने की आवश्यकता है। बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट की समस्या गंभीर होती जा रही है, जिसे सामूहिक प्रयासों से हल किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के लिए गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, जिसके अंतर्गत हरियाली बहिनियों द्वारा जल संरक्षण के संदेश को घर-घर पहुंचाया जाएगा। इसके अलावा, कृषि में फसल विविधीकरण और जल पुनर्भरण प्रणाली को अपनाने पर बल दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि गर्मी के मौसम में कम पानी वाली फसलों की खेती करना जरूरी है, जिससे पानी की बचत हो सके। जल संकट से निपटने के लिए समुदाय में जागरूकता बढ़ाना अनिवार्य है।
सामूहिक प्रयास से जल संकट का समाधान
कार्यक्रम में जिला पंचायत सदस्य अनिता मंडावी, टाटेकसा के सरपंच, जनपद पंचायत सदस्य अशोक नेताम, गिरिजावती भैसा, आलोक कुमार सातपूते, सुखचंद चंद्रवंशी, मां बम्लेश्वरी जनहितकारी समिति की ममता चंद्रवंशी और ऋषि कुमार मिश्रा सहित महिला स्वसहायता समूह और बिहान समूह की सदस्याएं उपस्थित रहीं।
समारोह के दौरान जल संरक्षण और वृक्षारोपण को लेकर अनेक सुझाव दिए गए। वक्ताओं ने कहा कि जब तक समाज के सभी वर्ग जल संरक्षण में अपनी भूमिका सुनिश्चित नहीं करेंगे, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा।
हरियाली बहिनी जल यात्रा कार्यक्रम जल संरक्षण की दिशा में एक प्रभावी पहल है, जो महिलाओं के नेतृत्व में संचालित हो रही है। महिलाओं ने जल संरक्षण की शपथ लेकर इस अभियान को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है। जल संकट से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास, संरचनात्मक समाधान और कृषि में बदलाव आवश्यक हैं।
यदि जल संरक्षण को लेकर इसी तरह जनसहभागिता बनी रही, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संकट से बचाव संभव हो सकेगा। जागरूकता और सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से जल को बचाने और संरक्षित करने का यह अभियान एक नई दिशा प्रदान कर सकता है।