
Ambikapur : ‘जिनसे ज़िंदा है वतन, आज़ादी भी आज, अमर शहीदों पर हमें, सदा रहेगा नाज़’
महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान-दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी........
‘जिनसे ज़िंदा है वतन, आज़ादी भी आज, अमर शहीदों पर हमें, सदा रहेगा नाज़’……………

पी0एस0यादव/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान-दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की ओर से स्थानीय केशरवानी भवन में शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व एडीआईएस ब्रह्माशंकर सिंह और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवि उमाकांत पाण्डेय थे। कार्यक्रम का आग़ाज़ महारानी लक्ष्मीबाई व मां वीणावती के छायाचित्रों पर माल्यार्पण से हुआ। कवयित्री अर्चना पाठक ने सरस्वती-वंदना की मनोहारी प्रस्तुति दी। विद्वान ब्रह्माशंकर सिंह ने कहा कि वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का स्मरण करते ही करोड़ों देशवासियों की रोमावली खड़ी हो जाती है। सबका हृदय देशभक्ति से भर उठता है। यह अत्यंत खेद का विषय है कि तीस करोड़ भारतीयों पर केवल दस हज़ार अंग्रेज़ों ने शासन किया और समूचे देश पर अपना आतंक का साम्राज्य स्थापित किया, वह भी फूट डालो और राज करो व पुत्र नहीं तो राज्य नहीं-जैसी कुछेक नीतियों का सहारा लेकर। इसी दुर्नीति का शिकार झांसी भी हुई, जिसका विरोध महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने प्राणों का बलिदान करके किया। उन्होंने यह भी कहा कि आज के परिवेश में महिलाएं अबला की श्रेणी में नहीं हैं। वे बहुत सशक्त हैं। उन्हें विधानसभा, लोकसभा, शासकीय नौकरी, हर जगह कम-से-कम तैंतीस प्रतिशत आरक्षण अनिवार्यतः मिलना चाहिए। उन्होंने प्रशासन से आकाशवाणी चैक पर महारानी लक्ष्मीबाई की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने की मांग की।
समिति की कार्यकारी अध्यक्ष माधुरी जायसवाल ने भारतीय नारियों को झांसी की रानी के समान बनने का आव्हान किया- अपने हौसले की एक कहानी बनाना। हो सके तो अपने-आपको झांसी की रानी बनाना। दुर्गा थी, काली थी, भारत की वो नारी थी। अंग्रेज़ों का जो काल बनी, वो झांसीवाली रानी थी। अभिनेत्री व कवयित्री अर्चना पाठक ने अपनी उत्कृष्ट काव्य-रचना में महारानी लक्ष्मीबाई को देशभक्ति, शौर्य, साहस व वीरता की प्रतिमूर्ति बताते हुए कहा कि- वीरता की आन-बान-शान-सी दमकती थी। धीरता में उनका न कोई उपमान था। ज्वाला-सी धधकती थी क्रोध में प्रचंड बन। देशभक्ति का भी दिव्य मन में गुमान था। उन्होंने रानी के अप्रतिम सौंदर्य पर भी प्रकाश डालते हुए बताया कि- उनकी एक झलक पाने को अंग्रेज़ भी बेताब रहे। भाव-भंगिमा विद्वत्तापूर्ण, नैन-नक़्श लाजवाब रहे। न गोरी थी, न काली थी, बस, एक सलोना रूप था। स्वर्ण-बालियां, श्वेत वसन और न कोई आभूषण था। युवाकवि निर्मल कुमार गुप्ता ने अपने काव्य में दावा किया कि लक्ष्मीबाई भारतीय स्वातंत्र्य-समर की एक अद्भुत मर्दानी थी- जन्म लिया नारी का फिर भी मर्दानी कहलाई, ऐसी थी वो नारी लक्ष्मीबाई। उखाड़ फेंका हर दुश्मन को, जिसने झांसी का अपमान किया। मर्दानी की परिभाषा बनकर आज़ादी का पैग़ाम दिया। प्रख्यात कवयित्री, लोकगायिका व मधुर आवाज़ की मलिका पूर्णिमा पटेल ने लक्ष्मीबाई-जैसी वीरांगनाओं को जन्म देनेवाली महान भारतभूमि को प्रणाम-निवेदन किया- सूरज, चांद, सितारों-सा चमके तेरा नाम। मेरे देश की धरती तुझे सलाम। तेरी आन बचाने को मैं अपना शीश कटा दूं। तेरी शान में भारत माता सबकुछ तुम्हें चढ़ा दूं। तुझको अर्पण जीवन कर दूं, आऊं तेरे काम। मेरे देश की धरती तुझे सलाम।
देश के नामचीन ग़ज़लकार शायर-ए-शहर यादव विकास ने अपनी प्रेरणादायी ग़ज़ल में युवा पीढ़ी को मंज़िल पाने का सरल, सहज उपाय बताया- मिलती है उसे मंज़िल, दुशवारियों में चलके, जो बार-बार उठा है, राह में फिसल-फिसल के, ख़ुशबू हूं मैं तो, ऐसे बिखरूंगा फ़ज़ाओं में, जैसे के हुस्न बिखरे जल में कंवल-कंवल के! काव्यगोष्ठी में गीतकार संतोष सरल ने श्रृंगारिक गीत- फेरकर हमसे नज़रें किधर जाओगे, है जफ़ा का ज़माना, जिधर जाओगे। होगी चेहरे में रौनक यकीं मान लो, मुहब्बत में मेरी तुम निखर जाओगे- सुनाकर समां बांध दिया। वरिष्ठ कवि उमाकांत पाण्डेय ने अपने सुमधुर दोहे- थकी-थकी-सी रात थी, अलसाई-सी भोर, निंदिया मेरी ले गया, एक वही चितचोर- से सबको भावविभोर कर दिया। कवि अजय श्रीवास्तव की कविता- उस आसमां से मुझको कोई यार है बुलाए- ने भी ख़ूब तारीफ़ें बटोरीं। अंत में, संस्था के ऊर्जावान अध्यक्ष सिद्धहस्त दोहाकार मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहे द्वारा सभी अमर देशभक्त वीरों को श्रद्धा-सुमन समर्पित किए- जिनसे ज़िंदा है वतन, आज़ादी भी आज, अमर शहीदों पर हमें, सदा रहेगा नाज़। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन समिति की उपाध्यक्ष अर्चना पाठक और आभार ज्ञापन पेंशनर समाज जिला सरगुजा के अध्यक्ष हरिशंकर सिंह ने किया। इस अवसर पर लीला यादव, प्रमोद सहित अनेक काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।












