
Ambikapur News : ‘ऐ दोस्त, राज़ेगम सीने में छुपाए रखना, बस, अपने होने का माहौल बनाए रखना‘……..
केन्द्रीय जेल में काव्य-श्रृंखला संस्था द्वारा कवि-सम्मेलन का हुआ आयोजन...........
‘ऐ दोस्त, राज़ेगम सीने में छुपाए रखना, बस, अपने होने का माहौल बनाए रखना‘……..
P.S.YADAV/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// चैत्र नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष के उपलब्ध पर काव्य-श्रृंखला संस्था के द्वारा केन्द्रीय जेल, अम्बिकापुर के सभागार में स्थानीय जेल-प्रशासन के सौजन्य से कैदियों के उत्कृष्ट कार्य प्रेरणार्थ कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ खाद्य आयोग के अध्यक्ष गुरुप्रीत सिंह बाबरा और अध्यक्षता केेन्द्रीय जेल अधीक्षक और वरिष्ठ कवि राजेन्द्र रंजन गायकवाड़ ने की।
इसके पूर्व खाद्य आयोग के अध्यक्ष ने समूचे जेल-परिसर में संचालित गतिविधियों और व्यवस्थाओं का जायजा लिया और जेल-प्रबंधन के कार्यों की सराहना की। उन्होंने कैदियों से अच्छे व्यवहार और अच्छाई को जीवन में अपनाकर जेलमुक्ति पश्चात् राष्ट्र की धारा में जुड़ने और अच्छे नागरिक बनने का आह्वान किया। कवि-सम्मेलन का प्रारंभ कैदी गुरुप्रीत सिंह ने अपने भजन- जिं़दगी के सफ़र में हर शख़्स अनजाना है, ये धरती धर्मशाला है यहां आना और जाना है- से किया। अर्चना पाठक ने भगवान् राम को दुःखहर्ता बताते हुए अपने काव्य की सुंदर प्रस्तुति दी- कष्ट से राम ही मुक्ति देते सदा, राम संकट हरे भक्त के सर्वदा- राम के नेह से नाम बन जाएगा। गीतकार पूनम दुबे ने परदेशी प्रियतम की खबर लेते हुए एक मधुर गीत गुनगुनाया- चल उड़ जा रे पंछी परदेश पिया के जा, किस हाल में जी रहे, ज़रा लौट के बता। गीत-कवि कृष्णकांत पाठक ने गीत- दुनिया के रंग निराले रे कोई माने या ना माने- के द्वारा संसार की विचित्र गतिविधियों और उसके कार्य-व्यापार की सच्ची तस्वीर पेश की। कवि राजेश पाण्डेय ने हिन्दू नववर्ष के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाते हुए कहा – सूर्य नवागत नए वर्ष का स्वागत अपरंपार, नयी उमंगें लेकर आया अभिनंदन-सत्कार, उम्मीदों के क्षितिज सुहाने हो जाते बलिहार।
कवि-सम्मेलन में श्यामबिहारी पाण्डेय ने राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत कविता सुनाकर वीर शहीदों का हार्दिक नमन किया- देश के हित काम आए, उन शहीदों को नमन, ऐसे लालों को जनीं उन वीर मंाओं को नमन, खू़न में जिनके रवानी, उन जवानों को नमन, राष्ट्र का वंदन करें, उन तरानों को नमन। अजय शुक्ल ने अपने दोहे में ज़िंदगी के ठहराव को सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान की- ठहरी-ठहरी जिं़दगी, ज्यों रेत में नाव। खेल खतम, पैसा हजम, उल्टे सारे दांव। विदित हो केन्द्रीय जेल अधीक्षक राजेन्द्र रंजन गायकवाड़ एक जाने-माने शायर भी हैं। उन्होंने अपनी ग़ज़ल में सबको नेक सलाह और नसीहत दी- ऐ दोस्त, राजे़गम सीने में छुपाए रखना, बस, अपने होने का माहौल बनाए रखना। कवि-सम्मेलन के दौरान संस्था के अध्यक्ष गीतकार देवेन्द्रनाथ दुबे विगत की स्मृतियों में खो गए और एक प्रेम संबंधी स्मृति-गीत सुनाकर उन्होंने कैदियों की खूब वाहवाही बटोरी- मैं अब भी जवां मस्तीवाली वो रातें ढ़ूंढ़ा करता हूं, वो चांद-गगन, वो तारों की बारातें ढ़ूंढ़ा करता हूं, वो एक-दूजे में खोने की जज़बातें ढ़ूंढ़ा करता हूं। आज भी चर्चित है वो कहानी- तेरी भी और मेरी भी।
आशा पाण्डेय ने जहां नवरात्रि पर दोहे- मातु भवानी को नमन, मेरा बारम्बार, जो जग की विपदा हरे, करे जगत-उद्धार – सुनाकर वातावरण को भक्तिरस से सराबोर कर दिया, वहीं मुकुन्दलाल साहू ने जेल में बंदियों की बढ़ती संख्या और देश में बढ़ते अपराधों के ग्राफ पर चिंता जाहिर करते हुए उन पर नियंत्रण करने के सहज उपाय सुझाए- काम, क्रोध, लालच यहां, करवाते अपराध। नर इनको वश में करे, हो जीवन निर्बाध। सच्चे पश्चाताप से मिट जाते हैं पाप। बन जाते हैं वरद सब, जीवन के अभिशाप। डॉ0 उमेश पाण्डेय ने अपनी प्रेरणादायी रचना द्वारा समां बांध दिया- सुनसान महलों में भी जीना क्या किसी मौत से कम होता है, गुमनाम अंधेरों में भी जीना क्या किसी खौफ़ से कम होता है। अंत में, शायरे-शहर यादव विकास ने जिं़दगी की हक़ीक़तों से रूबरू कराते हुए कार्यक्रम का यादगार समापन किया- रातों के ख़्वाब दिल में बसाए नहीं जाते, यारों, चराग़ दिन में जलाए नहीं जाते। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन देवेन्द्रनाथ दुबे और आभार सहायक जेल अधीक्षक हितेन्द्र सिंह ने जताया। इस दौरान जेल के सजा़याफ़्ता और विचारधीन कैदी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।