छत्तीसगढ़ताजा ख़बरेंब्रेकिंग न्यूज़राज्यसरगुजा

Ambikapur : दया महामाया करे, सुखद रहे नववर्ष, अधरों पर मुस्कान हो, मन में हो नित हर्ष…………..

नववर्ष के उपलक्ष्य में तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्यगोष्ठी.............

दया महामाया करे, सुखद रहे नववर्ष, अधरों पर मुस्कान हो, मन में हो नित हर्ष…………..

पी0एस0यादव/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// नववर्ष के उपलक्ष्य में तुलसी साहित्य समिति की ओर से केशरवानी भवन में शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्माशंकर सिंह, विशिष्ट अतिथि पूर्व बीईओ एसपी जायसवाल, सच्चिदानंद पाण्डेय, मनीलाल गुप्ता और फ़िल्मकार आनंद सिंह यादव थे। मां वीणापाणि के पूजन पश्चात् कवयित्री सीमा तिवारी ने सुमधुर सरस्वती-वंदना की प्रस्तुति देकर कार्यक्रम का आग़ाज़ किया। गीता-मर्मज्ञ पं. रामनारायण शर्मा ने कहा कि भारत एक विशाल देश है। यहां की संस्कृति में विविधता और अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यहां शक, संवत विशेषकर ख्रीस्त ईसाई वर्ष सन् का शासकीय एवं विविध लोक व्यावहारिक कार्यों में उपयोग होता है। इसमें जनवरी से दिसम्बर तक बारह महीने होते हैं और चैथे सन् में फरवरी 28 के बजाय 29 दिनों की हो जाती है। अधिकांश लोग अपनी जन्मतिथि और महापुरुर्षों की जन्म-जयंती अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार ही मनाते हैं।

a41ad136-ab8e-4a7d-bf81-1a6289a5f83f
ea5259c3-fb22-4da0-b043-71ce01a6842e

इसकी व्यापकता और लोकप्रियता देखकर प्रसन्नता होना स्वाभाविक है। विद्वान ब्रह्माशंकर सिंह, जुनैद खान और कविवर एसपी जायसवाल ने सबको नववर्ष की बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं दीं और कहा कि नया साल सबके लिए उमंग, उल्लास, स्वास्थ्य और हर्ष को बढ़ानेवाला तथा कामनाओं को पुष्पित-पल्लवित करनेवाला साबित हो। काव्यगोष्ठी में कवयित्री माधुरी जायवाल ने नूतन वर्ष का हार्दिक स्वागत करते हुए सपनों के पूर्ण होने की आशा अपने काव्य में व्यक्त की- बदली थी तब सदी अब सन् 23 बदल गया। हम मनाते वर्ष नूतन, मन है कुछ बहल गया। सुनहरे सपनों को पूरा करेगा यह वर्ष, ख़ुशियों से भरपूर उपहार लाएगा यह वर्ष! संस्था के अध्यक्ष दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने नवल वर्ष पर दिलकश दोहे सुनाकर श्रोतावृंद को प्रहर्षित कर दिया- दया महामाया करे, सुखद रहे नववर्ष। अधरों पर मुस्कान हो, मन में हो नित हर्ष। निशि-वासर उत्सव मने, ना सारा देश। सुख की नित बरसात हो, मिट जाएं सब क्लेश। उम्मीदें लेकर नई, जगा नवल विश्वास। नया साल तुम कर चलो, जग की पूरी आस। फ़िल्म निर्देशक और कवि आनंद सिंह यादव ने नववर्ष के प्रथम प्रभात से सबको सुंदर सौग़ात देने की मांग की- नववर्ष तुम्हारा स्वागत है। ख़ुशियों की बस इक चाहत है। हे नववर्ष के प्रथम प्रभात! दो सबको अच्छी सौग़ात!

mantr
96f7b88c-5c3d-4301-83e9-aa4e159339e2 (1)

गीतकार कृष्णकांत पाठक ने नये साल से अमन चैन, आनंद की कामना की- सुस्वागतम् है नववर्ष तेरा, मंगलमय है तेरा आज आना। हर मन की बस्ती में मस्ती-ही-मस्ती हो, जीवन-चमन में अमन-गुल खिलाना! कविवर एसपी जायसवाल ने नये साल के उल्लास और उमंग का जीवंत चित्रण अपनी सरगुजिहा गीत रचना में कुछ इस तरह से किया कि श्रोता ख़ुशी से झूम उठे- कहथे सरगुजिहा आज नवा साल हे। सब नाचत-गात हैं, सगरो दुनिया में धमाल हे। नदी, तलवा, बंधवा धरी अड़बड़ भीड़भाड़ हे। बाजत हे डीजे, नाचत हे बुढ़िया। लरिका, छउवा अउ जवान कर जानलेवा का हाल हे! जघिन-जिगहा मुर्गा अउ बोकरा हलाल हे, नवा साल कर पहिल दिन एमन कर काल हे! कवि रामलाल विश्वकर्मा ने दिलों की दूरियां मिटाने का आव्हान किया- बढ़ रहे हैं फासले थोड़ा-कुछ घटा लो यार। आज नहीं कल मिलेंगे, ऐसा भ्रम न पालो यार। कौन करे कल की बातें, क्या पता आए न आए। कल को कौन देखा है, आज को संभालो यार!

लोकगायिका व कवयित्री पूर्णिमा पटेल ने नये साल में भगवान शिव की शरण में ही रहने का अपना संकल्प दोहराया- ओ कैलास के वासी, मृत्युंजय अविनाशी! इस दुनिया का मेरे मालिक, तू ही एक सहारा है! वीर रस व ओज के कवि अम्बरीष कश्यप ने ज़िंदगी को पहेली बताकर इसे नये साल में सुलझाने की अपील की- ग़म-ख़ुशी भी तो सहेली है, ज़िंदगी एक पहेली है। मुझको ये लगता क्यूं है, बिन लकीरों की हथेली है। गोष्ठी में सरगुजा के सुप्रसिद्ध लोक संस्कृति कर्मी और गीतकार रंजीत सारथी ने अपनी सरगुजिहा गीत रचना से सबको हंसाकर लोटपोट कर दिया- जोहार जम्मोझन ला हाथ जोर के। बधाई नवा साल कर मोरा-मोरा भर के। ए साल कर हाल नवा, एकर कमाल नवा। कयो बछर कर बुढ़वा दिसे रंजीत नवा-नवा! आज सम्पूर्ण देश में अयोध्या में बन रहे भव्य राममंदिर को लेकर भारी उमंग व उत्साह है, जिसका लोकार्पण आगामी 22 जनवरी को होने जा रहा है। कवयित्री सीमा तिवारी का मन भी काव्यपाठ करते हुए सर्वथा राममय हो गया। अपनी ख़ुशी को उन्होंने दोहे में यूं नुमायां किया- रघुनंदन ने जन्म लिया, उजियारा जग होय। दुष्ट प्रवृत्ति रावण का, अंत न रोके कोय!

कवि अजय श्रीवास्तव ने विधाता के विधान के संबंध में अपनी राय व्यक्त की- विधना तेरी लेख विधि कुछ भी पड़ा न पाले, मैं उसको संभाल रहा हूं, वो है मुझे संभाले! शायर-ए-शहर यादव विकास ग़ज़लों की दुनिया की मशहूर हस्ती हैं। प्यार में क्या-क्या करना पड़ता है, उनसे ज़्यादा भला कौन जान सकता है! उनकी ग़ज़ल ने महफ़िल लूट ली- दिल से दिल का चमन खिलाना पड़ता है, ख़ुशबू को आवाज़ लगाना पड़ता है। ऐसे होते हैं मोहब्बत के रिश्ते, बिन सोचे ही पांव बढ़ाना पड़ता है। प्यार का आलम नशीला होता है, बिना पिए ही डगमगाना पड़ता है! मंज़र जब मिलन का याद आता है, मुस्कुराकर दिल बहलाना पड़ता है! कार्यक्रम का काव्यमय संचालन कवयित्री सीमा तिवारी और आभार संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष माधुरी जायसवाल ने जताया। सम्पूर्ण कार्यक्रम की रिकार्डिंग आकाशवाणी अम्बिकापुर के द्वारा की गई। इस अवसर पर लीला यादव, अंजनी कुमार पाण्डेय, प्रमोद सहित बड़ी संख्या में काव्य उपस्थित रहे।

Pradesh Khabar

8d301e24-97a9-47aa-8f58-7fd7a1dfb1c6 (2)
e0c3a8bf-750d-4709-abcd-75615677327f

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!