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Ambikapur News : मातृ-दिवस पर हिन्दी साहित्य भारती की काव्यगोष्ठी………..

‘मां सूरज की रोशनी, चंदा का उजियार, मां धरती-आकाश है, मां पूरा संसार’

मातृ-दिवस पर हिन्दी साहित्य भारती की काव्यगोष्ठी………..

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P.S.YADAV/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// मातृ-दिवस पर हिन्दी साहित्य भारती की ओर से लीला यादव की अध्यक्षता में विवेकानंद विद्यानिकेतन में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मंजू पाठक, विशिष्ट अतिथि कवयित्री गीता द्विवेदी, सीमा तिवारी व संध्या दुबे थीं। गोष्ठी का शुभारंभ गीतकार रंजीत सारथी ने सरस्वती-वंदना – घरी-घरी तोर पइयां बन्दव एदे हमरो ले-ले जोहार दाई- से किया। तदनंतर डॉ0 योगेन्द्र सिंह गहरवार ने मां की महिमा में एक शानदार कविता की प्रस्तुति दी- मां-सा कोई गुरु नहीं है, मां-सा कोई मित्र नहीं है। मां की मूरत से सुन्दर दुनिया में कोई चीज़ नहीं है। कवयित्री माधुरी जायसवाल ने मां की ममता का मनोहर दृष्टांत देकर समां बांध दिया- थपकी देकर मुझे सुलाती, प्यार से मुझे चूमती, आंचल से आंसू पोंछकर सपनों के झूलों में झूलाती। शायरे शहर यादव विकास ने सही फरमाया कि आओ बताऊं हक़ीक़त का किसने इज़हार किया, दुनिया में सबसे पहले मां ने ही प्यार किया।

आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर ने मां की अभिनव परिभाषा दी- गौ की तरह रहती है, धरा की तरह सहती है, मां उसे ही कहते हैं। वरिष्ठ कवि बीडी लाल ने मां की महानता के विषय में कहा कि चुप रहती है, चुप रोती है, चुप सहती है, चुप सोती है- मां तो बस मां होती है। राजलक्ष्मी पाण्डेय ने मां के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहा- तुमसे है मेरा जीवन, जीवनदायिनी हो मां। मेरा हौसला हो तुम, मधुर मुस्कान हो तुम मां। पूर्णिमा पटेल ने भी माना कि महलों की रानी हो, या फुटपाथ बसेरा, बिना खिलाए बच्चों को कब वह सोती है? मां तो मां होती है। मां शब्द के मायने श्यामबिहारी पाण्डेय ने बताए- ममता, त्याग, तपस्या का बस एक शब्द है मां। हम मां में कितना रहते हैं, हममें रहती पूरी मां।

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कार्यक्रम में मां के प्रति आदर का भाव कवि संतोषदास सरल ने व्यक्त किया- मिलता नहीं सुकून जहां में चाहे तुम आसमान छू लो। मिल जाएगा तुम्हें खु़दा भी, इक बार मां के पांव छू लो। सीमा तिवारी ने जननी के जीवनदायिनी कार्यों का सुन्दर समुल्लेख किया- मां ने उर-अमृत पिलाकर हमको जीवनदान दिया। अपनी जान को पाल-पोषकर दूसरा जग में नाम दिया। डॉ0 उमेश पाण्डेय ने अपने काव्य में जहां मां के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त किया, वहीं बालकवि शुभम पाण्डेय ने कविता- मां तू है मेरा संसार की मार्मिक अभिव्यक्ति देकर ख़ूब तालियां बटोरीं। आशा पाण्डेय ने दिलकश दोहे प्रस्तुत किए- जन्मदायिनी का सदा, हम पर है अधिकार। जीवन देकर मातु ने, किया बड़ा उपकार। माता पालनहार है, बच्चों की आधार। पल में विपदा वो हरे, महिमा बड़ी अपार। रंजीत सारथी ने जगत् जननी मां की शोभा का बखान किया- बाजत हे छमछम, बाजथे रे, महामाई कर पइरी बाजथे रे, समलाई कर पइरी बाजथे रहे।

डॉ0 सुधीर पाठक ने कविता- बिचार करत रहथों काकर गुन ला गावों, दाई, दाऊ, गुरु, दईब, पितर जम्मे हंवय एहिच ठावों। गीता द्विवेदी ने अपनी कविता में ख़ुद के मां व बेटी होने पर गर्व जताया- हां, आज मेरा दिल कहता है, खु़द को सैल्यूट-सलाम करूं। इक मां भी हूं, इक बेटी भी, तो गर्व मैं आठों याम करूं। अर्चना पाठक ने ऑनलाइन कविता- मेरी मां भोली-भाली, मीठी मिश्री की डलियन-सी, बचपन की यादें सुहानी, बिसर गई जब हुई साजन की- पेश की। इन कवियों के अलावा राजेन्द्र विश्वकर्मा, अजय श्रीवास्तव और अम्बरीश कश्यप ने भी मां विषयक श्रेष्ठ कविताओं की प्रस्तुति दी। अंत में, कवि मुकुन्दलाल साहू ने अपने दोहों की दीप्ति से पूरी महफ़िल को रौशन कर दिया- मां सूरज की रोशनी, चंदा का उजियार। मां धरती-आकाश है, मां पूरा संसार। मां कमला है भारती, देवी का है रूप। मां की सेवा से मिले, सुख-आनंद अनूप। घोर अंधेरी रात में, मां दीपक की जोत। मरुथल में भी है वही, जल का शीतल स्रोत। कार्यक्रम का संचालन आशा पाण्डेय और मुकुन्दलाल साहू ने किया। आभार संस्था के अध्यक्ष रंजीत सारथी ने जताया।

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