मोदी सरकार की मजदूर श्रमिक किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ स्वामीनाथ जायसवाल ने खोला मोर्चा
मोदी सरकार की मजदूर श्रमिक किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ स्वामीनाथ जायसवाल ने खोला मोर्चा
नई दिल्ली भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी नाथ जायसवाल ने कहा कि मोदी के मेक इंडिया वाले आत्मनिर्भर भारत में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की दुर्दशा देखकर मैं व्यथित हूं। अगर आप किसी भी समाचार पत्र के पन्ने पलट कर देखो तो आपको यही दिखेगा अगर कोई दुर्घटना हुई तो उस दुर्घटना में मरने वाला मेरा मजदूर भाई है किसी के परिवार के साथ कोई अनहोनी हुई है तो वह परिवार मेरे मजदूर भाई का है आज मैं स्वामीनाथ जयसवाल भरी आवाज से प्रधानमंत्री मोदी जी से यह अवश्य कहना चाहूंगा कि जब भी अर्थव्यवस्था पर संकट आता है तो आप का संकट दूर करने के लिए यही मजदूर अपना खून जलाता है और पसीना बहाता है और तब जाकर आपका मेक इन इंडिया आत्मनिर्भर भारत कहलाता है मगर जब मजदूरों की दुर्दशा की बात होती है तो सबसे पहले याद आती है उन प्रवासी मजदूरों की जिन्हें लोक डाउन के कारण शहर छोड़कर गांव की ओर भागना पड़ा था जिस लोक डाउन को लागू करने का फैसला भी बिन बादल के हुई बरसात की तरह लिया गया था मोदी जी चलो मान लिया कि यही सही है कि आप व्यक्तिगत तौर पर जाए इसके दोषी नहीं हो पर आपकी सरकार को भी बिना बताए किसी तैयारी के सिर्फ 4 घंटे के नोटिस पर लोक डाउन घोषित करने के बावजूद इस आधार पर दोषी ना मानना चाहिए कि आपके पास कोई और चारा नहीं था लेकिन यदि आपने अगर सामाजिक संवेदना है तो अपराध भाव से पूरी तरह मुक्त होना आपके लिए काफी मुश्किल है आप की सरकार में आप ही की तरह इतने अनुभवी नेता के होते हुए भी किसी के दिमाग में नहीं आया कि जब प्रधानमंत्री यह कहेंगे कि 3 हफ्ते आप अपने घरों में रहो तो इन प्रवासी मजदूरों को भी तो अपने घर ही जाना होगा और ऐसी परिस्थिति में वह क्या खाएंगे उनका गुजारा कैसे होगा और वह जिएंगे या मरेंगे?
दिल्ली मुंबई बेंगलूर राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश के अन्य बड़े शहरों से पलायन कर रहे जिन प्रवासी मजदूरों की तस्वीरें आपने देखी है यह सब लोग असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक से मजदूरों के कल्याण के मामले में तो मोदी जी के सरकार की जितनी कम बात की जाए उतना अच्छा क्योंकि परत दर परत उपेक्षा के इतने उदाहरण मिलेंगे कि उनके लिए अलग-अलग की आवश्यकता होगी हद तो यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों को असंगठित क्षेत्र के मजदूरों या फिर ठेके पर काम कर रहे मजदूरों की संख्या भी ठीक से मालूम नहीं है जनगणना या एनएसएसओ के आंकड़े कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं देते 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या कुल वर्कफोर्स का 93 हे तो नीति आयोग ने 85 और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने इसे 82 बताया आजीविका ब्यूरो के अनुसार देश में 12 करोड से भी ज्यादा ऐसे मजदूर है जो गांव से बड़े शहरों में श्रम बाजार की ओर आते हैं इनमें सबसे बड़ी संख्या तो निर्माण मजदूरों की है (लगभग 4 करोड़) फिर घरेलू श्रमिक (2 करोड़) और टेक्सटाइल मजदूरों (एक करोड़ 10 लाख) का नंबर आता है इनके अलावा कृषि के पट्ठे और परिवहन इत्यादि क्षेत्रों में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर काम करते हैं तथा स्वामीनाथ जयसवाल ने बताया कि असंगठित क्षेत्र के उद्योगों का अर्थ व्यवस्था में क्या योगदान है इस पर भी कोई निश्चित आंकड़ा नहीं मिलता लेकिन जीडीपी में असंगठित क्षेत्र का कम से कम 50 योगदान तो है ही।
तथा स्वामीनाथ जयसवाल ने कहा कि मजदूर कल्याण से संबद्ध योजनाएं जो कांग्रेस सरकार के शासन में बनी थी वह सभी भाजपा सरकार के मौजूदा शासन काल में कितनी उपेक्षित है इसके कई उदाहरण में प्रस्तुत कर सकता हूं मगर फिलहाल तो मैं देश के प्रवासी मजदूरों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए यह अवश्य बताना चाहूंगा कि प्रवासी मजदूरों की आवाज उठाने के लिए ही कांग्रेस सरकार ने एक कानून 1979 में बनाया था मगर ना पिछले 6 बरस में बल्कि लोक डाउन लागू करने के समय भी मौजूदा भाजपा सरकार के प्रभाव में यह कानून सिर्फ कागजी कार्रवाई में ही रह गया और कोई उसका पालन करता नजर नहीं आया।