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गोमय कंडे से हुआ वैदिक होलिका दहन, वृक्षों की कटाई रोकी, गौमाता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश

गोमय कंडे से हुआ वैदिक होलिका दहन, वृक्षों की कटाई रोकी, गौमाता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश

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राजनांदगांव।भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष स्थान है। इन्हें केवल उत्सव के रूप में ही नहीं, बल्कि प्रकृति, पर्यावरण और सामाजिक समरसता के संरक्षण के रूप में भी देखा जाता है। इसी परंपरा का एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हुए गौ संस्कृति अनुसंधान संस्थान राजनांदगांव द्वारा इस वर्ष वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार गोमय कंडों से होलिका दहन का आयोजन किया गया। यह आयोजन बंगाली चाल, बसंतपुर स्थित शिव मंदिर के पास हुआ, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, वृक्षों की कटाई रोकने और गौमाता के प्रति लोगों को जागरूक करना था।

गौ संस्कृति अनुसंधान संस्थान राजनांदगांव द्वारा प्रतिवर्ष वैदिक होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष, आदिशक्ति महिला स्व-सहायता समूह के सहयोग से लगभग 2000 गोमय कंडों का उपयोग कर होलिका दहन किया गया। इसके साथ ही, होलिका दहन के दौरान शुद्ध देशी घी, हवन सामग्री और अन्य प्राकृतिक उत्पादों का प्रयोग किया गया।

होलिका दहन में परंपरा और पर्यावरण संरक्षण का अनूठा संगम
गौरतलब है कि होलिका दहन में परंपरागत रूप से लकड़ी का उपयोग किया जाता रहा है। हालांकि, समय के साथ इसमें कई अन्य सामग्रियाँ जैसे प्लास्टिक, टायर, मिट्टी तेल आदि भी प्रयोग होने लगे हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं। इस प्रकार की सामग्रियों के जलने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इससे बचने और एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करने के उद्देश्य से इस वर्ष गोबर से बने कंडों का उपयोग कर वैदिक होलिका दहन किया गया। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान से बचाया गया, बल्कि गौमाता के संरक्षण और संवर्धन का भी संदेश दिया गया।

इस अवसर पर गौ संस्कृति अनुसंधान संस्थान राजनांदगांव के अध्यक्ष श्री राधेश्याम गुप्ता ने कहा,
“हमारी परंपराओं में विज्ञान छिपा हुआ है। होलिका दहन का उद्देश्य केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और मानव जीवन के बीच संतुलन को बनाए रखने का भी प्रतीक है। लेकिन, आजकल अज्ञानतावश हम लकड़ी, प्लास्टिक और अन्य हानिकारक चीजों का उपयोग करने लगे हैं, जिससे प्रकृति को हानि हो रही है। गोमय कंडों से होलिका दहन करना प्रकृति और भारतीय संस्कृति की रक्षा करने का एक सशक्त कदम है।”

100 से अधिक गोबर से बने दीपकों का जलाया गया
इस आयोजन में 100 से अधिक देशी गौवंश के गोबर से बने दीपकों को प्रज्वलित किया गया। ये दीपक पूरी तरह जैविक होने के कारण पर्यावरण के लिए हानिरहित थे और उन्होंने वातावरण को शुद्ध किया।

पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए जिम्मेदारी
गौ संस्कृति अनुसंधान संस्थान के कोषाध्यक्ष गव्यसिद्ध डॉ. डिलेश्वर साहू ने कहा कि हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को प्रदूषण मुक्त, सात्विक और प्राकृतिक वातावरण देने के लिए अभी से प्रयास करना होगा।
उन्होंने कहा,
“यदि हम अपनी परंपराओं के वैज्ञानिक पक्ष को समझें और आधुनिकता के नाम पर प्रकृति का दोहन करना बंद करें, तो हम आने वाली पीढ़ियों को एक शुद्ध वातावरण प्रदान कर सकते हैं। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य भारतीय परंपरा, पर्यावरण और गौमाता के संरक्षण के प्रति नागरिकों को जागरूक करना है।”

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उन्होंने यह भी बताया कि गोमय कंडों से होलिका दहन करने से पर्यावरण शुद्ध होता है, जैविक ऊर्जा का संचार होता है और हवा में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया का नाश होता है। साथ ही, गोबर में प्राकृतिक औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होते हैं।

वार्ड पार्षद ने की पहल की सराहना
वार्ड पार्षद श्रीमती खेमिन राजेश यादव ने इस अनूठे आयोजन की सराहना करते हुए कहा,
“यह गर्व का विषय है कि हमारे वार्ड में प्राचीन भारतीय परंपराओं के अनुसार वैदिक होलिका दहन का आयोजन किया गया है। यह न केवल संस्कृति के संरक्षण का प्रयास है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा का भी संदेश देता है। होलिका दहन में लकड़ी की जगह गोमय कंडे का उपयोग करने से वृक्षों की कटाई रोकी जा सकती है, जिससे जैव विविधता बनी रहती है। मैं सभी नागरिकों से अपील करती हूँ कि वे भी इस परंपरा को अपनाएं और पर्यावरण को बचाने में सहयोग करें।”

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से बढ़ रही समस्याएं
कार्यक्रम में वक्ताओं ने वर्तमान समय में पर्यावरणीय संकट पर भी चर्चा की। यह बताया गया कि वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, औद्योगिक प्रदूषण और प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इससे न केवल जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न हो रही है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

होलिका दहन में प्राकृतिक उत्पादों के उपयोग से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इस प्रकार के आयोजनों से समाज में सकारात्मक संदेश जाता है और लोग अपनी परंपराओं को नए सिरे से अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं।

स्थानीय नागरिकों का उत्साह
वैदिक होलिका दहन के आयोजन में स्थानीय नागरिकों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बड़ी संख्या में महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों ने कार्यक्रम में भाग लिया और इस पहल की सराहना की।

स्थानीय निवासी अभय शर्मा ने कहा,
“पहले हम पारंपरिक होलिका दहन में लकड़ी का उपयोग करते थे, लेकिन अब हमें यह समझ में आ गया है कि इससे पर्यावरण को नुकसान होता है। यह पहल बहुत अच्छी है और हम भी इसे अपनाएंगे।”

वहीं, सीमा वर्मा ने कहा,
“हमने पहली बार गोमय कंडे से होलिका दहन देखा। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता और यह पूरी तरह शुद्ध और सात्विक भी है। यह एक अनुकरणीय पहल है।”

भविष्य में इस पहल को बढ़ाने की योजना
गौ संस्कृति अनुसंधान संस्थान ने यह भी घोषणा की कि वे आने वाले वर्षों में इस पहल को और अधिक व्यापक स्तर पर फैलाने का प्रयास करेंगे। इसके लिए शहर के अन्य वार्डों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी वैदिक होलिका दहन को बढ़ावा दिया जाएगा।

संस्थान ने नागरिकों से लकड़ी के बजाय गोमय कंडों के उपयोग को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग देने की अपील की।

वैदिक होलिका दहन न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता की सुरक्षा और समाज में जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम भी है।

इस आयोजन से यह स्पष्ट होता है कि यदि हम अपनी परंपराओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जियें, तो न केवल पर्यावरण को बचाया जा सकता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण भी प्रदान किया जा सकता है।

Ashish Sinha

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