
बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था की मार जनता लाचार स्वामीनाथ जायसवाल
नई दिल्ली प्रेस वार्ता में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी नाथ जायसवाल ने बताया आज देश की जिस तरह से अर्थव्यवस्था गिरती जा रही है देश में महंगाई दर बढ़ने से जनता लाचार है खाने के लिए नगद पॉकेट से गायब लेकिन सरकार मस्त जनता त्रस्त मोदी है तो मुमकिन है मई 2004 से लेकर 2009 और 2009 से लेकर 2014 के मई तक मनमोहन सिंह दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था 6.6% की दर से बढ़ती रही। उनके बाद मई 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 2019 में नरेंद्र मोदी की दोबारा सत्ता में वापसी हुई। आंकड़े बताते हैं कि 2014-15 से लेकर 2018-19 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 7.5 फीसदी दी दर से आगे बढ़ी। मोदी कार्यकाल में एक समय ऐसा भी आया जब जीडीपी ग्रोथ रेट 8.2 फीसदी भी रही। ये दौर था 2016-17 का जब कुछ महीने पहले ही देश में नोटबंदी लागू की गई थी। यह आंकड़ा 2011-12 से लेकर 2018-19 के बीच सबसे ज्यादा है।
लेकिन अब जिस तरह से अर्थव्यवस्था लगातार गोते मार रही है, बाजार में नकदी संकट है, निर्यात लगातार घट रहा है, औद्योगिक उत्पादन और उपभोक्ता मांग गिर रही है, कार की बिक्री ठप है तब सवाल उठता है कि मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी में कौन से प्रधानमंत्री बेहतर साबित हुए हैं। कुछ मानकों पर विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि पीएम मोदी से बेहतर मनमोहन सिंह का कार्यकाल रहा है।
इनकम टैक्स ग्रोथ रेट: व्यक्तिगत आयकर अर्थव्यवस्था की सेहत मापने का एक अनूठा पैमाना है। इससे साफ होता है कि लोगों की इनकम बढ़ रही है या नहीं। आंकड़े बताते हैं कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में सालाना टैक्स रेवेन्यू रेट 17.53 फीसदी प्रति वर्ष था जो नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में 16.85 फीसदी लक्षित किया गया है। हालांकि, यह स्थिति तब है, जब पहले के मुकाबले अब ज्यादा लोग आयकर रिटर्न दाखिल कर रहे हैं। यानी इनकम टैक्स ग्रोथ में तेजी नहीं आ सकी है।
कॉरपोरेट टैक्स ग्रोथ: मोदी सरकार ने हाल ही में कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी छूट दी है। इससे अर्थव्यवस्था पर 1.45 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। मनमोहन और मोदी काल की बात करें तो मोदी सरकार के दौरान कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन की अनुमानित दर 11.20 फीसदी है, जबकि यूपीए सरकार के दौरान यह आंकड़ा 13.09 फीसदी रहा है।
घरेलू वित्तीय बचत: यह ऐसा मानक है जो यह स्पष्ट करता है कि लोग कितनी बचत कर रहे हैं। हालांकि, इसके आंकड़े 2011-12 के बाद से ही उपलब्ध हैं। आंकड़ों के मुताबिक मनमोहन सिंह के कार्यकाल में घरेलू वित्तीय बचत 13 फीसदी की दर से बढ़ता रहा, जबकि मोदी सरकार के दौरान (2017-18 तक) यह 11.94 फीसदी की दर से बढ़ा। जहां तक शुद्ध घरेलू वित्तीय बचत की बात है तो वह मनमोहन काल में 13.79 फीसदी रही जबकि मोदी कार्यकाल (2016-17 तक) में यह मात्र 7.38 फीसदी ही रही।
सीमेंट उत्पादन: मोदी सरकार के कार्यकाल में सीमेंट उत्पादन मनमोहन युग के दौरान प्रति वर्ष 7.05% के मुकाबले 4.32% प्रति वर्ष बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि, यह हाल तब है जब मोदी सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर सड़कों के निर्माण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। यानी स्पष्ट है कि सीमेंट की खपत धीमी है। निजी क्षेत्र में यह और भी कम हो गई है।
रेलवे का यात्री किराया: रेलवे की आर्थिक सेहत भी मोदी सरकार के दौरान गिरी है। हालांकि, निजी हवाई कंपनियों का कलेक्शन मोदी सरकार में बढ़ा है। भारतीय रेलवे के यात्री किराए में मोदी सरकार के दौरान गिरावट दर्ज की गई है। मनमोहन काल में यात्री किराए में बढ़ोत्तरी का आंकड़ा 10.81 फीसदी था जो गिरकर मोदी काल में 7.32 फीसदी (अनुमानित) पर आ गया है।
दोपहिया बिक्री: मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मोटरसाइकिल बिक्री की दर सालाना 12.44 फीसदी थी जो मोदी सरकार के कार्यकाल में गिरकर 5.35 फीसदी प्रति वर्ष रह गई है। यूपीए सरकार के दौरान स्कूटर बिक्री की दर 25.7 फीसदी सालाना थी जो एनडीए शासनकाल में 13.21 फीसदी रह गई।
ट्रैक्टर बिक्री: ग्रामीण अर्थव्यवस्था खासकर किसानों के आर्थिक विकास का यह अच्छा मानक रहा है। मोदी कार्यकाल में ट्रैक्टर बिक्री की अनुमानित दर सालाना 4.49 फीसदी अंकित की गई है, जबकि मनमोहन काल में यह सालाना 15.73 फीसदी रहा है। 2013-14 में जहां कुल 6 लाख 34 हजार ट्रैक्टर की बिक्री हुई, वह मोदी काल में 2015-16 में घटकर चार लाख 94 हजार पर आ गई। यह आंकड़ा किसानी संकट को दर्शाता है।
खुदरा ऋण: बैंकों से कोई भी व्यक्ति कर्ज तभी लेता है, जब वह आशवस्त होता है कि नजदीकी भविष्य में वह उसे चुकता कर देगा। हालांकि, यह बात कॉपोरेट पर लागू नहीं होती है लेकिन खुदरा ऋण पर अक्षरश: लागू होती है। खुदरा ऋण की बात करें तो मनमोहन काल में बैंकों ने सालाना 22.47 फीसदी की दर से लोन बांटे जबकि मोदी काल में यह आंकड़ा 19.92 फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
इतना ही नहीं बल्कि जो कांग्रेस ने बनाया था, नरेद्र मोदी सरकार उसमें से 5.96 लाख करोड़ रुपये में निम्नलिखित चीजें बेचने जा रही है।
25 हवाईअड्डे
26,700 किलोमीटर राजमार्ग
6 गीगावॉट क्षमता के पनबिजली और सौर बिजली संयंत्र
कोयला खदान की 160 परियोजनाएं
8,154 किलोमीटर प्राकृतिक गैस पाइपलाइन
2.86 लाख किलोमीटर टेलीकॉम फाइबर
14,917 टेलीकॉम टॉवर
210 लाख मीट्रिक टन क्षमता के तमाम गोदाम
400 रेलवे स्टेशन
और भी कई सरकारी संपत्तियां और जमीनें।
यह सब पिछले 70 साल में बना था। खासकर एयरपोर्ट, नैशनल हाइवे, गैस पाइपलाइन, फाइबर और गोदाम मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल के बने हुए हैं। देश के तमाम नागरिकों को लगता है कि पिछले 70 साल में कुछ नहीं हुआ। लेकिन अभी अगर सरकार एक कार्यकाल और चुन ली जाती है तो हजारों की संख्या में शोध संस्थान, विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज हैं, लाखों की संख्या में डिग्री कॉलेज हैं, लाखों प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व प्राथमिक विद्यालय हैं, जिन्हें बर्बाद करके बेचा जा सकेगा। आपके मोहल्ले और गलियां हैं, जिनमें सड़कें व पार्क पहले की सरकारों ने बनवाए हैं, बिकने के बाद वहां भी एक टोल प्लाजा बन जाएगा और आप अपने घर में तभी घुस पाएंगे जब किसी गुंडे को टोल भुगतान करेंगे।
नोट- इसे रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ दलितों और पिछड़ों की ही नहीं है। यह तर्क बहुत भयानक रूप से चल रहा है कि इनके बिक जाने से आरक्षण खत्म हो जाएगा, इसलिए दलितों पिछड़ों को डूब मरना चाहिए। 50 प्रतिशत सीटें अनारक्षित भी होती हैं, इसलिए सवर्णों को भी डूब मरना चाहिए।प्राइवेट कंपनियों में सवर्ण लोग बाबू बनेंगे तो उन्हें 8,000 रुपये महीने सेलरी पर काम करना पड़ेगा और सेठ जब चाहेगा, शरीर की रीढ़ जहां खत्म होती है, वहां पर जोरदार लात मारकर निकाल देगा। तमाम आरक्षण के बावजूद अभी सरकारी संस्थानों में 80 प्रतिशत कब्जा अपर कास्ट का ही बना हुआ है।
सरकार देश बेच रही है। देसी विदेशी दोनों तरह के सेठों के हाथ। इसकी थोड़ी जिम्मेदारी कथित अपर कास्ट को भी लेनी चाहिए और उन्हें भी विरोध करना चाहिए।
इनके बेचने की रफ्तार से लगता है कि 2024 के बाद सत्ता में आने पर मोहल्ले की गलियां व पार्क ही नहीं, इन्होंने जो शौचालय बनवाए हैं, वह भी किसी कंपनी को बेच देंगे और वह कंपनी आपसे पैसे लेकर आपको हगाएगी और अगर आपने खेत में निपटने की कोशिश की तो पुलिस लगाकर आपको पीटा जाएगा।
मोदी सरकार इसी कार्यकाल में ऐसा काम करके जाएगी कि हमारी आने वाली पीढियां प्राइवेट सेक्टर की गुलाम बन जाएगी ….मोदी सरकार ने कल विभिन्न क्षेत्रों की सरकारी संपत्तियों में मोनेटाइजेशन कर कुल 6 लाख करोड़ रु. जुटाने के लक्ष्य की घोषणा की है।आलोचना होने पर कहा है कि हम बेच थोड़ी न रहे हैं हम तो लीज पर दे रहे हैं और लीज एक तय समयसीमा के लिए होगी। उसके बाद पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर सरकार के पास आ जाएगा। जिन रोड, रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट्स को लीज पर दिया जाएगा, उनका मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा।
अब सवाल यह उठता है कि यह लीज आखिर कितने सालो के लिए दी जा रही है ?…..आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि एयरपोर्ट के मामले मे यह लीज 50 सालो की है और रेलवे स्टेशन और उससे लगी जमीनें 100 साल के लिए निजी कंपनियों को लीज पर दी जाएगी
जी हां पूरे 100 सालो के लिए !
अब यह बेचे जाने से कैसे कम है आप ही फैसला कीजिए?… जब देश के पहले रेलवे स्टेशन हबीब गंज को प्राइवेट करने का फैसला हुआ तो यह लीज 45 सालो के लिए दी गयी लेकिन निजी कंपनियों को यह रास नही आया उन्होंने जिद कर के सरकार से बाकी तमाम रेलवे स्टेशन को 99 सालो के लिए लीज पर देने की शर्तों को अनुबंध में डलवा दिया
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो योजना प्रस्तुत की है उसके अंतर्गत 400 स्टेशन, 90 पैसेंजर ट्रेन, 1400 किमी के ट्रैक वह लीज पर देंने जा रही हैं, साथ ही पहाड़ी इलाकों में रेलवे संचालन भी प्राइवेट कंपनियों को सौपा जा रहा है इसमे कालका-शिमला, दार्जिलिंग, नीलगिरी, माथेरन जैसे ट्रैक शामिल हैं। इसके अलावा देश भर मे रेलवे के 265 गुड्स शेड लीज पर दिए जाएंगे। साथ ही 673 किमी डीएफसी भी निजी क्षेत्र को दी जाएगी। इनके अलावा चुनिंदा रेलवे कॉलोनी, रेलवे के 15 स्टेडियम का संचालन भी लीज पर दिया जाएगा।
हम सब जानते हैं कि तेल तिलों से ही निकलता है प्राइवेट कम्पनिया जनता का ही तेल निकाल कर ठेके की रकम की वसूली करेगी……इसके लिए मोदी सरकार ने रेलवे के यात्रियों पर यूजर चार्ज लगाने का प्रावधान पहले से ही कर दिया है शुरुआत में देश के 15 फीसदी रेलवे स्टेशनों पर यूजर चार्ज लगाया जाना है।दिल्ली में हवाई अड्डा पर देखें तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय (International) यात्रियों से अलग अलग यूजर चार्ज लिया जाता है। वह करीब 500 रुपये के करीब होता है।
यानी आप भी रेलवे स्टेशन पर लगभग 500 रु यूजर चार्ज देने की तैयारी कर लीजिए।