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वित्त विधेयक 2025: पैबंद की नीति या ठोस आर्थिक सुधार?

वित्त विधेयक 2025: पैबंद की नीति या ठोस आर्थिक सुधार?

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भारत की अर्थव्यवस्था इस समय महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है, जहां एक ओर ‘विकसित भारत 2047’ का सपना दिखाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर मौजूदा वित्त विधेयक ठोस दिशा देने में विफल नजर आ रहा है। विपक्ष के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने लोकसभा में इस बजट पर तीखा हमला बोलते हुए इसे एक ‘पैबंद-युक्त नीति’ करार दिया, जब देश को स्पष्ट दृष्टिकोण, मजबूत नेतृत्व और निर्णायक फैसलों की जरूरत है।

पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक वृद्धि दर को लेकर सरकार की महत्वाकांक्षाएं धराशायी होती दिख रही हैं। जब देश को दो अंकों की विकास दर की जरूरत थी, तब 6% से अधिक विकास दर भी चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। यह स्थिति बताती है कि सरकार की आर्थिक नीतियां केवल दिखावे तक सीमित हैं और जमीनी स्तर पर इनका सकारात्मक प्रभाव नहीं दिख रहा।

रोजगार और विकास के अवसरों के अभाव में एक बार फिर कृषि क्षेत्र में लोगों की निर्भरता बढ़ रही है। यह संकेत है कि उद्योग और सेवा क्षेत्र पर्याप्त अवसर उत्पन्न नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह इस बढ़ती निर्भरता को संतुलित करने के लिए कृषि सुधारों के साथ-साथ औद्योगिकरण को भी प्रोत्साहित करे।

निर्माण क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है, लेकिन भारत में इसका योगदान GDP में केवल 15% रह गया है, जो बीते दशकों में सबसे कम है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है।

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देश में अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार तेजी से बढ़ रहा है, जो यह दर्शाता है कि संगठित क्षेत्र में नौकरियों की कमी है। इससे न केवल कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा प्रभावित हो रही है, बल्कि सरकार के राजस्व संग्रहण पर भी असर पड़ रहा है।

सरकार चालू खाता घाटा (CAD) को नियंत्रित करने के लिए विदेशी पूंजी प्रवाह पर अत्यधिक निर्भर होती जा रही है। निर्यात में वृद्धि नहीं होने और उत्पादन में ठहराव के कारण यह स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है। ऐसे में सरकार को आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़े कदम उठाने होंगे।

शशि थरूर ने अपनी स्पीच में यह स्पष्ट किया कि भारत में केवल 2% लोग आयकर देते हैं, और वही लोग देश की अर्थव्यवस्था का बोझ उठा रहे हैं। पिछले साल व्यक्तिगत करदाता कॉर्पोरेट करदाताओं से अधिक योगदान दे रहे थे, लेकिन सरकार ने उनके लिए कोई ठोस राहत नहीं दी। यह मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति को कमजोर करने वाला कदम है।

जब सरकार ‘विकसित भारत 2047’ की बात करती है, तो सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या मौजूदा आर्थिक नीतियां हमें उस लक्ष्य तक पहुंचा सकती हैं? वित्त विधेयक में दीर्घकालिक सुधारों की जगह केवल तात्कालिक समाधान दिए गए हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि सरकार के पास इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोई ठोस रणनीति नहीं है।

भारत की आर्थिक नीति को दीर्घकालिक और स्थायी सुधारों की आवश्यकता है। पैबंद लगाने की नीति से देश का विकास संभव नहीं है। वित्त विधेयक में वास्तविक सुधारों की कमी को देखते हुए, सरकार को चाहिए कि वह ठोस आर्थिक नीतियां बनाए, जिससे भारत एक मजबूत और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की दिशा में अग्रसर हो सके।

Ashish Sinha

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