
Ambikapur : नववर्ष के उपलक्ष्य में हिन्दी साहित्य भारती की सरस काव्य-संध्या…………..
सदा उपकार करते हैं, कभी नफ़रत नहीं करते, जिनके हाथों में सूरज हो, अंधेरों से नहीं डरते...........
नववर्ष के उपलक्ष्य में हिन्दी साहित्य भारती की सरस काव्य-संध्या…………..
ब्यूरो चीफ/सरगुजा// हिन्दी साहित्य भारती द्वारा स्थानीय पॉलीटेक्निक कॉलेज़ में प्राचार्य डॉ0 आरजे पाण्डेय की अध्यक्षता में सरस काव्य-संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्था के प्रदेशाध्यक्ष बलदाऊ राम साहू और विशिष्ट अतिथि प्रदेश महामंत्री व प्राचार्य डॉ0 सुनीता मिश्रा, अजय चतुर्वेदी, मीना वर्मा व रामसेवक गुप्ता थे। गोष्ठी का शुभारंभ मां भारती की पूजा पश्चात् वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से हुआ। बलदाऊ राम साहू ने कहा कि कवियों को साहित्य-सृजन राष्ट्र-निर्माण के लिए करना चाहिए क्योंकि राष्ट्र ही हमारी पहचान है। देशहित हमारे चिंतन का आधार हो। साथ ही समकालीनता का ध्यान कवि-लेखकों को रखना होगा क्योंकि समकालीन साहित्य ही सम्मान पाता है। कबीर, तुलसी, प्रेमचंद आदि महान साहित्यकारों के लेखन में समकालीनता दृग्गोचर होती है इसीलिए वे आज भी प्रासंगिक हैं। कुछ लोग देश की परंपरा, रीति-रिवाज़ों, एकता और अखण्डता को तोड़ना चाहते हैं। ऐसी ताक़तों से साहित्यकारों को लड़ना होगा। मां और मातृभूमि का सम्मान करना आज सभी का कर्तव्य है। डॉ0 सुनीता मिश्रा ने हिन्दी साहित्य भारती को एक अंतरराष्ट्रीय संस्था बताते हुए कहा कि यह संस्था विश्व के तीस देशों में संचालित है और अपना कार्य पूरी ईमानदारी व निष्ठा से कर रही है। भारत के प्राचीन वैभव की परिकल्पना को साकार करना, देश को फिर से विश्वगुरु का दर्जा दिलाना, पाश्चात्य संस्कृति हो हराकर भारतीय संस्कृति की ओर लोगों को लौटाना व अतीत-वर्तमान का अभिनंदन करना संस्था के कुछ प्रमुख उद्देश्य हैं। प्राचार्य डॉ0 आरजे पाण्डेय ने राजनीति के कारण कवियों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाने की बात कही और तकनीकी शिक्षा व चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई हिन्दी में किए जाने संबंधी शासकीय प्रयासों व तैयारियों की भी जानकारियां दीं। संस्था के जिलाध्यक्ष रंजीत सारथी ने वर्तमान समय में हिन्दी को पूरे देश में जन-जन की भाषा बनाए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित की।
काव्यगोष्ठी में कवियों द्वारा कई शानदार रचनाएं पढ़ी गईं। चर्चित नग़मानिगार पूनम दुबे ने हिन्दी भाषा को मधुशाला की उपमा प्रदान की- पढ़ी जा के पाठशाला, हिन्दी लगे मधुशाला। कविताएं लिखकर भावों को निखारिए। नववर्ष पर माधुरी जायसवाल की रचना- आप की राहों में फूलों को बिछाकर लाया है नववर्ष, महकी हुई बहारों की खु़शबू लाया है नववर्ष और अजय चतुर्वेदी की रचना- यह ढलता सूरज कह रहा है बीते वर्ष की अमिट कहानियां- को श्रोताओं ने भरपूर दाद दी। वतनपरस्ती का पाठ ग़ज़लकार मनव्वर अशरफ़ी ने पढ़ाया- वतन से इश्क़ का गुमान रखते हैं। हर वक़्त हथेली पर जान रखते हैं। लहराते तिरंगे पर नाज़ है हमको, हम अपने दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं। जाने-माने कवि डॉ. सपन सिन्हा के गीत- सदा उपकार करते हैं, कभी नफ़रत नहीं करते, जिनके हाथों में सूरज हो, अंधेरों से नहीं डरते, अनिता मंदिलवार ‘सपना’ की रचना- करोगे न जब तक जतन रास्ते में, तो कैसे खिलेंगे सुमन रास्ते में, शशिकांत दुबे की कविता- चाह जलेगी जब तक, तेल रहेगा दीये में, बाहर निकल, कब तक पड़ा रहेगा कुएं में, मंशा शुक्ला का कलाम- चलो ज्ञान का दीप मिलकर जलाएं, अज्ञान तमस का जगत् से मिटाएं और कवयित्री व अभिनेत्री अर्चना पाठक का आव्हान-गीत- दुश्मनों की नींद उड़ाने वीर युवाओं आओ तुम, हाथों में तलवार उठाओ, शब्दबाण बरसाओ तुम- जैसी श्रेष्ठ रचनाओं ने श्रोताओं में जोश, उमंग और उत्साह का संचार किया। वरिष्ठ गीतकार व संगीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने मधुर स्वर में गणेश-वंदना- त्रास हो ना हा्रस हो हे गण्ेाश देवा, राष्ट्र का विकास हो हे गणेश देवा- सुनाकर जहां देशभक्ति की धारा प्रवाहित कर दी वहीं वरिष्ठ गीतकार रंजीत सारथी ने अपने दिव्य स्वर में गीत- महामाया मां कृपा करो, तुम बिन हमारा कौन है? तुम ही माता, तुम ही पिता, तुम ही बंधु तुम ही सखा, तुम ही पालनहारा हो- सुनाकर जगत् जननी मां भगवती के प्रति अपनी अनन्य भक्ति व निष्ठा का इज़हार किया।
ओजस्वी कवि अम्बरीष कश्यप की रचना- बस पढ़ाई है और लिखाई है- यही दौलत मेरी कमाई है, चंद्रभूषण मिश्र ‘मृगांक’ की कविता- मुझे कुछ नहीं चाहिए साहस का एक संयम ही दे दो, टूटकर बिखर रहा हूं, अपना आलिंगन ही दे दो और कवि, फिल्म एक्टर व डॉयरेक्टर आनंद सिंह यादव की कविता- बिकती है ना ख़ुशी कहीं, ना कहीं ग़म बिकता है, लोग ग़लतफ़हमी में हैं कि शायद कहीं मरहम बिकता है- ने गोष्ठी में समा बांध दिया। सच है रात्रि में सारा संसार गहरी निद्रा में सो जाता है पर कवि को भला नींद कब आती है? गीत-कवि देवेन्द्रनाथ दुबे ने इसी तथ्य के साथ अपनी अंतर्व्यथा व रचनाधर्मिता की बात कही- जिसकी निंदिया जितनी प्यारी, उतने प्यारे ख़्वाब। अपने हिस्से आ बैठे हैं-काग़ज़, कलम, दवात। भारतीय नारी की व्यथा-कथा का करुण स्वर वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा के मुखारविंद से मुखरित हुई- औरत क्यों रोती है? क्या वह घूंट-घूंट कर जीती है? पीती है कड़वी घूंट विषधर की तरह। ना लीलती है, ना उगलती है। दुर्ग से पधारे वरिष्ठ बदलाऊ राम साहू के दो बालगीत- आसमान में उड़ जा तू भी अपने पंख पसार चिरैया व एक परिंदा उड़कर आया मेरी छत पर और वरिष्ठ कवयित्री डॉ0 सुनीता मिश्रा के स्मृति-गीत- कुछ खोई हूं, कुछ पाई हूं जीवन की इन राहों में, ऐसे में बोलो फिर कैसे मधुवाणी दूं चाहों में- ने सबको भावविभोर कर दिया। अंत में, नगर के बेमिसाल दोहाकर मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहो में सरगुजा संभाग सहित पूरे सूबे में पड़ रही भयानक सर्दी की संत्रासदी का जीवंत चित्रण करते हुए कार्यक्रम का यादगार समापन किया- कांप रहे हैं ठंड से आज हमारे हाड़। गांव, शहर, कस्बे सभी, नाले, नदी, पहाड़। मैं सरगुजिहा ठंड की करूं आज क्या बात? दिन भी अब घायल करे, क़ातिल लगती रात। जाड़े ने जादू किया, या फैलाया केश। धुआं-धुआं-सा हो गया, यह सारा परिवेश। कार्यक्रम का संचालन महामंत्री सरगुजा अर्चना पाठक और आभार संस्था के जिलाध्यक्ष रंजीत सारथी ने जताया।