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बस्तर के 29 गांवों में पहली बार फहरा तिरंगा, दशकों बाद नक्सल छाया से मिली आजादी

स्वतंत्रता दिवस 2025 पर बस्तर संभाग के बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों के 29 गांवों में पहली बार तिरंगा फहराया गया। दशकों से नक्सलवाद की छाया में जी रहे गांवों में यह ऐतिहासिक बदलाव ग्रामीणों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है।

आजादी का नया सूर्योदयः बस्तर के 29 गांवों में पहली बार फहरा तिरंगा

दशकों से नक्सलवाद की छाया में जी रहे गांवों में आजादी का जश्न, ग्रामीणों के जीवन में आई नई उम्मीद

बस्तर, 15 अगस्त 2025।स्वतंत्रता दिवस 2025 पर बस्तर संभाग के बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों के 29 गांवों में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। यह घटना न केवल एक प्रतीकात्मक पहल है, बल्कि दशकों से नक्सलवाद की छाया में जी रहे इन इलाकों में आ रहे ऐतिहासिक बदलाव की गवाही देती है।

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इन गांवों में लंबे समय से स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लाल झंडा ही लहराता था। माओवादियों के प्रभाव और डर के कारण राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराना संभव नहीं था। लेकिन इस बार ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों और प्रशासन के साथ मिलकर अपने गांवों में तिरंगा फहराया और राष्ट्रगान गाया।

बस्तर के 29 गांवों में पहली बार तिरंगा

पहली बार तिरंगा फहराने वाले गांवों में—

  • बीजापुर जिला: कोंडापल्ली, जीड़पल्ली, जीड़पल्ली-2, वाटेवागु, कर्रेगुट्टा, पिड़िया, गुंजेपर्ती, पुजारीकांकेर, भीमारम, कोरचोली एवं कोटपल्ली

  • नारायणपुर जिला: गारपा, कच्चापाल, कोडलियार, कुतूल, बेड़माकोट्टी, पदमकोट, कांदूलनार, नेलांगूर, पांगुड़, होरादी एवं रायनार

  • सुकमा जिला: तुमालपाड़, रायगुडे़म, गोल्लाकुंडा, गोमगुड़ा, मेटागुड़ा, उसकावाया और नुलकातोंग

बदलाव के पीछे सुरक्षा बलों और विकास की भूमिका

इन गांवों में राष्ट्रीय ध्वज फहराना इसलिए संभव हो सका क्योंकि—

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  • सुरक्षा बलों ने नक्सल गढ़ों में प्रवेश कर उनकी पकड़ कमजोर की।

  • आईटीबीपी और जिला बल के कई नए शिविर खोले गए।

  • बीजापुर में 11 नए कैंप स्थापित कर दूरस्थ गांवों तक पहुंच बनाई गई।

  • आत्मसमर्पण नीति के तहत कई नक्सली मुख्यधारा में लौटे।

  • सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का विस्तार हुआ।

  • प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा जैसी योजनाएं गांवों तक पहुंचीं।

ग्रामीणों के जीवन में नई उम्मीद

इन गांवों में तिरंगा फहराना इस बात का प्रतीक है कि अब यहां राज्य का शासन स्थापित हो चुका है और माओवादी प्रभाव कमजोर हो गया है।

  • अब स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र खुलने लगे हैं।

  • रोजगार और खेती-किसानी को बढ़ावा मिल रहा है।

  • ग्रामीण बिना डर के स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गौरव का अनुभव कर रहे हैं।

  • पर्यटन और स्थानीय उद्योगों को भी बढ़ावा मिलने की संभावना है।

ऐतिहासिक मील का पत्थर

कर्रेगुट्टा समेत बस्तर के 29 गांवों में तिरंगा फहराना दशकों की आंतरिक गुलामी और भय से मुक्ति का प्रतीक है। यह घटना सुरक्षा बलों की कड़ी मेहनत, सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और सबसे बढ़कर आम ग्रामीणों की हिम्मत व उम्मीद की मिसाल है।

यह बस्तर के लिए एक नए युग की शुरुआत है—जहां शांति, विकास और राष्ट्रीय एकता की नई सुबह दिखाई दे रही है।


Ashish Sinha

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