
अंबिकापुर नगर निगम की लापरवाही: मायापुर पंपिंग स्टेशन की जर्जर टंकी गिराने का काम अधर में लटका
नगर निगम की लापरवाही: मायापुर पंपिंग स्टेशन की जर्जर टंकी गिराने का काम अधर में लटका
अंबिकापुर | नगर निगम अंबिकापुर की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान लग गया है। मायापुर पंपिंग स्टेशन पर स्थित 450 किलोलीटर की जर्जर आर.सी.सी. टंकी को गिराने के लिए दो बार टेंडर जारी किए गए, लेकिन कार्य आज तक शुरू नहीं हो सका। जबकि कार्य की निर्धारित अवधि भी लगभग समाप्त होने को है। यह मामला प्रशासनिक उदासीनता और नगर निगम की लचर व्यवस्था का जीता-जागता उदाहरण बन गया है।
दो बार टेंडर, फिर भी नहीं हुआ काम
नगर निगम अंबिकापुर ने पहली बार 17 जनवरी 2025 को इस टंकी को गिराने हेतु 3.87 लाख रुपए की लागत से निविदा आमंत्रित की थी। इसके लिए इच्छुक ठेकेदारों से 7 फरवरी 2025 तक सीलबंद निविदाएँ मांगी गई थीं और निविदाएँ 10 फरवरी 2025 को खोली जानी थीं। लेकिन, प्रशासनिक लापरवाही और निर्वाचन कार्यों में व्यस्तता के चलते यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी।
बाद में नगर निगम ने 17 फरवरी 2025 को निविदा संशोधन सूचना जारी कर नई तारीखें तय कीं। संशोधित कार्यक्रम के अनुसार, निविदा प्रपत्र प्राप्त करने की अंतिम तिथि 27 फरवरी 2025 और निविदा खोलने की तिथि 28 फरवरी 2025 निर्धारित की गई। बावजूद इसके, निविदा प्रक्रिया को अंतिम रूप नहीं दिया गया, और कार्य प्रारंभ नहीं हो सका।
नगर निगम की धीमी कार्यशैली पर उठ रहे सवाल
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब नगर निगम ने निविदा प्रक्रिया पूरी कर ली, तो फिर काम शुरू क्यों नहीं हुआ? क्या यह ठेकेदारों की अनदेखी है, या फिर नगर निगम के अधिकारियों की निष्क्रियता?
मायापुर पंपिंग स्टेशन की यह जर्जर टंकी किसी भी वक्त गिर सकती है, जिससे बड़ा हादसा हो सकता है। स्थानीय लोग इस टंकी की खस्ता हालत से चिंतित हैं और बार-बार नगर निगम से इसे जल्द गिराने की मांग कर रहे हैं। लेकिन निगम प्रशासन की सुस्त चाल से लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
स्थानीय नागरिकों की प्रतिक्रिया
रामेश्वर वर्मा, जो मायापुर क्षेत्र के निवासी हैं, बताते हैं—
“हम पिछले कई महीनों से देख रहे हैं कि यह टंकी बेहद जर्जर हो चुकी है। इसकी हालत देखकर डर लगता है कि कब गिर जाए और किसी को नुकसान हो जाए। दो बार टेंडर होने के बाद भी अगर निगम इसे नहीं गिरा पा रहा है, तो इससे बड़ी लापरवाही क्या होगी?”
वहीं, अंजलि तिवारी, जो पास के एक स्कूल की शिक्षिका हैं, कहती हैं—
“बच्चे रोज़ इस टंकी के पास से गुजरते हैं। नगर निगम को चाहिए कि इस पर तत्काल कार्यवाही करे। अगर कोई अनहोनी होती है, तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?”
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
नगर निगम के एक पूर्व अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि—
“कई बार टेंडर जारी होने के बावजूद कार्य न होने के पीछे ठेकेदारों की निष्क्रियता भी एक कारण होती है। कई बार उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिलता, जिससे वे काम करने से बचते हैं। इसके अलावा, नगर निगम का प्रशासनिक तंत्र भी बेहद धीमा है, जिससे इस तरह की देरी होती है।”
क्या कोई बड़ा हादसा होने का इंतजार?
मायापुर पंपिंग स्टेशन की जर्जर टंकी को लेकर कई सवाल खड़े हो चुके हैं—
क्या नगर निगम किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है?
जब दो बार निविदा निकाली गई, तो काम शुरू क्यों नहीं हुआ?
क्या ठेकेदारों को भुगतान न मिलने की वजह से यह देरी हो रही है?
आखिरकार, इस मामले में नगर निगम की जवाबदेही तय क्यों नहीं हो रही?
स्थानीय लोग प्रशासन से इस टंकी को जल्द गिराने की मांग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि अगर नगर निगम खुद इसे नहीं गिरा सकता, तो किसी अन्य एजेंसी को जिम्मेदारी सौंपकर कार्य पूरा करवाया जाए।
नगर निगम की सफाई, लेकिन सवाल बरकरार
क्या करेंगे महापौर और आयुक्त?
नगर निगम के अधिकारी लगातार इस मामले को टाल रहे हैं। महापौर और आयुक्त की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है।
अगर कोई हादसा हुआ,
तो क्या तब जागेगा नगर निगम?
तो क्या वे इसकी जिम्मेदारी लेंगे?
लेकिन, सवाल यह है कि अगर नगर निगम को पता था कि निर्वाचन कार्यों के कारण देरी हो सकती है, तो उन्होंने पहले से वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की?
नगर निगम की इस लापरवाही से स्थानीय लोग बेहद नाराज हैं। अगर जल्द ही इस टंकी को गिराने का कार्य नहीं किया गया, तो जनता विरोध प्रदर्शन भी कर सकती है। प्रशासन को चाहिए कि इस कार्य को प्राथमिकता दे, ताकि किसी अनहोनी से पहले इस समस्या का समाधान हो सके।
फिलहाल, नगर निगम की निष्क्रियता से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रशासनिक लापरवाही और ठेकेदारों की उदासीनता के चलते यह कार्य अधर में लटका हुआ है। अब देखना यह होगा कि नगर निगम कब इस दिशा में ठोस कदम उठाता है, या फिर इसे लेकर कोई बड़ा हादसा होने का इंतजार किया जा रहा है?
अब सवाल यह है कि यह टंकी पहले गिरेगी या प्रशासन की नींद टूटेगी?