रियासत कालीन फागुन मड़ई देवी-देवताओं के संगम के साथ 26 से होगा शुरू
दंतेवाड़ा। दंतेश्वरी मन्दिर में मनाये जाने वाले रियासत कालीन फागुन मड़ई का आयोजन शताब्दियों से चली परंपरानुसार 26 फरवरी से शुरू हो जायेगा। फागुन मड़ई शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि से प्रारंभ होकर 9 दिनों तक रोजाना देवी दंतेश्वरी और मावली माता की पालकी मन्दिर से निकलकर नारायण मंदिर तक जाती है, 9वीं पालकी के बाद बड़ा मेला भरता है। इस दिन देवी दंतेश्वरी के साथ आमंत्रित देवी देवता नगर परिक्रमा करते हैं।
जिसमेें देवी-देवताओं के छत्र और लंबे बांस पर लगी ध्वजा पताकाएं लेकर ग्रामीण चलते हैं और उनके साथ में फाग गायन करती मंडलियां चलती है। इस आयोजन में बस्तर संभाग के साथ ही ओडिशा से भी आमंत्रित देवी देवता शामिल होते हैं। बीते वर्ष में 823 देवी-देवताओं का आगमन टेम्पल कमेटी के रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था।
दंतेश्वरी मन्दिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के मुताबिक बसंत पंचमी पर मन्दिर के सामने अष्टधातू की त्रिशूल स्थापना होती है। इसके साथ ही फागुन मड़ई की तैयारियां शुरू हो जाती है। फागुन मड़ई की शुरुआत फागुन महीने में करते हैं। मेले के दौरान देर रात आखेट का स्वांग भी रचा जाता है। इन्हें लमहा मार, कोडरी मार, कोडरी मार, चीतर मार, गंवर मार के नाम से जानते हैं। इन्हें देखने ग्रामीण दूर-दराज से यहां पहुंचते हैं। मेले में होलिका दहन व रंग-भंग का आयोजन भी अपने आप में विशिष्टता लिया हुआ है। इस होलिका दहन में लकडिय़ां नहीं, बल्कि ताड़ के पत्तों की होलिका सजाई जाती है। इसके दहन के बाद राख से तिलक कर अगली सुबह रंग-भंग की रस्म पूरी करते हैं।
26 फरवरी प्रथम पालकी, कलश स्थापना, 27 फरवरी द्वितीय पालकी व ताड़ फलंगा धोनी, 28 फरवरी तृतीय पालकी, खोरखुंदनी, 1 मार्च चतुर्थ पालकी, नाच मांडनी, 2 मार्च पंचम पालकी, लमहामार, 3 मार्च षष्टम पालकी, कोडरीमार, 4 मार्च सप्तम पालकी, चीतरमार, 5 मार्च अष्टम पालकी, गंवरमार, 6 मार्च नवम पालकी, आंवरामार, गारी व होलिका दहन, 7 मार्च रंग-भंग व पादुका पूजन, 8 मार्च बड़ा मेला-मंडई, नगर परिक्रमा, 9 मार्च देवी-देवताओं की विदाई के साथ ही फागुन मंड़ई संपन्न होगा।