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ग्रामीण महिलाएं बना रहीं सेनेटरी पैड

रायपुर : ग्रामीण महिलाएं बना रहीं सेनेटरी पैड

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फिल्म और यू-ट्यूब पर वीडियो देखकर आया विचार

जिला प्रशासन से मिला सहयोग, आर्थिक संबलता की ओर बढ़े कदम

राजधानी रायपुर के बीटीआई ग्राउंड में महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से बीते 5 मार्च से चार दिवसीय महिला मड़ई का आयोजन किया जा रहा है। इस महिला मड़ई में विशेष आकर्षण रायगढ़ और जांजगीर जिले के दो स्टॉल बने हुए हैं। दरअसल इन स्टॉलों पर सेनेटरी पैड को प्रदर्शनी और बिक्री के लिए रखा गया है। विशेषता यह है कि बाजार में बिकने वाले किसी बड़े ब्रांड की तरह ही और गुणवत्ता में कहीं बेहतर सेनेटरी पैड का निर्माण यहां ग्रामीण महिलाएं कर रही हैं। ग्रामीण महिलाओं द्वारा सेनेटरी पैड बनाने को लेकर किस्सा भी रोचक है।

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रायगढ़ जिला के अंतर्गत उमा स्व-सहायता समूह खम्हार (धरमजयगढ़) की सदस्य सुश्री आशाकिरण व सुश्री मिलिया एक्का ने बताया कि उन्होंने कुछ साल पहले फिल्म पैडमेन देखी थी, इसके बाद ही उन्होंने खुद भी सेनेटरी पैड बनाने के लिए कार्ययोजना बनाई। इसमें जिला प्रशासन का भी पूरा सहयोग मिला। जिला प्रशासन की ओर से 16 लाख रुपये आर्थिक सहयोग के साथ तकनीकी सहयोग मिलने के बाद समूह ने कोयम्बतूर सेनेटरी पैड बनाने की मशीन खरीदी। वहीं बीते जुलाई से ही पावना ब्रांड नेम से सेनेटरी पैड का निर्माण शुरू किया। एक पैकेट सेनेटरी पैड को बनाने में इन्हें 25 रुपये लागत आती है। शुरुआत में ग्रामीण महिलाओं और युवतियों के बीच इस पैड को नि:शुल्क वितरण किया गया। वर्तमान में एक पैकेट को 27 रुपये की दर से विक्रय किया जाता है। जुलाई 2021 से लेकर अब तक समूह ने ब्लॉक के अंतर्गत ही लगभग 6 लाख रुपये के पैड की बिक्री कर ली है। समूह के सदस्यों के अनुसार उनके पावना सेनेटरी पैड की खासियत यह भी है कि एक पैड में 80 एमएल तक लिक्विड सोखने की क्षमता है। वहीं इस्तेमाल के बाद मिट्टी में दबा देने से 90 दिन के भीतर पैड 70 फीसदी तक नष्ट हो जाता है, जिससे पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है।

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इसी तरह जांजगीर-चाम्पा जिले भारती महिला स्व-सहायता समूह और उजाला महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं मिलकर सहेली ब्रांड नेम से सेनेटरी पैड बना रही हैं। इन महिलाओं को सेनेटरी पैड बनाने की प्रेरणा यू-ट्यूब पर वीडियो देखकर मिली। इसके बाद बैंक से दो लाख रुपये का लोन और एक लाख रुपये अपनी जमापूंजी को मिलाकर सेनेटरी पैड बनाने का काम शुरू किया। समूह की महिलाओं ने बताया कि अब तक उन्हें लागत खर्च निकालकर डेढ़ लाख रुपये की आमदनी हो चुकी है।

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आत्मनिर्भरता की राह में राज्य की महिलाएं

पहले खुद इस्तेमाल कर परखी गुणवत्ता :

ग्रामीण स्तर पर सेनेटरी पैड का निर्माण करने वाली स्व-सहायता समूह की महिलाओं से गुणवत्ता को लेकर सवाल पर उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए सेनेटरी पैड की गुणवत्ता को परखने के लिए पहले समूह की महिलाओं ने खुद ही इस्तेमाल किया। गुणवत्ता के संदर्भ में जब स्वयं संतुष्ट होने के बाद ही इन सेनेटरी पैड को अन्य युवतियों और महिलाओं को इस्तेमाल के लिए दिया गया।

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ग्रामीण महिलाओं को कर रही हाईजीन के लिए जागरूक :

सेनेटरी पैड बनाने वाली महिला स्व-सहायता समूह की सदस्यों ने बताया कि आज भी ग्रामीण स्तर पर कई इलाके ऐसे हैं, जहां माहवारी के समय परम्परागत रूप से कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है। इससे होने वाले नुकसान को लेकर बहुत सी ग्रामीण महिलाओं को जानकारी नहीं है। ऐसी परिस्थिति में इन महिलाओं को शारीरिक स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए जागरूक करना किसी चुनौती से कम नहीं है। हाईजीन के लिए सेनेटरी पैड के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के दौरान कई बार स्व-सहायता समूह की सदस्यों को जूझना पड़ता है, लेकिन धीरे-धीरे जागरूकता आ रही है। अब सुदूर गांवों में भी युवतियों के साथ बड़ी उम्र की महिलाएं भी सेनेटरी पैड के इस्तेमाल और फायदों को लेकर जागरूक हो रही हैं।

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स्कूल से लेकर गांव की गलियों तक पहुंच रहा सेनेटरी पैड :

महिला स्व-सहायता समूह की सदस्यों ने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए सेनेटरी पैड की सप्लाई गांव व नजदीकी शहरों के स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल, आंगनबाड़ी केन्द्र से लेकर गांव की गलियों में महिलाओं तक हो रही है। इसमें मितानिन व स्वच्छता दीदीयों का भी सहयोग मिल रहा है। वहीं अब गांव व ब्लॉक के कई मेडिकल स्टोर व जनरल स्टोर्स में भी पावना और सहेली ब्रांड नेम के सेनेटरी पैड उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

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Ashish Sinha

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