
रामगढ़ पर्वत को बचाने मुख्यमंत्री को टी.एस. सिंहदेव का पत्र, केंते एक्सटेंशन खदान पर उठाए सवाल
केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक से रामगढ़ पर्वत पर खतरे को लेकर पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को छह पृष्ठों का पत्र भेजा। धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर जताई चिंता।
रामगढ़ पर्वत की धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहर को बचाने मुख्यमंत्री को पत्र – पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव
अंबिकापुर, सरगुजा। केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक को वन विभाग की स्वीकृति और इस खदान के कारण सरगुजा की धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर रामगढ़ पर्वत पर मंडरा रहे खतरे को लेकर पूर्व उपमुख्यमंत्री श्री टी.एस. सिंहदेव ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को छह पृष्ठों का तथ्यात्मक पत्र भेजा है।
सिंहदेव ने डीएफओ सरगुजा द्वारा तैयार किए गए 10 बिंदुओं वाले स्थल प्रतिवेदन को शासकीय अभिलेखों से खंडित करते हुए इस महत्वपूर्ण स्थल की रक्षा हेतु भावनात्मक अपील की है। उन्होंने कहा कि यह स्थल प्रभु श्रीराम के वनवास काल से जुड़ा हुआ है, जहाँ सीता बेंगरा और जोगीमारा गुफा जैसी संरक्षित धरोहरें मौजूद हैं। यही नहीं, यहाँ विश्व की प्राचीन नाट्यशाला भी स्थित है।
उन्होंने अपने पत्र में उल्लेख किया कि –
✔ रामगढ़ पर्वत का पर्यावरणीय महत्व और वन्यजीवों का आवासीय क्षेत्र खदान की 10 किमी परिधि में आता है।
✔ राजस्थान राज्य विद्युत निगम के सर्वे में इस क्षेत्र को खदान की 10 किमी सीमा में बताया गया है, जबकि वन विभाग ने जीपीएस लोकेशन बदलकर इसे 11 किमी से बाहर दर्शाया है।
✔ वन विभाग ने अपनी रिपोर्ट में राममंदिर का उल्लेख नहीं किया, न ही यह बताया कि इस खदान के 10 किमी के भीतर लेमरू प्रोजेक्ट भी है, जो मानव-हाथी संघर्ष रोकने के लिए स्थापित किया गया है।
✔ पारस कोयला खदान में अब भी 350 मिलियन टन कोयला शेष है, जो राजस्थान के 4350 मेगावाट संयंत्र की आगामी 20 वर्षों की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त है। ऐसे में नई खदान खोलने की आवश्यकता नहीं है।
पूर्व उपमुख्यमंत्री ने सवाल उठाया कि जब विधानसभा में केंते एक्सटेंशन खदान के विरोध में पारित संकल्प में भाजपा विधायकों ने भी समर्थन किया था, तब अब यह परियोजना क्यों लाई जा रही है?
सिंहदेव ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि सरगुजा की धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत को बचाने के लिए निर्णायक पहल करें और इस खदान को स्वीकृति न दें।