
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी…………
‘नारी है नारायणी, नारी-शक्ति अपार, नारी का वंदन करे, यह सारा संसार’.........
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी…………
P.S.YADAV/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर तुलसी साहित्य समिति द्वारा विवेकानंद विद्यानिकेतन में वरिष्ठ कवयित्री गीता दुबे की अध्यक्षता में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सरगुजा की वरिष्ठ साहित्यकार मीना वर्मा, विशिष्ट अतिथि पूनम दुबे, गीता द्विवेदी और आशा पाण्डेय थीं। संचालन प्रकाश कश्यप द्वारा किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मां वीणापाणि की पूजा-अर्चना से हुआ। पूनम दुबे ने सरस्वती-वंदना-विद्या की देवी हो तुम ज्ञान दो मां- की सुंदर प्रस्तुति दी। आशा पाण्डेय ने अपने दोहों में नारी को देवनदी-जैसी पावन बताते हुए उसे देवी का पूज्य स्वरूप बताया- गंगा-जैसी पाक है, देती जीवन तार। सहकर सारी पीर वो, बांटे खुशी अपार। नारी तो अबला नहीं, देवी का वह रूप। पूजी जाती विश्व में, माया बड़ी अनूप, समिति के अध्यक्ष मुकुन्दलाल साहू ने अपने दोहों में नारी को लक्ष्मी, दुर्गा की तरह बताते हुए, उसकी अपरिमित शक्तियों का बखान किया- नारी है नारायणी, नारी-शक्ति अपार। नारी का वंदन करे, यह सारा संसार। महिलाओं की शक्ति से, सबल हुआ है देश। सुख-वैभव से भर गया, मिटे अनगिनत क्लेश। अनिता मंदिलवार ने अपने दोहे में नारी को जगत् का आधार बताया- सृष्टि नहीं नारी बिना, आधा है परिवार।
नारी का सम्मान हो, नारी जग-आधार। सीतापुर से आईं स्नेहलता ‘स्नेह‘ ने महिलाओं के दुर्भाग्य पर कविता प्रस्तुत की- नहीं भइया की हूं राखी, घर-आंगन की मैं पाखी। क्यों कोख में मारी जाती हूं। हां, मैं भारत की नारी हूं। माधुरी जायसवाल ने नारी की अस्मिता और ओजस्विता से सबको अवगत कराया- गर्व से कहूंगी मैं नारी हूं, इसीलिए तो मैं सब पर भारी हूं। बुझकर बची हुई कोई राख नहीं हूं, जलती हुई एक चिंगारी हूं। आनंद सिंह यादव ने फरमाया कि – हजारों फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए, हजारों बूंद चाहिए समुंदर बनाने के लिए पर एक स्त्री ही काफी है घर को स्वर्ग बनाने के लिए। गीता द्विवेदी ने भी गर्व से कहा कि- मैं सरगुजा की बेटी हूं, सुख की शैय्या पर लेटी हूं। गीतकार रंजीत सारथी ने बेटी शीर्षक गीत सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया – बेटी हूं मां-बाप की, दुलारी हूं भाई-बंधु की। मां की गोद खेली, सखियों के संग खेली, बचपन की भोली मस्ती, याद आती गांव-गली। प्रकाश कश्यप ने समाज में बालक-बालिका समानता पर विशेष जोर देते हुए भावपूर्ण सरगुजिहा गीत की प्रस्तुति दी- चटिक कहि देबे मैना मोर संगी ले एतना तैं कहि देबे। बेटा-बेटी दुनों आंखी के राजा, संगी दुनों के जनम में बजावा बाजा। वरिष्ठ कवि बीडी लाल ने भगवान राम की माता कौशिल्या को छत्तीसगढ़ की पुत्री बताते हुए एक उम्दा कविता का पाठ किया- छत्त्तीसगढ़-कोशल की बेटी कौशल्या कहलाई, शत्-शत् उसे प्रणाम। उन्होंने ‘‘मां तो बस मां होती है’’ गीत के द्वारा मातृ-महिमा का भी मार्मिक चित्रण किया।
आज की नारी परिवार, समाज, देश हर जगह अपने बुनियादी अधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत् है। प्रेम, दया, करूणा, ममता, सेवा, त्याग, समर्पण, तितिक्षा और बलिदान की वह जीवंत मूर्ति तो है ही परन्तु अब उसकी सहनशक्ति जैसे जवाब दे रही है। अर्चना पाठक की कविता में अन्याय के विरूद्ध स्त्रियों के संघर्ष का स्वर हुंकार के रूप में साफ सुनाई दिया- इक परकटी नारी लड़ेगी आज से, हर चील से, जमके लड़ेगी बाज से। झुकती रही अन्याय के आगे सदा। रणचंडिका बन अब गिरेगी गाज-से। गीता दुबे ने कहा कि आज स्त्रियों को लेकर नगर के प्रबुद्धजनों की मानसिकता में सुधार अवश्य दिखाई दे रहा है परन्तु ग्रामीण लोगों की मानसिकता के परिष्कार की प्रबल आवश्यकता है। उनकी कविता- माना स्वतंत्र हुईं नारियां पर अभी बहुत कुछ बाकी है, सोच बदली है शहरों की, गांव अभी बाकी है- ने इसी तथ्य को रेखांकित किया। काव्यगोष्ठी में शायरे शहर यादव विकास, आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर, डॉ0 सुधीर पाठक, उमेश पाण्डेय, अजय शुक्ला, मीना वर्मा, मंशा शुक्ला, चन्द्रभूषण मिश्र, अजय श्रीवास्तव और अम्बरीश कश्यप ने भी एक से बढ़कर एक नारी-शक्ति पर कविताएं सुनाकर महफिल को रौशन कर दिया। आभार समिति की उपाध्यक्ष अर्चना पाठक ने जताया। इस अवसर पर लीला यादव, मंजू पाठक, प्रमिला कश्यप आदि काव्यप्रेमियों की उपस्थिति रही।