
High Court Upholds Life Sentence of Mother for Killing 2-Day-Old Newborn | छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2 दिन के नवजात की हत्या के मामले में दोषी महिला की अपील खारिज
High Court Upholds Life Sentence of Mother for Killing 2-Day-Old Newborn | सामाजिक स्वीकारोक्ति बनी सजा का आधार
बिलासपुर | 3 जुलाई 2025 – छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दो दिन के नवजात शिशु की हत्या के मामले में दोषी मां की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि सामाजिक बैठक में महिला द्वारा दी गई अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति (extra-judicial confession before the community), जिसमें उसने अपने अवैध संबंध और बच्चे की हत्या की बात स्वीकार की थी, वह स्वतंत्र, बिना किसी दबाव के दिया गया बयान था और इस पर सजा आधारित होना न्यायोचित है।
🧾 मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)
यह घटना 22 अक्टूबर 2018 को रायपुर जिले (Raipur district) में हुई थी। महिला ने अपने अवैध संबंध से जन्मे बेटे की हत्या कर शव खार में फेंक दिया था। महिला के ससुर की शिकायत पर केस दर्ज किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर और गले में गंभीर चोट से मौत की पुष्टि हुई थी।
👩⚖️ ट्रायल कोर्ट का निर्णय (Trial Court’s Decision)
ट्रायल कोर्ट ने महिला को दोषी ठहराते हुए निम्नलिखित सजा सुनाई थी:
- उम्रकैद (Life Imprisonment) (IPC 302 के तहत)
- 5 साल की कैद (IPC 201 के तहत)
- 2 साल की कैद (IPC 318 – अवैध जन्म को छुपाने की कोशिश के तहत)
सह-अभियुक्त को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया गया था।
🧑⚖️ High Court में अपील और दलीलें (Appeal and Arguments in High Court)
महिला ने हाईकोर्ट में अपील दायर करते हुए तर्क दिया कि FIR में 3 महीने से ज्यादा की देरी हुई थी, ससुर ने अपने बयान से पलटी मार ली थी, कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं था, और FIR में तारीख दर्ज नहीं थी।
परंतु (However)…
कोर्ट ने पाया कि:
- महिला ने समाज की बैठक में यह स्वीकार किया कि बच्चा अवैध संबंध से हुआ था।
- सह-अभियुक्त द्वारा बच्चे को पालने से इनकार करने पर उसने बच्चे को मारकर फेंक दिया।
- यह स्वीकारोक्ति स्वेच्छा से, बिना किसी दबाव, प्रलोभन या मजबूरी के की गई थी।
- मेडिकल रिपोर्ट और अन्य गवाहों के बयानों से इस स्वीकारोक्ति की पुष्टि हुई।
📜 HC Verdict:
“Self-confession before the community, corroborated by medical evidence, holds evidentiary value.”
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु) ने सजा को वैध ठहराते हुए अपील खारिज कर दी।