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RBI की मौद्रिक नीति बैठक 2025: रेपो रेट में कटौती की संभावना, आर्थिक विकास पर फोकस

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक शुरू हो चुकी है। विशेषज्ञों को रेपो रेट में कटौती की उम्मीद है, जिससे महंगाई और विकास दर को संतुलित किया जा सके।

भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक: आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति पर केंद्रित चर्चा

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मुंबई, भारत|  8 अप्रैल 2025 | भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तीन दिवसीय बैठक 7 अप्रैल 2025 को मुंबई में आरंभ की। यह बैठक 9 अप्रैल 2025 को समाप्त होगी, जिसमें प्रमुख नीतिगत दरों, विशेष रूप से रेपो रेट, पर निर्णय लिया जाएगा।

इस बैठक का आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे जा रहे हैं। हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय निर्यात पर 26% का शुल्क लगाया है, जिससे भारत की आर्थिक वृद्धि पर 20 से 50 आधार अंकों का नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। इससे पहले, फरवरी 2025 में, RBI ने लगभग पांच वर्षों में पहली बार रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती की थी, जिससे यह 6.25% पर आ गया था।

वर्तमान में, बाजार विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि RBI इस बैठक में रेपो रेट में और 25 आधार अंकों की कटौती कर सकता है, जिससे यह 6% पर आ जाएगा। यह निर्णय मुद्रास्फीति के नियंत्रण में रहने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लिया जा सकता है। इसके अलावा, कुछ विश्लेषकों का यह भी सुझाव है कि RBI अपनी मौद्रिक नीति के रुख को ‘तटस्थ’ से बदलकर ‘समायोज्य’ कर सकता है, जिससे आगे और कटौतियों की संभावना बढ़ेगी।

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भारत में मुद्रास्फीति वर्तमान में RBI के लक्षित स्तर के भीतर है, जिससे नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश बनती है। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता और डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती ने भी आयातित मुद्रास्फीति के दबाव को कम किया है। हालांकि, अमेरिकी शुल्कों के कारण निर्यात प्रभावित होने की संभावना है, जिससे आर्थिक विकास दर पर असर पड़ सकता है।

भारतीय बैंकों ने RBI से तरलता प्रबंधन ढांचे में बदलाव की सिफारिश की है। उन्होंने 14-दिनीय वेरिएबल रेट रेपो की बजाय ओवरनाइट फिक्स्ड रेट लिक्विडिटी टूल अपनाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे बैंकों को दैनिक तरलता प्रबंधन में सहायता मिलेगी। इसके अलावा, बैंकों ने ‘सेक्योर्ड ओवरनाइट रुपी रेट’ (SORR) को मौद्रिक नीति का नया परिचालन लक्ष्य बनाने का सुझाव दिया है।

यदि RBI इस बैठक में रेपो रेट में कटौती करता है, तो यह कदम उपभोक्ता मांग और निवेश को प्रोत्साहित करने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह निर्णय घरेलू बाजार में तरलता बढ़ाने और आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने में सहायक होगा। हालांकि, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और व्यापारिक तनावों के बीच, RBI को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा ताकि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहे और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले।

RBI की मौद्रिक नीति समिति की यह बैठक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। वैश्विक व्यापारिक तनावों और घरेलू आर्थिक संकेतकों को ध्यान में रखते हुए, नीतिगत दरों में संभावित कटौती से आर्थिक विकास को गति मिल सकती है। सभी की निगाहें 9 अप्रैल 2025 को होने वाली घोषणा पर टिकी हैं, जो भारतीय आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित करेगी।

Ashish Sinha

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