
खजुराहो डांस फेस्टिवल: नृत्य और भावों से मंच पर उतारी भगवान ‘विष्णु के दशावतार की लीला’
‘Khajuraho Dance Festival 2023’ खजुराहो नृत्य समारोह 2023 में विभिन्न शैलियों के नृत्यों से कलाकार मंच पर आकर्षक, भव्य और दिव्य प्रस्तुतियां दे रहे हैंं। दर्शक तो मानों संगीत और नृत्य शैलियों से सम्मोहित होकर एकटक कार्यक्रम को देखते रहते हैं। फेस्टिवल के दौरान हर तरफ संगीत, नृत्यकला और आनन्द दिख रहा है। आयोजन के पांचवे दिन कथकली, कथक और भरतनाट्यम का वैभव देखने को मिला। कलाकारों ने मनमोहक प्रस्तुतियों से दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी।

नृत्य समारोह की शुरुआत आकाश मलिक एवं रुद्र प्रसाद राय की कथकली एवं समकालीन नृत्य की युगल प्रस्तुति से हुई। आकाश और रुद्र की जोड़ी ने इस नृत्य में महाभारत से भीम औऱ हनुमान के संवाद की लीला को पेश किया। भीम को अपने बलशाली होने पर अभिमान होता है, जिसे बुजुर्ग हनुमान ध्वस्त करते हैं। महाभारत की यह कथा सभी ने सुनी और पढ़ी है। हनुमानजी जंगल मे बैठे तपस्यारत हैं, भीम उनकी तपस्या को बाधित करते है, अपने को बलशाली होने का भीम को घमंड है, जिसे हनुमानजी तोड़ देते है। आकाश ने इस नृत्य संयोजन में हनुमान औऱ रुद्र ने भीम की भूमिका में बढ़िया नृत्याभिनय किया है। कर्नाटकीय संस्कृत निष्ठ गीत संगीत से सजी इस प्रस्तुति में आकाश ने कथकली और रुद्र ने समकालीन नृत्यभावों के जरिये दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी।

जय देवा हरे ओडिसी नृत्य से भगवान विष्णु के अवतारों की महिमा का गान
शाम की दूसरी प्रस्तुति प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना शाश्वती गराई घोष के ओडिसी नृत्य की थी। खजुराहो के मंच पर उन्होंने ‘जय देवा हरे’ नृत्य रचना से अपने नृत्य की शुरुआत की। कृष्ण कहें या भगवान विष्णु अथवा राम उन्हीं का महिमा गान इस प्रस्तुति की भावभूमि में था। वास्तव में यह एक शुभ नृत्य था जो हमारी चेतना के साथ प्रतिध्वनित होता है। नृत्य रचना खुद शाश्वती ने की थी। संगीत निर्देशन सृजन चटर्जी का था। उनकी दूसरी नृत्य रचना माया मानव की थी। विश्वनाथ खुंटीया द्वारा लिखित विचित्र रामायण से ली गई मृग मारीच या सुनहरे हिरण की कथा को शाश्वती ने ओडिसी के नृत्यभावों से बड़े ही सहज ढंग से पेश किया। इस प्रस्तुति के जरिये शाश्वती ने यह दिखाने की कोशिश की है कि माया इंसान को इस कदर जकड़ लेती है कि वह चाह कर भी नही छूट पाता। इस प्रस्तुति में नृत्य संयोजन शर्मिला विश्वास का था, जबकि संगीत रचना रमेशचंद्र दास और विजयकुमार बारीक की थी। नृत्य का समापन उन्होंने निर्वाण से किया। इस प्रस्तुति में पखावज पर विजयकुमार बारिक, गायन पर राजेश कुमार लेंका, वायलिन पर रमेश चंद दास एवं बांसुरी पर परसुरामदास ने साथ दिया।