छत्तीसगढ़ताजा ख़बरेंब्रेकिंग न्यूज़राजनीतिराज्यसरगुजा

‘अब सूरत वैसी नहीं, बदल गई तारीख़, तू अपने को बदल ले, मानो मेरी सीख’

‘अब सूरत वैसी नहीं, बदल गई तारीख़, तू अपने को बदल ले, मानो मेरी सीख’

WhatsApp Image 2025-09-25 at 3.01.05 AM

बुद्ध पूर्णिमा और राजा राममोहन राय की जयंती पर तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्यगोष्ठी

mantr
96f7b88c-5c3d-4301-83e9-aa4e159339e2 (1)
WhatsApp Image 2025-09-03 at 7.26.21 AM
WhatsApp Image 2025-09-03 at 7.07.47 AM
WhatsApp Image 2025-09-02 at 10.51.38 PM
WhatsApp Image 2025-09-02 at 10.47.11 PM
WhatsApp Image 2025-09-02 at 10.40.50 PM
ABHYANTA DIWAS new (1)_page-0001

अम्बिकापुर। भगवान बुद्ध और आधुनिक भारत के निर्माता राजा राममोहन राय की जयंती पर तुलसी साहित्य समिति की ओर से शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में केशरवानी भवन में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गीता मर्मज्ञ पं. रामनारायण शर्मा, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्माशंकर सिंह, अनिल त्रिपाठी और वरिष्ठ व्याख्याता सच्चिदानंद पांडेय थे।
मां वीणावादिनी की पूजा, तुलसीकृत रामचरितमानस और बंशीधर लाल रचित सरगुजिहा रामायण के पारायण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। सरस्वती-वंदना कवयित्री माधुरी जायसवाल ने पेश की। पं. रामनारायण शर्मा ने कहा कि राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के निर्माता थे। वे भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत, ब्रह्मसमाज के संस्थापक और सच्चे अर्थों में महामानव थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ ही तत्कालीन समाज में व्याप्त धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास और सतीप्रथा-जैसी भयानक कुरीतियों के खिलाफ न सिर्फ़ व्यापक आंदोलन चलाया बल्कि उन्हें समाप्त करने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक श्रेष्ठ पत्रकार भी थे। उन्होंने बंगदूत, संवाद-कौमुदी, मिरात-उल-अख़बार- जैसे पत्रों का प्रकाशन व संपादन किया। विद्वान् ब्रह्माशंकर सिंह ने भगवान् बुद्ध के विषय में कहा कि बुद्ध भगवान विष्णु के अवतार थे। उन्होंने जरा, मरण सहित संसार के समस्त दुखों से जनमानस को मुक्ति दिलाने व सत्ययुक्त दिव्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने परिवार और राजसी वैभव का परित्याग कर संन्यास का मार्ग चुना और कठोर तपस्या कर बुद्धत्व की प्राप्ति की। उन्होंने विश्व-मानवता को सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, क्षमा, इंद्रियनिग्रह और सदाचारी जीवन जीने का संदेश दिया, दुख निवृत्ति के उपाय भी बताए। सच्चिदानंद पांडेय ने बताया कि गौतम बुद्ध के समय में भारत में वैदिक धर्म का पतन हो गया था। समाज में जातिगत ऊंच-नीच की भावना, वर्णगत विषमता, छुआछूत, अंधविश्वास और पशुबलि की प्रथा व्यापक चलन में थी। ऐसे समय में महात्मा बुद्ध ने अपने धर्मचक्र प्रवर्तन के सिद्धांत के द्वारा मानव-कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया और सबको निष्काम कर्म, त्याग, समता और पवित्रता से युक्त जीवन का उपदेश दिया।
काव्यगोष्ठी में कविवर श्यामबिहारी पांडेय ने एक तथाकथित बड़े आदमी का कच्चा चिट्ठा खोल दिया- एक मेरे शहर का बड़ा आदमी, अपने चमचों से हरदम घिरा आदमी! एक दिन छोड़ जाना है सबकुछ यहां, फिर भी अपनी अना में तना आदमी! कवि प्रकाश कश्यप ने अपने स्वभाव का बेबाक चित्रण किया- बेबहर हूं अगर बेबहर ही सही। ढा रहा आप पर मैं क़हर ही सही। झूठ कहने की मेरी तो आदत नहीं, बात मेरी ज़हर तो ज़हर ही सही! आशुकवि विनोद हर्ष ने मां के संबंध में सही कहा कि- तेरे परमार्थ से ही निरोगी है घर सारा। माथे पर हाथ रखते ही उतर जाता है ज्वर सारा। बड़ी-बड़ी चोट उड़ जाती है केवल तेरे सहलाने से, कभी रोग नहीं होता तेरे हाथ का खाने से। भरी है सृष्टि की सारी दवाई तेरे पांव में। सारी जन्नत है रे माई तेरे पांव में! वरिष्ठ गीतकार देवेन्द्रनाथ दुबे ने नारी-जीवन को एक पहेली बताया- घूंघट में बैठी नारी का जीवन एक पहेली है। हया, शर्म और लज्जा सारी उसकी सखी-सहेली है! वीररस के कवि अम्बरीष कश्यप ने अपने व्यक्तित्व और आंतरिक आक्रोश को अपने काव्य में रेखांकित किया- मैं सबकुछ जानकर अनजान-सा हूं। नज़र में अपनी बेपहचान-सां हूं। मिरे अंदर भी लाशें जल रही हैं, मुझे लगता है मैं श्मशान-सा हूं। चंद्रभूषण मिश्र की यह कविता भी खू़ब मक़बूल हुई- मेरे गुनाह की सज़ा क्या मुझको मिले। दुश्मनों से इसकी सलाह लीजिए। चांद पूर्णमासी को ही निकलता नहीं, चांदनी रात में न सज़ा दीजिए! चोट खाए प्रेमी की व्यथा कुमार अजय सागर ने बखूबी व्यक्त की- सागर चले जाना, अब लौट के मत आना। रास्ता न देखेंगी आंखें वो अनजाना। सब टूट गए धागे प्रेम के तूने जो बांधे! कवयित्री व अभिनेत्री अर्चना पाठक ने अपने काव्य में भगवान बुद्ध की सांसारिक विरक्ति पर प्रकाश डाला- दीन, वृद्ध, रोगी दिखे, बुद्ध लिए वैराग्य। संन्यासी को ही यहां, मिलता है सौभाग्य।
इन दिनों भीषण गर्मी से जनजीवन बेहद आक्रांत है। कवयित्री माधुरी जायसवाल की कविता में गर्मीजनित पीड़ा मुखरित हुई- सोच रही हूं इस गर्मी में मैं भी मामा के घर जाऊं। नाना-नानी, मामा-मामी सबको कुछ सिखलाऊं। सोच रही हूं पंख लगाकर सूरज के पास जाऊं। इतना ताप मत फैलाना, उसे जाकर समझाऊं! शायर-ए-शहर यादव विकास की ग़ज़लें उनके अनुभवों का अमूल्य ख़ज़ाना हैं। ये वो मोती हैं जिन्हें हर कोई सहेजना चाहता है। उनकी इस दमदार ग़ज़ल की सराहना श्रोताओं ने दिल खोलकर की- हाल दिल का पता नहीं होता, तुम्हारे साथ चला नहीं होता। कौन कहता है कि इज़हार करो, आंखों-आंखों में क्या नहीं होता! बस हमारा-तुम्हारा साथ रहे मुश्किलों का पता नहीं होता। अंत में, संस्था के अध्यक्ष दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू के इस प्रेरक दोहे से कार्यक्रम का यादगार समापन हुआ- अब सूरत वैसी नहीं, बदल गई तारीख़। तू अपने को बदल ले, मानो मेरी सीख। गोेष्ठी का संचालन कवयित्री माधुरी जायसवाल और आभार कवि मुकुंदलाल साहू ने जताया। इस अवसर पर मनीलाल गुप्ता, हरिशंकर सिंह, लीलादेवी, मदालसा गुप्ता, कुलदीप चैहान, प्रिंस, दिनेश राघव, लोकेन्द्र सिकरवार, दीपक शर्मा, जीतेन्द्र सिंह, मुनेन्द्र चैहान, प्रमोद, एलपी यादव आदि काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।

Ashish Sinha

WhatsApp Image 2025-08-15 at 7.06.25 AM
WhatsApp Image 2025-08-15 at 7.00.23 AM
WhatsApp Image 2025-08-15 at 6.52.56 AM
WhatsApp Image 2025-08-15 at 7.31.04 AM
e6e82d19-dc48-4c76-bed1-b869be56b2ea (2)
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.51 AM (2)
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.53 AM (1)
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.52 AM (1)
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.51 AM
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.54 AM
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.54 AM (2)
WhatsApp Image 2025-08-28 at 12.06.50 AM

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!