
मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन की काव्यगोष्ठी……………..
कायर कभी न बनना तुम, बहाकर अपना खून-पसीना, अपना कर्तव्य निभाकर तुम, मातृभूमि की रक्षा करना.................
मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन की काव्यगोष्ठी……………..
P.S.YADAV/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन, सरगुजा के तत्वावधान में कवयित्री आशा पाण्डेय के निवास पर काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजीव गांधी स्नॉतकोत्तर महाविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जयनारायण पाण्डेय, विशिष्ट अतिथि गीतकार पूनम दुबे और अध्यक्षता सरगुजा के वरिष्ठ साहित्यकार बीडी लाल ने की। मां वीणापाणि की पूजा-अर्चना पश्चात् कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। पूनम दुबे ने सरस्वती-वंदना की शानदार प्रस्तुति दी। इस अवसर पर संगठन के द्वारा प्रकाशित तीन किताबों- नशे की प्रवृत्ति एवं उसका निदान, प्रवाहित साहित्य और अमृत अत्सव का विमोचन किया गया। प्रोफेसर जयनारायण पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि साहित्यकार को निष्पक्ष होकर समाज को उत्तरोत्तर आगे बढ़ाने की दिशा में सतत् पहल करनी चाहिए। उसे यथार्थवादी होकर सही-गलत के बीच भेद करके समाज में ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ की स्थापना का कार्य करना होगा।
उन्होंने ‘बहुत हुआ शोषण का ज़ोर, चलो चलें गांवों की ओर’ का नारा बुलंद करते हुए लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की अस्मिता की रक्षा और अपने दायित्वों के प्रति सदैव सजग और जागरूक रहने का आव्हान किया। काव्यगोष्ठी में कवयित्री गीता दुबे ने नशा मुक्ति अभियान की वकालत करते हुए, नशे से होनेवाले नुक़सानों की ओर आमजनता का ध्यान आकृष्ट किया- नशा मुक्त हो जहां हमारा, राम राज्य हो भारत सारा। नशा जो करोगे, अभिशाप होगा। घर में रहेगी न खाने की रोटी, घर के सभी बर्तन-भांड़े बिकेंगे, चोरी-चमारी का साम्राज्य होगा। अम्बरीश कश्यप ने भी सही फरमाया कि- सर पे जब इम्तिहान होता है, पढ़ते-पढ़ते बिहान होता है। कभी दिया नहीं किसी को कुछ, मुसीबतों में दान होता है। श्रृंगार के कवि कृष्णकांत पाठक अपने दर्द की दास्तान सुनाते हुए भावातुर हो उठे- मुस्कुरा कर जिए जा रहा हूं, दर्द दिल का पिए जा रहा हूं। तेरे बिन नहीं जी सकूंगा, याद तेरी लिए जा रहा हूं।
नग़मा निगार पुनम दुबे ने अपने नग़मे में प्रेम रंग भरते हुए संघर्ष और दायित्व बोध का एहसास कराया- संग-संग रहना, प्रीत रंग भरना, तेरी ख़ुशियों के लिए अब मुझे है लड़ना। तू है मेरे दिल की गुड़िया, नींद में खोई सारी दुनिया। प्रकाश कश्यप ने अपनी ग़ज़ल में मानवीय मूल्यों के पतन के बीच आदमी के पहचान खोने की बात कही- मदहोश बहुत हो रहा है आदमी अभी, नफ़रत के बीज बो रहा है आदमी अभी। हैवानियत का दौर देखकर यही लगा, पहचान अपनी खो रहा है आदमी अभी। वरिष्ठ कवि बीडी लाल ने अपनी उत्कृष्ट गीत रचना की ओजमयी प्रस्तुति देकर गोष्ठी में समां बांध दिया- युग-युग से देवों का प्यारा अपना हिन्दुस्तान संवारो। शिव, दधीचि का दान अनूठा, त्याग निराला रंतिदेव का, हरिश्चंद्र का सत्य-निर्वहन, भीष्म प्रतिज्ञा भीष्म देव की- तन-मन देकर शान संवारो। प्रेम में आकंठ डूबे गीतकार संतोषदास सरल ने अपनी माशूका को जुल्मी ज़माने की ओर इशारा किया- फेरकर हमसे नज़रें किधर जाओगे, है जफ़ा का ज़माना जिधर जाओगे। होगी चेहरे पे रौनक यकीं मान लो, मोहब्बत में मेरे निखर जाओगे।
संगठन की प्रदेश प्रभारी आशा पाण्डेय का अभिव्यक्ति का अपना अलग अंदाज़, नज़रिया है, जो उन्हें विशिष्टता प्रदान करता है। उनके आव्हान-गीत में मातृभूमि की रक्षा का स्वर मुखरित हुआ- जागो देश के लालों अब, ऐसे ना सुषुप्त रहो। मिला स्वर्णिम अवसर जब, न समय व्यर्थ करो। कायर कभी न बनना तुम, बहाकर अपना खून-पसीना। अपना कर्तव्य निभाकर तुम, मातृभूमि की रक्षा करना। डॉ0 उमेश पाण्डेय ने भारतीय सेना के शौर्य का वर्णन किया- चीनी आंख देश को तरेर रही है, भारतीय सेना इनको खदेड़ रही है। सारा कश्मीर वतन का गीत गा रहा, पीओके से पाक का क़दम उखड़ रहा। अंत में, अपने दोहों की उष्मा से ऊर्जा का संचार करने वाले कवि मुकुन्दलाल साहू ने अपने प्रेरक दोहों के द्वारा युवाओं को जीवन-पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया- रुके न गाड़ी समय की, देकर देखें हाथ। आगे बढ़ना है अगर, चलें समय के साथ। घर पर ख़ाली बैठकर, क्यों भरता तू आह। बाहर तो निकलो ज़रा, मिल जाएगी राह। उसका वैभव देखकर, होना नहीं उदास। आगे बढ़ने के लिए, तुम भी करो प्रयास। कार्यक्रम का संचालन संतोषदास सरल और आभार संगठन के संस्थापक-अध्यक्ष डॉ0 उमेश पाण्डेय ने जताया। इस अवसर पर राजेन्द्र जैन, सरस्वती पाण्डेय और आशाराम गुप्ता उपस्थित रहे।