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गरियाबंद : विशेष आलेख : राजिम के रंग : परंपरा का पुर्नस्थापन और संस्कृति का पुर्नजीवन

विशेष आलेख- पोषण साहू

गरियाबंद : विशेष आलेख : राजिम के रंग : परंपरा का पुर्नस्थापन और संस्कृति का पुर्नजीवन

सूरज की पहली किरण के साथ ही मंदिर की घंटियों की गूंज,धूप-अगरबत्ती की महक, महाआरती की मन को चिरशांति प्रदान करने वाली सुकून और तीन नदियों के संगम का अद्भूत दृष्य राजिम नगरी की पहचान है। ये पहचान केवल भौतिक ही नहीं बल्कि मन की गहराइयों को छूने वाली आध्यात्मिकता औरसंस्कृति की आवाज है। प्रकृति का मनोहारी दृष्य और समागम का रहस्य इस स्थान का परिचायक है। 

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पवित्र नगरी राजिम की महत्ता पौराणिक काल से वर्तमान काल तक सदैव एक रहा है या यूं कहें की लगातार बढ़ते ही जा रहा है। माता सीता द्वारा स्थापित भगवान कुलेष्वर महादेव संगम केबीचों बीच में  अपने जीवंत्ता का प्रतीक है। महानदी के तट पर भगवान राजीवलोचन का मंदिर ऐतिहासिकता और पूरा आध्यात्म अपने आप में समेटें है। राजिम भक्तिन माता की अटूट विष्वास ने इस नगरी को पहचान दी है। हजारों खुबियाॅ अपने आप में समाहित करने की क्षमता राजिम में ही हो सकता है। 

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इस अद्भूत स्थल पर माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लगने वाले विशाल मेला आदिकाल से चला आ रहा है। जो अब तक अनवरत जारी है। मेले में लोग जैसे स्वस्फुर्त खींचे चले आते है। प्रशासनिक तैयारियाॅ सुरक्षा और सुविधाओं तक सीमित रहता था किन्तु राज्य गठन के पश्चात राजिम की महत्ता को अक्षुण रखने शासन द्वारा विषेष प्रयास किये गये। चाहे घाटों का निर्माण हो या लक्ष्मण झुला का निर्माण । यहाॅ आने वालें श्रद्धालुओं की सुविधा और सहूलियत को देखते हुए राजिम के विकास की रेखा खींची जा रही है। राज्य शासन राजिम मेला की परंपरा, संस्कृति के पुर्नस्थापन के लिए कृत संकल्पित है और मेले के मूल स्वरूप् को पुनः स्थापित करने में जुटी हुई है। आज भी राजिम में दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था और श्रद्धा में कमी नहीं दिखाई देती। दूर-दूर से साधू और संत अपना आशीर्वाद देने यहा पहुंचते है। लगातार 15 दिन तक चलने वाले मेले में लोग अपने परिवार के साथ पैदल चल कर,बैलगाड़ी से या फिर अपने साधन से उत्साहित होकर आते है और राजिम के विविध रंगों को अपने में समेटकर वापस नई ऊर्जा और उमंग के साथ जाते है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयागराज का भी दर्जा प्राप्त है। जो जीवन और मृत्यु के संस्कार इलाहाबाद प्रयागराज में होते हैं वह राजिम नगरी में सम्पादित होता है अर्थात राजिम केवल आनंद तक ही सीमित नहीं है बल्कि आध्यात्म, श्रद्धा और जीवन के सभी रंगो तक विस्तारित है। यहाॅ की संस्कृति और परंपरा लोगों के जीवनशैली का प्रतिबिंब है। आइए राजिम के इस पवित्र नगरी में और जीवन के रंगों के साथ राजिम के रंग में भी रंग जाइए।

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Haresh pradhan

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