
अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रासंगिकता पर पीएम मोदी के बयान से सियासत गरमाई, कांग्रेस ने जोड़ा ट्रंप से
अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रासंगिकता पर पीएम मोदी के बयान से सियासत गरमाई, कांग्रेस ने जोड़ा ट्रंप से
नई दिल्ली | 17 मार्च | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन को दिए गए साक्षात्कार में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रासंगिकता पर उठाए गए सवालों को लेकर भारतीय राजनीति में हलचल मच गई है। कांग्रेस ने इस बयान को आड़े हाथों लेते हुए आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक संगठनों की आलोचना करके पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विचारधारा का समर्थन कर रहे हैं। इस मुद्दे ने आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर एक नई बहस को जन्म दे दिया है, जहां सरकार और विपक्ष के बीच न केवल कूटनीतिक मामलों पर बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण को लेकर भी मतभेद उभरकर सामने आए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का साक्षात्कार और विवाद की जड़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन को दिए गए एक विशेष साक्षात्कार में कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। इस दौरान उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन, राजनीतिक यात्रा, वैश्विक परिदृश्य और भारत की उभरती भूमिका पर विचार साझा किए। हालांकि, उनके अंतरराष्ट्रीय संगठनों को अप्रासंगिक बताने से जुड़ी टिप्पणी पर विपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
मोदी ने कहा कि “आज के दौर में कई अंतरराष्ट्रीय संगठन अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और उन्हें खुद को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है।” उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इन संगठनों को अधिक समावेशी और निष्पक्ष होना चाहिए ताकि वे वास्तविक वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकें।
प्रधानमंत्री का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब दुनिया में संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व व्यापार संगठन (WTO) और अन्य वैश्विक संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं। कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों के बीच इन संगठनों की भूमिका पर कई देशों में बहस छिड़ी हुई है।
कांग्रेस का तीखा हमला: ‘ट्रंप की भाषा बोल रहे हैं मोदी’
प्रधानमंत्री मोदी के बयान के तुरंत बाद, कांग्रेस ने उन पर निशाना साधा। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक संगठनों को अप्रासंगिक बताकर वही भाषा बोल रहे हैं जो डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल में बोलते थे। ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूएचओ और कई अन्य संगठनों की आलोचना की थी और अब मोदी भी उसी राह पर हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि भारत हमेशा बहुपक्षवाद और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समर्थक रहा है। मोदी सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका पर सवाल उठाना, भारत की दशकों पुरानी विदेश नीति से अलग हटने जैसा है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया, “मोदी जी अपने दोस्त ट्रंप की नकल कर रहे हैं। भारत की विदेश नीति को धक्का पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका को कमजोर करना, भारत के लिए हानिकारक हो सकता है।”
मोदी सरकार का बचाव: ‘संस्थाओं में सुधार की जरूरत’
भाजपा और केंद्र सरकार के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने केवल सुधार की आवश्यकता जताई है, न कि संगठनों को पूरी तरह से खारिज किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा, वह वैश्विक वास्तविकता है। कई संगठन 20वीं सदी में बनाए गए थे, लेकिन आज 21वीं सदी की चुनौतियां अलग हैं। ऐसे में इन संस्थाओं का पुनर्गठन जरूरी है।”
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि “कांग्रेस की समस्या यह है कि वह मोदी जी के हर बयान को गलत तरीके से पेश करती है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सुधार की मांग करना कोई अपराध नहीं है। मोदी जी भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने की बात कर रहे हैं, न कि संस्थाओं को कमजोर करने की।”
अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर वैश्विक दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान केवल भारत के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि वैश्विक पटल पर भी महत्व रखता है। हाल के वर्षों में, कई देश अंतरराष्ट्रीय संगठनों की निष्पक्षता पर सवाल उठा चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र (UN):
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत और कई अन्य देशों की स्थायी सदस्यता की मांग लंबे समय से लंबित है।
इस पर अमेरिका, रूस और चीन की अलग-अलग रणनीतियां हैं, जिससे सुधार नहीं हो पा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO):
कोविड-19 महामारी के दौरान WHO की भूमिका विवादास्पद रही थी।
अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में WHO पर चीन के प्रभाव में काम करने का आरोप लगाया था।
विश्व व्यापार संगठन (WTO):
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव के कारण WTO की भूमिका कमजोर हुई है।
कई देशों का मानना है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच व्यापार नीतियों में भेदभाव किया जाता है।
इन परिस्थितियों में, मोदी का यह बयान वैश्विक संगठन सुधार की बहस को और बल दे सकता है।
चुनावी रणनीति और संभावित असर
यह पूरा विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत में लोकसभा चुनाव नजदीक हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार को घेरने के लिए इस्तेमाल कर रही है, जबकि भाजपा इसे भारत की वैश्विक भूमिका को सशक्त करने की रणनीति के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस मोदी को ट्रंप समर्थक दिखाने की कोशिश कर रही है, ताकि विपक्षी दलों को अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भाजपा के खिलाफ एकजुट किया जा सके। वहीं, भाजपा इस बयान को भारत के आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ते कदम के रूप में प्रचारित कर सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी के अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर दिए गए बयान से न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चर्चा शुरू हो गई है। कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बनाकर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा इसे वैश्विक सुधार की जरूरत से जोड़कर देख रही है।
यह बहस केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि कूटनीतिक और रणनीतिक भी है। भारत जैसे उभरते हुए देश के लिए यह आवश्यक है कि वह वैश्विक संस्थानों में अपनी भूमिका को सशक्त करे, लेकिन सवाल यह है कि क्या इन संगठनों में सुधार के लिए संवाद का रास्ता अपनाया जाएगा या फिर आलोचना की नीति अपनाई जाएगी?
आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और बहस देखने को मिल सकती है, खासकर तब जब भारत की विदेश नीति और वैश्विक दृष्टिकोण चुनावी मुद्दों का हिस्सा बनने लगे।











