ताजा ख़बरेंदेशब्रेकिंग न्यूज़
Trending

E-अटेंडेंस का संकट: MP के बड़ौद ब्लॉक में शिक्षक पेड़ पर चढ़कर लगा रहे उपस्थिति; पढ़ाई प्रभावित

आगर जिले के बड़ौद विकासखंड में मोबाइल नेटवर्क की समस्या के कारण शिक्षक जान जोखिम में डालकर पेड़ों पर चढ़कर E-अटेंडेंस दर्ज कर रहे हैं। इस डिजिटल डिवाइड से बच्चों की पढ़ाई और शिक्षकों का समय बर्बाद हो रहा है। BEO ने उच्चाधिकारियों को दी सूचना।

डिजिटल इंडिया की कड़वी सच्चाई: आगर के बड़ौद ब्लॉक में जान जोखिम में डाल रहे शिक्षक, पेड़ पर चढ़कर लगा रहे E-अटेंडेंस

भारत सरकार देश के हर कोने में सुशासन और पारदर्शिता लाने के लिए डिजिटल समाधानों को अनिवार्य कर रही है। इसी कड़ी में, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए ई-अटेंडेंस ऐप को अनिवार्य किया गया है। लेकिन मध्य प्रदेश के आगर जिले के बड़ौद विकासखंड में यह डिजिटल अनिवार्यता ग्रामीण भारत की कड़वी सच्चाई—यानी मोबाइल नेटवर्क के गहरे संकट—से टकरा रही है।

WhatsApp Image 2025-09-25 at 3.01.05 AM

यहाँ के शिक्षकों को अपनी दैनिक उपस्थिति दर्ज करने के लिए हर सुबह अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है। मजबूरन, वे स्कूल परिसर के आस-पास ऊंचे पेड़ों पर चढ़कर या दूर-दराज के ऊँचे स्थानों पर जाकर मोबाइल सिग्नल तलाशते हैं, ताकि सरकारी पोर्टल पर वे ‘उपस्थित’ दर्ज हो सकें। यह स्थिति न केवल शिक्षकों की गरिमा और सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगाती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता को भी सीधे प्रभावित कर रही है।

बड़ौद ब्लॉक के पिपल्या हमीर, सुदवास सहित कई गांवों के शासकीय विद्यालयों में मोबाइल नेटवर्क का इतना गहरा अभाव है कि शिक्षक अपनी उपस्थिति ऐप पर दर्ज करने के लिए घंटों संघर्ष करते हैं।

mantr
96f7b88c-5c3d-4301-83e9-aa4e159339e2 (1)
  1. नेटवर्क की तलाश: शिक्षकों को सुबह विद्यालय पहुँचने के तुरंत बाद पढ़ाने के बजाय, सबसे पहले नेटवर्क खोजने में समय लगाना पड़ता है। यह तलाश अक्सर उन्हें पेड़ों पर या स्कूल की छत जैसे ऊँचे स्थानों पर ले जाती है।
  2. जोखिम भरा काम: ई-अटेंडेंस दर्ज करते समय पेड़ों पर चढ़ने की ये तस्वीरें बताती हैं कि डिजिटल अनिवार्यता ने शिक्षकों को किस कदर जोखिमपूर्ण स्थिति में धकेल दिया है। एक गलत कदम किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है।
  3. जियो-टैगिंग की समस्या: शिक्षकों ने शिकायत की है कि जहाँ थोड़ा-बहुत नेटवर्क मिलता भी है, वहाँ ई-अटेंडेंस ऐप में उनकी जियो-लोकेशन (Geo-location) स्कूल परिसर से कई सौ मीटर दूर दिखाई देती है।
  4. अनुपस्थिति का खतरा: नेटवर्क न मिलने के कारण बार-बार प्रयास करने पर भी जब अटेंडेंस दर्ज नहीं हो पाती, तो शिक्षक को विभागीय पोर्टल पर ‘अनुपस्थित’ (Absent) दिखा दिया जाता है, जिसका सीधा असर उनके वेतन और सेवा रिकॉर्ड पर पड़ता है।

यह संकट केवल शिक्षकों की उपस्थिति तक सीमित नहीं है। नेटवर्क ढूढने और अटेंडेंस के तकनीकी संघर्ष में शिक्षकों का बहुमूल्य समय और ऊर्जा बर्बाद होती है। शिक्षण कार्य शुरू करने से पहले ही उनकी ऊर्जा और ध्यान बँट जाता है, जिसका खामियाजा अंततः ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों की पढ़ाई को भुगतना पड़ता है। डिजिटल समाधान, जिसका उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को सुचारू बनाना था, वही अब शिक्षा के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बन गया है।

स्थानीय शिक्षकों ने कई बार यह समस्या उच्च अधिकारियों के समक्ष रखी है।

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी मंगलेश सोनी ने इस बात की पुष्टि की है कि स्कूलों में नेटवर्क नहीं मिलने की गंभीर समस्या की जानकारी भोपाल के उच्चाधिकारियों को दे दी गई है। उन्होंने जल्द ही इस समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया है।

शिक्षकों का मत है कि शासन के डिजिटल प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय हैं, लेकिन उन्हें तभी सफल बनाया जा सकता है जब ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी कनेक्टिविटी उपलब्ध हो। उन्होंने प्रशासन और दूरसंचार कंपनियों से निम्न मांगें की हैं:

  • विद्यालय परिसरों के पास तत्काल मोबाइल टॉवर लगाए जाएं।
  • विकल्प के रूप में, कमजोर सिग्नल वाले क्षेत्रों में प्रभावी सिग्नल बूस्टर लगाए जाएं।

यह मामला पूरे देश के उन ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों के लिए एक चेतावनी है, जहाँ डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए पहले बुनियादी दूरसंचार अवसंरचना (Telecommunication Infrastructure) को मजबूत करना अपरिहार्य है। जब तक हर स्कूल में विश्वसनीय नेटवर्क नहीं होगा, तब तक पेड़ पर चढ़कर E-अटेंडेंस लगाना ही शिक्षकों की मजबूरी बनी रहेगी।

Ashish Sinha

e6e82d19-dc48-4c76-bed1-b869be56b2ea (2)

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!