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बम-बंदूक, धुआं… राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश को कर दिया खत्म, अतीक अहमद से था खतरा! पिछले 18 साल की कहानी

लखनऊ: उमेश पाल दिनदहाड़े हत्याकांड ने एक बार फिर बाहुबली अतीक अहमद के दौर की याद ताजा कर दी है। कुछ इसी तरह करीब से 18 साल पहले विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी। उन पर भी एक बार नहीं, बल्कि दो बार घेर कर वार किया गया था। शुक्रवार को घर के पास गाड़ी से उतरते ही उमेश पाल पर गोलियों की बौछार कर दी। घर, गाड़ी पर बम से हमला किया गया। पूरा इलाका इस वारदात से दहल उठा। उमेश पाल पर पहले ही अतीक अहमद गिरोह की तरफ से हमले की आशंका थी। इसके बाद भी महज दो सुरक्षाकर्मी मिले थे और हमले के वक्त वो भी बड़े हथियारों का सामना नहीं कर सके।
अतीक अहमद के खिलाफ बंद हो चुके मुकदमे को खुलवाना, गवाहों को ले जाकर कोर्ट में गवाही करवाना उमेश के लिए बड़ा खतरा था। कई बार धमकियों के बावजूद राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अपना इरादा नहीं बदला। यही उन पर हमले की मुख्य वजह रही।

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सूत्रों के मुताबिक अतीक से जुड़े दो मामलों में उमेश की पैरवी के चलते मुकदमे सजा की दहलीज तक पहुंच गए हैं। कोर्ट ने इन मामलों में जल्द सजा कराने के निर्देश भी दे रखे थे। शुरुआती पड़ताल के बाद हत्याकांड में अतीक गैंग के शामिल होने की बात ही सामने आ रही है। सूत्रों के मुताबिक उमेश पाल पिछले कुछ सालों से प्लॉटिंग के धंधे से जुड़ गया था। इस धंधे में अतीक के गैंग से जुड़े कई लोग एक-एक करके उसके साथ आ गए थे। उमेश के करीबी लोगों ने उसे इस बात के लिए आगाह किया और उन लोगों से सतर्क रहने को कहा। लेकिन उमेश ने इन बातों को नजरअंदाज कर दिया। माना जा रहा है कि इन लोगों ने उमेश के मूवमेंट, वह पैरवी के लिए किससे और कहां मिल रहा है, किस-किस का हाथ उसके पीठ पर है, जैसी जानकारियां जुटाने के बाद इस हत्याकांड को अंजाम देने की जमीन तैयार की।
अलकमा मर्डर केस को फिर से खुलवाने में थी अहम भूमिका

25 सितंबर 2015 को धूमनगंज थाना क्षेत्र के मरियाडीह में अतीक अहमद के करीबी फरहान और अमित की चचेरी बहन अलकमा और उसके ड्राइवर सुजीत की हत्या हुई थी। फाइनल रिपोर्ट लग चुके इस मामले को उमेश ने बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद फिर से खुलवाने और उसमें अतीक और उसके भाई अशरफ को आरोपित बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। एक अन्य मामला रेलवे ठेकेदार जितेंद्र की हत्या से जुड़ा था। इसमें जितेंद्र कुमार की मां सूरजकली और भतीजे हंसराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आरोप लगाया था कि जितेंद्र हत्याकांड का मुख्य आरोपित उमेश पाल और उसका भाई है। अतीक और उसके भाई अशरफ को फंसाया जा रहा है। हालांकि पुलिस की विवेचना के बाद अतीक अहमद को साजिश रचने और छोटे भाई मोहम्मद अशरफ को वारदात करने का आरोपित बनाया गया था। अतीक और उसके गैंग के लोगों के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई की पैरवी भी उमेश ने ही की थी। इसमें बाद में 14 (1) की कार्रवाई के तहत अतीक की संपत्तियां सीज की गईं और अवैध कब्जे से मुक्त कराई गईं।

सुरक्षा और सूचना तंत्र दोनों हो गए फेल

प्रयागराज पुलिस का सूचना और सुरक्षा तंत्र दोनों फेल हो गए। खुफिया एजेंसियों से लेकर जिले में तैनात पुलिस और प्रशासन के हर अधिकारी को इस बात की जानकारी थी कि उमेश की जान को लगातार अतीक गैंग से खतरा है। पुलिस-प्रशासन उमेश को दो गनर दिलाने के बाद आश्वस्त हो गए कि अब कुछ नहीं होगा। पुलिस और खुफिया एजेंसियों के मुखबिर तंत्र को इस हत्याकांड की कहीं से भी भनक नहीं लगी। जबकि कमिश्ररेट सिस्टम लागू होने के बाद जिले में अफसरों और फोर्स की संख्या काफी बढ़ गई है।

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दो वरिष्ठ अफसरों में तालमेल नहीं

डीजीपी मुख्यालय ने कमिश्ररेट में अफसरों की तैनाती के दौरान इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि वहां दो ऐसे वरिष्ठ अफसर एक साथ तैनात हो गए हैं, जिनकी एक दूसरे से खास बनती नहीं है। दरअसल ये दोनों वरिष्ठ अफसर पहले भी प्रयागराज में ही दो अहम तैनातियों पर एक साथ रह चुके हैं। उस दौरान इनके आपसी मन मुटाव की खबरें काफी आम थीं।
राजनीतिक वर्चस्व को लेकर हुई थी विधायक राजू पाल की हत्या

25 जनवरी 2005 की दोपहर बाद तीन बजे। स्थान-शहर पश्चिमी विधान सभा का सुलमसराय एरिया। गोलियों की तड़तड़ाहट ने इलाके के लोगों को सकते में डाल दिया था। आसपास के लोग घरों से बाहर निकले लेकिन बसपा विधायक राजू पाल के काफिले पर हो रही फायरिंग के बावजूद हिम्मत नहीं जुटा सके कि हमलावरों का विरोध कर सकें। गोलियों की बौछार के बीच प्रतिरोध करते हुए विधायक राजू पाल की क्वालिस दोबारा शहर की ओर मुड़ी लेकिन गोलियों से छलनी हो चुकी क्वालिस की ड्राइविंग सीट पर बैठे विधायक में अब इतनी जान नहीं थी कि वह ड्राइविंग कर पाते। खून से लथपथ विधायक को उसी गाड़ी में लेकर समर्थक अस्पताल भागे, लेकिन स्वरूपरानी अस्पताल से पहले दोबारा उन्हें घेरकर दर्जनों राउंड फायरिंग की गई। सुलेमसराय से लेकर कोतवाली एरिया में पड़ने वाले एसआरएन अस्पताल के बीच लगभग 5 किलोमीटर तक हमलावर लगातार पीछा और फायरिंग करते रहे। विधायक और उनके दो समर्थकों की मौत की पुष्टि के बाद ही हमलावर फरार हुए।

वर्तमान सपा विधायक और राजू पाल की पत्नी ने दर्ज कराया था केस

फिल्मी अंदाज में दिनदहाड़े हुई विधायक की हत्या के काफी देर बाद पुलिस सक्रिय हुई। इस बीच शाम लगभग 6 बजे तक आधा शहर दहशत में रहा। इस हत्याकांड में राजू पाल के साथ ही उनके दो गनर संदीप यादव और देवीलाल पाल भी मारे गए थे। हत्या की वजह राजनीतिक वर्चस्व की जंग थी। दरअसल अतीक अहमद के सांसद बनने के बाद खाली हुई सीट पर उप चुनाव के दौरान सपा के टिकट से अतीक के भाई अशरफ ने चुनाव लड़ा था और बीएसपी से राजू पाल सामने थे। राजू पाल ने अशरफ को करारी शिकस्त दी थी, जिसके बाद राजू पाल माफिया के निशाने पर थे। उनकी हत्या के बाद हुए उपचुनाव में अशरफ फिर सपा के टिकट पर लड़ा और चुनाव जीत गया। राजू पाल की पत्नी और वर्तमान सपा विधायक पूजा पाल की तहरीर पर धूमनगंज थाने में पूर्व सांसद अतीक अहमद, उनके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ, गुलफुल, रंजीत पाल आबिद, इसरार, आशिक, जावेद, एजाज, अकबर और फरहान को आरोपित बनाया गया था। इनके खिलाफ 6 अप्रैल 2005 को आइपीसी की धारा 147, 148, 149, 302, 506, 120-बी और 7 सीएलए एक्ट के तहत 6 अप्रैल 2005 को आरोप पत्र दाखिल किया गया था। विधायक राजू पाल हत्याकांड में लखनऊ स्थित सीबीआई कोर्ट में माफिया अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ समेत अन्य आरोपितों पर आरोप तय हो चुके हैं।

राजू पाल हत्याकांड में तय हो चुके हैं आरोप

  • 12 दिसंबर, 2008 को इस मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गई थी।
  • 10 जनवरी, 2009 को सीबीसीआईडी ने पांच अभियुक्तों के खिलाफ अपना पहला पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। जिसमें मुस्तकिल, मुस्लिम उर्फ गुड्डू, गुलहसन, दिनेश पासी व नफीस कालिया को आरोपित बनाया गया था।
  • 4 अप्रैल 2009 को सीबीसीआईडी ने अपनी दूसरा पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें सिर्फ गुफरान को आरोपित बनाया गया था।
  • 24 दिसंबर, 2009 को सीबीसीआईडी ने इस मामले में तीसरा पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें अब्दुल कवि को आरोपित बनाया गया था। इनमें अशरफ और अतीक के अलावा रंजीत पाल, आबिद, फरहान अहमद, इसरार अहमद, जावेद, गुलफुल उर्फ रफीक अहमद, गुलहसन व अब्दुल कवि को आरोपित बनाया गया है।
  • 22 जनवरी, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी। सीबीआई ने मामला दर्ज कर विवेचना के बाद 20 अगस्त 2019 को आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी।
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