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“मनुस्मृति में सबके लिए धर्म है, भेदभाव नहीं – शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द”

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने श्रीविद्यामठ में व्याख्यान देते हुए कहा कि मनुस्मृति भेदभाव नहीं, समान धर्म का संदेश देती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मनुस्मृति नहीं जलाई थी, बल्कि वे संविधान से असंतुष्ट थे।

“क्या बाबा साहेब ने सच में मनुस्मृति जलाई थी? | शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द का बयान”

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वाराणसी स्थित श्रीविद्यामठ में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती का मनुस्मृति पर विशेष व्याख्यान | जानिए उन्होंने क्या कहा बाबा साहेब अंबेडकर, वेदों और धर्म के बारे में | मनुस्मृति की गहराई और महत्व पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण।

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वाराणसी / रायपुर। ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने गंगा के तट पर स्थित श्रीविद्यामठ में मनुस्मृति पर व्याख्यान करते हुए बताया कि लोग कहते है कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया, लेकिन हम स्पष्ट कर दें कि उन्होंने मनुस्मृति को नहीं जलाया, वो तो संविधान जलाना चाहते थे। शंकराचार्य जी ने आगे स्पष्ट करते हुए बताया कि बाबा साहेब ने मनुस्मृति को नहीं जलाया। वह एक ब्राह्मण गंगाधर सहस्रबुद्धे ने जलाई थी, लेकिन उस वक्त वो भी वहाँ मौजूद थे इसलिए उनका नाम आ गया।
शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद महाराज जी ने बताया कि अम्बेडकर संविधान जलाना चाहते थे। जब उनसे पूछा गया कि संविधान बनाने में तो आपकी विशेष भूमिका रही है फिर आप उसे क्यों जलाना चाहते हैं तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मैंने एक मन्दिर बनाया लेकिन उसमें यदि शैतान आकर रहने लगे तो फिर मुझे क्या करना चाहिए? बाबा साहब बाद में खुद संविधान से सन्तुष्ट नहीं थे। मनुस्मृति में तो बिना भेदभाव के सबका धर्म बताया गया है। सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसमें यदि बेटा भी कुछ गलत करता है तो उसे भी वही सजा दी जाती है जो किसी अन्य को दी जाती। शंकराचार्य जी ने कहा कि अम्बेडकरवादी लोगों को बाबा साहेब के उद्देश्यों को पूरा करने को आगे आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हर धर्म का एक ग्रन्थ होता है। जैसे इसाईयों का धर्मग्रन्थ बाइबिल है, मुसलमानों का कुरान है, इसी प्रकार हमारा भी एक ग्रन्थ वेद है, लेकिन वेद को यदि पढ़ा जाए तो 4524 पुस्तकें मिलाकर 4 वेद बनते हैं और इन्हें समझने के लिए वेदांग की आवश्यकता होती है। और ज्यादा भी नहीं एक वेदांग की यदि 500 भी पुस्तकें मानी जाए तो करीब 3000 पुस्तकें वेदांग की हो गई। इस तरीके से कुल मिलाकर 7524 पुस्तकें हो गईं। यदि वेद को भी पढ़ा जाए तो पूरा जीवन भी कम पड़ जाता है। इसलिए इसका सार जानने की आवश्यकता होती है और वेदों का जो सार है उसी को मनुस्मृति कहा जाता है।
शंकराचार्य महाराज जी ने कहा कि बुद्ध ब्राह्मण कुल में पैदा हुए फिर भी हम उनको पूजते नहीं हैं। राम व कृष्ण को क्षत्रिय कुल में पैदा होने के बाद भी हम पूजते हैं। यदि धर्म का पालन करते वक्त मौत भी आ जाए तो भी उसमें हमारा कल्याण है। इसलिए धर्म कभी नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म से ही प्रतिष्ठा मिलती है। यदि स्वर्ग में भी जाएंगे तो वहाँ भी प्रतिष्ठा मिलेगी।
उन्होंने कहा कि श्रुति व स्मृति वचन में श्रुति का ज्यादा महत्व होता है। पशु धार्मिक नहीं होता, इसलिए उसके लिए कोई धर्मशास्त्र नहीं होता। जो जैसा है उसकी प्रतिभा को समझकर उसके हिसाब से काम करवाना भी एक कला है। हमारा भारत का संविधान मनुस्मृति को पूरा सम्मान देता है। परम धर्म संसद १००८ के संगठन मंत्री साईं जलकुमार मसन्द साहिब के माध्यम उक्त जानकारी देते हुए शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने बताया कि श्रीविद्यामठ काशी में शङ्कराचार्य जी महाराज का प्रवचन प्रतिदिन सायंकाल 5 बजे से हो रहा है।

Ashish Sinha

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