छत्तीसगढ़राज्यसरगुजा

परीक्षा और कोरोना

शिक्षक प्रभाकर उपाध्याय जी अंबिकापुर की कलम से

परीक्षा और कोरोना

a41ad136-ab8e-4a7d-bf81-1a6289a5f83f
ea5259c3-fb22-4da0-b043-71ce01a6842e

एक तरफ जहाँ पूरा विश्व एक अदृश्य महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ हम सभी अपने अपने हिसाब से जीवन जीने का तरीका इज़ाद कर रहें हैं। क्या बड़े , क्या बूढ़े, क्या महिला, क्या पुरुष एवं बच्चे सभी कहीं ना कहीं इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहें हैं। जो व्यक्ति कोरोना की चपेट में आ रहा है वो इससे जूझ ही रहा है, परंतु जो इससे दूर हैं वो भी कोरोना के प्रकोप से हो रही असुविधाओं के अछूते नही रह रहें हैं।
कहीं कर्फ्यू, कहीं लॉकडाउन, कहीं प्रतिबंध इन सब के साथ लोग अपनी दिनचर्या बिता रहें हैं। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि जीवन की सड़कों पर लोग गति अवरोधों के साथ आगे बढ़ रहें हैं।
परंतु आज एक ऐसे अतिसंवेदनशील तपके जिसे हम बच्चों के नाम से जानते हैं उनकी बात करतें हैं। जिसमे 3 वर्ष से 17 वर्ष कक्षा नर्सरी के बारहवीं तक के विद्यार्थी शामिल हैं। विगत 2 वर्षों से विद्यालय लगभग बंद हैं, कक्षाएं ऑनलाइन चल रहीं हैं, के परीक्षाएं ऑनलाइन हो रहीं हैं। शुरुआती दौर में बच्चों को बड़ा मजा आया। एक नयी चीज़ जो बच्चों को मिली थी। वहीं कुछ बच्चे इसलिए खुश थे कि उनको इसी बहाने मोबाइल और कंप्यूटर मिल गया है। उस वक़्त सभी खुश थे क्योंकि सभी को लग रहा था कि ये कुछ दिनों की बात है उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। परंतु अब जहा 2 वर्ष होने को आ गए हैं, स्कूल पूर्णतः बंद हैं और बच्चों के भी शब्र का बांध टूट गया है। मानसिक रूप से वे पिछड़ गए हैं। जहां विद्यालय में आना दोस्तो से मिलना, साथ पढ़ाई करने भोजन करना ये सब उनके जीवन में कितना महत्वपूर्ण था, इसका एहसास अब सभी को हो रहा है और कहीं ना कहीं ये सारी बातें सभी बच्चों के अंतर्मन में चल रहीं हैं। दुर्भाग्यवश उनकी पीड़ा को समझने वाला कोई नही है।
इन सब के बीच कक्षा 10वीं की परीक्षा निरस्त होना और 12वीं की परीक्षा को स्थगित कर नई तिथियों पर पुनर्विचार करना, बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण लगता है। गत वर्ष भी कुछ विषयों की परीक्षाओं को कोरोना की बली चढ़ा दिया गया था। और इस वर्ष तो हालात इतने बुरे हो गये की परीक्षाएं रद्द हो गईं और जिन कक्षाओं की परीक्षाएं बचीं हैं वे भी लगता नही की अपने अंजाम तक सकुशल पहुच पाएंगी।
इस विषय पर हमने शहर के नामी निजी विद्यालय के प्राचार्य डॉ आई ए खान सूरी सर का मत भी जानने का प्रयाश किया। इनका मानना है कि सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा परीक्षाएं मार्च में ना कराकर मई में करना ही अपरिपक्व व बचकाना लगता है। क्योंकि मार्च में हालात उतने बुरे नही थे और परीक्षाएं आसानी से सम्पन्न की जा सकती थीं। 10वीं की परीक्षाओ के निरस्त होने के बाद बच्चों में एक भय और दुविधा की स्थिति निर्मित हो गई है कि अब आगे क्या? सर का मानना है कि 12वीं की परिक्षाएँ स्थगित तो की गईं हैं लेकिन विद्यार्थियों के मन में कही न कहीं संदेह है कि उनका क्या होगा। कुल मिलाकर इस वर्ष भी बोर्ड परीक्षार्थियों का भविष्य भी आधर में ही लटक गया है।
वहीं एक निजी विद्यालय के शिक्षक सुनील तिवारी सर का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह निर्णय स्वागत योग्य है। बोर्ड ने विद्यार्थियों को बाद में परीक्षा में शामिल होने का विकल्प भी दिया है। जो विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर संजीदा हैं वे निश्चित ही परीक्षा जब भी होगी उसमे शामिल होकर उसका लाभ लेंगे। वहीं हमने कुछ विद्यार्थियों का भी मत इसमें जानने का प्रयास किया। कार्मेल स्कूल के कक्षा 12वीं के छात्र राहुल अग्रवाल का मानना है कि, एक छात्र के तौर पे वे हमेशा कठिन परिश्रम का आंकलन आने अंक तालिका से करते हैं क्योंकि उसपे अंकित अंक जीवन पर्यंत परिश्रम की कहानी बयां करते हैं। परंतु स्वास्थ्य को भी उतनी ही प्राथमिकता देनी जानी चाहिए। परीक्षायें जब भी हालात बेहतर हों लेना ही उचित होगा। वहीं 12वीं के छात्र आदित्य अग्रवाल का मानना है कि बोर्ड द्वारा लिया गया निर्णय तनाव बढ़ाने वाला है। 12वीं के छात्र के लिए यह वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर वे अपने भविष्य को गढ़ता है, परंतु इस तनावग्रस्त वातावरण में जहां ये तक नही पता कि परीक्षाएं कब होंगी क्योंकि आगामी 2 से 3 माह में भी हालत सुधरने के लक्षण नही दिखाई दे रहें हैं। ऐसे में तनाव बढ़ाने के बजाय कोई अन्य विकल्प निकलना ही उचित होगा जिसमे विद्यार्थियों का आंकलन कर नतीजे निकाले जाने चाहिए।
वहीं कक्षा 10वी की छात्रा सौम्या अग्रवाल का मानना है कि परीक्षाओं का निरस्त होने स्वागत योग्य है क्योंकि पूरे वर्ष जहां ऑनलाइन पढ़ाई हुई है, ऐसी स्थिति में ऑफलाईन परीक्षाएं लेना न्याय नही होता। ऑनलाइन पढ़ाई के आधार पर इतनी बड़ी परीक्षा दे कर आत्मसंतुष्टि पाना असंभव था। 10वीं की एक और छात्रा आरुषि का कहना है कि

mantr
96f7b88c-5c3d-4301-83e9-aa4e159339e2 (1)

एक तरफ जहाँ पूरा विश्व एक अदृश्य महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ हम सभी अपने अपने हिसाब से जीवन जीने का तरीका इज़ाद कर रहें हैं। क्या बड़े , क्या बूढ़े, क्या महिला, क्या पुरुष एवं बच्चे सभी कहीं ना कहीं इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहें हैं। जो व्यक्ति कोरोना की चपेट में आ रहा है वो इससे जूझ ही रहा है, परंतु जो इससे दूर हैं वो भी कोरोना के प्रकोप से हो रही असुविधाओं के अछूते नही रह रहें हैं।
कहीं कर्फ्यू, कहीं लॉकडाउन, कहीं प्रतिबंध इन सब के साथ लोग अपनी दिनचर्या बिता रहें हैं। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि जीवन की सड़कों पर लोग गति अवरोधों के साथ आगे बढ़ रहें हैं।
परंतु आज एक ऐसे अतिसंवेदनशील तपके जिसे हम बच्चों के नाम से जानते हैं उनकी बात करतें हैं। जिसमे 3 वर्ष से 17 वर्ष कक्षा नर्सरी के बारहवीं तक के विद्यार्थी शामिल हैं। विगत 2 वर्षों से विद्यालय लगभग बंद हैं, कक्षाएं ऑनलाइन चल रहीं हैं, के परीक्षाएं ऑनलाइन हो रहीं हैं। शुरुआती दौर में बच्चों को बड़ा मजा आया। एक नयी चीज़ जो बच्चों को मिली थी। वहीं कुछ बच्चे इसलिए खुश थे कि उनको इसी बहाने मोबाइल और कंप्यूटर मिल गया है। उस वक़्त सभी खुश थे क्योंकि सभी को लग रहा था कि ये कुछ दिनों की बात है उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। परंतु अब जहा 2 वर्ष होने को आ गए हैं, स्कूल पूर्णतः बंद हैं और बच्चों के भी शब्र का बांध टूट गया है। मानसिक रूप से वे पिछड़ गए हैं। जहां विद्यालय में आना दोस्तो से मिलना, साथ पढ़ाई करने भोजन करना ये सब उनके जीवन में कितना महत्वपूर्ण था, इसका एहसास अब सभी को हो रहा है और कहीं ना कहीं ये सारी बातें सभी बच्चों के अंतर्मन में चल रहीं हैं। दुर्भाग्यवश उनकी पीड़ा को समझने वाला कोई नही है।
इन सब के बीच कक्षा 10वीं की परीक्षा निरस्त होना और 12वीं की परीक्षा को स्थगित कर नई तिथियों पर पुनर्विचार करना, बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण लगता है। गत वर्ष भी कुछ विषयों की परीक्षाओं को कोरोना की बली चढ़ा दिया गया था। और इस वर्ष तो हालात इतने बुरे हो गये की परीक्षाएं रद्द हो गईं और जिन कक्षाओं की परीक्षाएं बचीं हैं वे भी लगता नही की अपने अंजाम तक सकुशल पहुच पाएंगी।
इस विषय पर हमने शहर के नामी निजी विद्यालय के प्राचार्य डॉ आई ए खान सूरी सर का मत भी जानने का प्रयाश किया। इनका मानना है कि सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा परीक्षाएं मार्च में ना कराकर मई में करना ही अपरिपक्व व बचकाना लगता है। क्योंकि मार्च में हालात उतने बुरे नही थे और परीक्षाएं आसानी से सम्पन्न की जा सकती थीं। 10वीं की परीक्षाओ के निरस्त होने के बाद बच्चों में एक भय और दुविधा की स्थिति निर्मित हो गई है कि अब आगे क्या? सर का मानना है कि 12वीं की परिक्षाएँ स्थगित तो की गईं हैं लेकिन विद्यार्थियों के मन में कही न कहीं संदेह है कि उनका क्या होगा। कुल मिलाकर इस वर्ष भी बोर्ड परीक्षार्थियों का भविष्य भी आधर में ही लटक गया है।
वहीं एक निजी विद्यालय के शिक्षक सुनील तिवारी सर का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह निर्णय स्वागत योग्य है। बोर्ड ने विद्यार्थियों को बाद में परीक्षा में शामिल होने का विकल्प भी दिया है। जो विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर संजीदा हैं वे निश्चित ही परीक्षा जब भी होगी उसमे शामिल होकर उसका लाभ लेंगे। वहीं हमने कुछ विद्यार्थियों का भी मत इसमें जानने का प्रयास किया। कार्मेल स्कूल के कक्षा 12वीं के छात्र राहुल अग्रवाल का मानना है कि, एक छात्र के तौर पे वे हमेशा कठिन परिश्रम का आंकलन आने अंक तालिका से करते हैं क्योंकि उसपे अंकित अंक जीवन पर्यंत परिश्रम की कहानी बयां करते हैं। परंतु स्वास्थ्य को भी उतनी ही प्राथमिकता देनी जानी चाहिए। परीक्षायें जब भी हालात बेहतर हों लेना ही उचित होगा। वहीं 12वीं के छात्र आदित्य अग्रवाल का मानना है कि बोर्ड द्वारा लिया गया निर्णय तनाव बढ़ाने वाला है। 12वीं के छात्र के लिए यह वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर वे अपने भविष्य को गढ़ता है, परंतु इस तनावग्रस्त वातावरण में जहां ये तक नही पता कि परीक्षाएं कब होंगी क्योंकि आगामी 2 से 3 माह में भी हालत सुधरने के लक्षण नही दिखाई दे रहें हैं। ऐसे में तनाव बढ़ाने के बजाय कोई अन्य विकल्प निकलना ही उचित होगा जिसमे विद्यार्थियों का आंकलन कर नतीजे निकाले जाने चाहिए।
वहीं कक्षा 10वी की छात्रा सौम्या अग्रवाल का मानना है कि परीक्षाओं का निरस्त होने स्वागत योग्य है क्योंकि पूरे वर्ष जहां ऑनलाइन पढ़ाई हुई है, ऐसी स्थिति में ऑफलाईन परीक्षाएं लेना न्याय नही होता। ऑनलाइन पढ़ाई के आधार पर इतनी बड़ी परीक्षा दे कर आत्मसंतुष्टि पाना असंभव था। 10वीं की एक और छात्रा आरुषि का कहना है कि यह निर्णय उचित है, क्योंकि मास्क लगाकर 3 से 4 घंटे परीक्षा लिख पाना स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से भी उचित नही हैं । ध्यान लगा कर लिख पाना संभव नही हो पाता और वैसे भी परीक्षाएं 2 से 3 माह देरी से हो रहीं थी जिसके कारण आगे प्रवेश लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकल्प समाप्त हो जाते।
कुल मिलाकर मिली जुली प्रतिकिया आई कि यह निर्णय उचित है वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए मगर क्या भविष्य में इसके सुधार होने की कोई संभावना है? यह बहोत बड़ा सवाल है उन विद्यार्थियों का जिनका भविष्य इन परीक्षाओं पर ही आधारित है।

प्रभाकर उपाध्याय की कलम से

[contact-form][contact-field label=”Name” type=”name” required=”true” /][contact-field label=”Email” type=”email” required=”true” /][contact-field label=”Website” type=”url” /][contact-field label=”Message” type=”textarea” /][/contact-form]

Haresh pradhan

8d301e24-97a9-47aa-8f58-7fd7a1dfb1c6 (2)
e0c3a8bf-750d-4709-abcd-75615677327f

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!